* दिनेश निगम ‘त्यागी’
0 क्या लद गए भाजपा में मलैया के दिन….
– भाजपा के सत्ता में रहते पार्टी के कई वरिष्ठ नेता राजनीतिक वनवास में भेजे जा चुके हैं। क्या अब जयंत मलैया की बारी है? किनारे किए जा चुके नेताओं में राघवजी, लक्ष्मीकांत शर्मा, सरताज सिंह, रामकृष्ण कुसमारिया, डा. गौरीशंकर शेजवार, जयभान सिंह पवैया जैसे दिग्गज शुमार हैं। अजय विश्नोई , गौरीशंकर बिसेन जैसे नेता अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। साध्वी उमा भारती जैसी दिग्गज सक्रिय राजनीति में वापसी के लिए संघर्ष कर रही हैं। इस सूची में जयंत मलैया जैसे वरिष्ठ नेता का नाम जुड़ता दिख रहा है। दमोह में मलैया परिवार के वर्चस्व को चुनौती देने की शुरुआत प्रहलाद पटेल को लोकसभा का चुनाव लड़ाकर की गई थी। मलैया अब दमोह से अपने बेटे को टिकट नहीं दिला सके। कांग्रेस छोड़कर आए राहुल लोधी भाजपा की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं। राहुल को भाजपा में तब लिया गया जब प्रदेश में भाजपा की सरकार बन चुकी थी। उसे बहुमत भी हासिल था। सवाल है कि ऐसे में राहुल को कांग्रेस से भाजपा में लाना मलैया को किनारे करने की साजिश का हिस्सा तो नहीं? मजेदार यह है कि मलैया के साथ इस अन्याय को लेकर पार्टी के अंदर से एक भी आवाज नहीं उठी। तो क्या मान लिया जाए कि मलैया परिवार के भाजपा में दिन अब लद गए? मलैया कहां चूक गए, उनके साथ ऐसा क्यों हुआ, इसे लेकर अटकलें जारी हैं।
0 कमलनाथ के सामने फिर परीक्षा की घड़ी….
– विधानसभा चुनाव के बाद कई परीक्षाओं से गुजर चुके प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के सामने एक और परीक्षा की घड़ी है। विधानसभा चुनाव के बाद बनी सरकार में सफलता का सेहरा उनके सिर था तो इसके बाद कई असफलताएं उनके खाते में दर्ज हो गईं। सबसे बड़ी असफलता यह कि उनके नेतृत्व वाली सरकार चली गई और भाजपा की 15 माह के अंदर ही सत्ता में वापसी हो गई। नाथ न पार्टी को टूटने से बचा पाए और न ही सरकार को। उनके नेतृत्व में उप चुनाव में भी कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं, पार्टी में लगातार टूट के सिलसिले को भी वे नहीं रोक पाए। अब दमोह विधानसभा सीट के लिए उप चुनाव हो रहा है। यहां से कांग्रेस के टिकट पर जीते राहुल लोधी भी इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए थे। वे उप चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी हैं। कांग्रेस ने अजय टंडन को मैदान में उतारा है। कमलनाथ को यदि अपनी असफलताओं की श्रंखला में विराम लगाना है तो दमोह का उप चुनाव जीतना होगा। खुद का आत्मबल बढ़ाने और पार्टी नेतृत्व के भरोसे के लिए यह जरूरी है। ऐसा न हुआ तब चुनाव बाद प्रदेश अध्यक्ष पद से उनकी रवानगी तय मानी जा रही है। कमलनाथ को इस बात का अहसास है, इसलिए वे दमोह में अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं।
0 दमोह उप चुनाव में ‘नोट’ की राजनीति….
– जैसा अक्सर होता है दमोह विधानसभा के उप चुनाव में भी नोटों की एंट्री हो गई। सोशल मीडिया में वायरल एक वीडियो के आधार पर भाजपा ने आरोप लगाया कि दमोह से कांग्रेस प्रत्याशी अजय टंडन रुपए बांट रहे थे। भाजपा का प्रतिनिधि मंडल निर्वाचन आयोग में शिकायत भी कर आया। इधर कांग्रेसी सक्रिय हुए। पहले अजय टंडन ने कहा कि भाजपा नेताओं को अपनी आंखों का इलाज कराना चाहिए। इसके बाद प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा मैदान में कूदे। उन्होंने दूसरा वीडयो जारी कर बताया कि टंडन लोगों को अपने नाम, पार्टी और चुनाव चिन्ह की पर्ची देकर समर्थन मांग रहे हैं। फर्क यह है कि भाजपा ने जो वीडियो जारी किया उसमें टंडन लोगों को कुछ देते तो दिख रहे हैं लेकिन नोट कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे, जबकि कांग्रेस द्वारा जारी वीडियो में टंडन के फोटो, पार्टी और चुनाव चिन्ह वाली पर्ची साफ दिखाई पड़ रही है। कांग्रेस ने भाजपा द्वारा जारी वीडियो का एक शॉट भी जारी किया है, इसमें भी प्रत्याशी का फोटो और चुनाव चिंन्ह दिख रहा है। इसे लेकर कांग्रेस ने भाजपा पर गंदी राजनीति का आरोप लगाया है। दोनों दल आमने-सामने हैं। सच क्या है, यह निर्वाचन आयोग की जांच के बाद पता चलेगा। साफ है, दमोह में जीत के लिए दोनों ओर से दांव-पेंच जारी हैं।
0 कोरोना के दौर में होली पर विवाद कितना जायज….
– कोरोना के कारण होली पर्व के लिए सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन को लेकर भाजपा के अंदर ही विवाद हो गया। इंदौर में विवाद की वजह अलग थी, भोपाल में अलग। इंदौर में गाइडलाइन के खिलाफ भाजपा के साथ कांग्रेस के नेता भी कलेक्टर से जाकर मिले और होली को लेकर जारी गाइडलाइन पर आपत्ति जताई। इंदौर की राजनीति को दिशा देने वाले भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयर्वीय भी विवाद में कूद पड़े। कैलाश ने ट्वीट कर कहा कि इंदौर के लोगों को होली मनाने से नहीं रोका जाना चाहिए। बहरहाल, पहले तो कैलाश और भाजपा के नेता जो चाहते थे, वह नहीं हुआ। कलेक्टर के साथ बैठक में नेता जारी गाइडलाइन का पालन करने पर सहमत हो गए। हालांकि बाद में प्रशासन ने गाइड लाइन में कुछ संशोधन कर दिया। भोपाल में विवाद अलग तरह का था। यहां गाइडलाइन का ज्यादा विरोध नहीं हुआ। बस हिंदू उत्सव समिति ने होली जलाने का मुहूर्त सुबह बताया जबकि संस्कृति बचाओ मंच ने कहा कि हम तो रात में ही होली जलाएंगे। आखिर में दोनों पक्षों ने अपने मन की की। हिंदू उत्सव समिति ने दिन में होलिका दहन किया जबकि कुछ लोगों ने रात में। हालांकि दोनों पक्षों ने कोरोना को लेकर जारी गाइडलाइन का पालन करने की कोशिश की। सवाल यह है कि कोरोना जैसी महामारी के दौर में क्या ऐसे विवाद जायज हैं?
0 तीन दिग्गज मंत्रियों में ऐसी भी प्रतिस्पर्द्धा….
– बुंदेलखंड का सागर जिला आमतौर पर दो दिग्गज मंत्रियों गोपाल भार्गव एवं भूपेंद्र सिंह के बीच प्रतिस्पर्द्धा के लिए चर्चित रहता था। भाजपा के चौथी बार सत्ता में आने के बाद इस प्रतिस्पर्द्धा में एक और दिग्गज मंत्री गोविंद सिंह राजपूत शामिल हो गए हैं। तीनों के बीच प्रतिस्पर्द्धा इस मायने में खास चर्चा में है कि लोगों की नजर में यह सकारात्मक है। गोपाल भार्गव पंचायत एवं ग्रामीण विकास तथा कृषि विभाग के बाद अब लोक निर्माण विभाग के मंत्री हैं। तीनों विभागों के उनके क्षेत्र में सबसे ज्यादा काम हुए। भूपेंद्र सिंह पहले गृह एवं परिवहन मंत्री थे, अब उनके पास नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग की जवाबदारी है। वे अपने क्षेत्र में अपने विभागों से संबंधित सबसे ज्यादा काम कराने के लिए जाने जाते हैं। प्रतिस्पर्द्धा में शामिल ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास गोविंद राजपूत पहली बार भाजपा सरकार में मंत्री हैं। उनके पास राजस्व एवं परिवहन विभाग है। भला वे पीछे क्यों रहते तो उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत जैसी नगर से भोपाल के लिए दो बसें ही चलवा दीं। तीनों दिग्गज मंत्रियों के बीच इस प्रतिस्पर्द्धा का लाभ सागर जिले को मिल रहा है और लोगों को भी। कॉश, इस तरह की प्रतिस्पर्द्धा अन्य नेताओं के बीच भी शुरू हो तो संबंधित जिलों का कायाकल्प ही हो जाए।