राज-काज

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@दिनेश निगम ‘त्यागी’
भाजपा जीत को लेकर आश्वस्त नहीं, आशंकित….

  • मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित भाजपा के नेताओं का दावा है कि उप चुनावों में वह सभी 28 सीटें जीत रहे हैं। पर कुछ कदमों से साफ है कि पार्टी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नहीं, आशंकित है। इसलिए मतदाताओं को मैसेज देने की कोशिश हो रही है कि भाजपा एक-दो सीटें जीते, तब भी उसकी ही सरकार रहेगी। उदाहरण देखें, पहले सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया ने निर्दलीय विधायक केदार डाबर के साथ प्रेस कांफ्रेंस की और बताया कि डाबर ने भाजपा को अपना समर्थन दे दिया है। फिर नरोत्तम मिश्रा का बयान आया कि डाबर के साथ भाजपा के पास 114 विधायक हो गए हैं। अब उसे सिर्फ एक सीट की जरूरत है।

तीसरे दिन फिर खबर जारी हुई कि भाजपा को दो निर्दलीय विधायकों केदार डाबर और सुरेंद्र सिंह शेरा भैया ने समर्थन की चिट्ठी विधानसभा को भेज दी है। अब भाजपा को सिर्फ दो सीटें चाहिए। अब एक विधायक राहुल लोधी ने इस्तीफा देकर भाजपा ज्वाइन कर ली। सवाल यह है कि उप चुनावों के बीच सरकार को इस कसरत की जरूरत क्यों पड़ रही है? इसीलिए न कि उसे जीत को लेकर आशंका है। वह मतदाताओं पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश में है, कि सत्ता में वह ही रहेगी ताकि तटस्थ मतदाता अंतत: भाजपा के पक्ष में वोट कर दे।

भाजपा ने ही कर दिया कांग्रेस का ‘डैमेज कंट्रोल’….

  • कांग्रेस नेता दिनेश गुर्जर ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ‘भूखे-नंगे परिवार का’ और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इमरती देवी को ‘आइटम’ बोलकर अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने वाला काम किया था। बाद में भाजपा नेताओं के बयानों ने ही कांग्रेस के लिए ‘डैमेज कंट्रोल’ का काम कर डाला। इसके लिए दोषी खुद इमरती देवी हैं। अपनी बयानबाजी से उन्होंने जनता के अंदर पैदा सहानुभूति खत्म कर डाली। इमरती ने कमलनाथ को कपटनाथ, राक्षस, शराबी-कबाड़ी, महिलाओं को छेड़ने वाला गली छाप गुंडा, लुच्चा-लफंगा सहित न जाने क्या-क्या कह डाला। कमलनाथ की मां, बहन को बंगाल की ‘आइटम’ कह दिया। हर कोई जानता है, कमलनाथ ऐसे नहीं हैं। लिहाजा इमरती खुद कटघरे में खड़ी हो गई।

रही-सही कसर दूसरे मंत्री एवं दिमनी से भाजपा प्रत्याशी गिर्राज दंडोतिया ने यह कह कर पूरी कर दी कि ‘कमलनाथ दिमनी में बोलते तो यहां से उनकी लाश जाती’। दंडोतिया ने कमलनाथ को बूढ़ा कहते हुए दिग्विजय सिंह पर भी टिप्पणी की। कहा कि ‘उनके यहां बहू पहले आ गई और सास बाद में’। एक अन्य मंत्री बिसाहूलाल ने कांग्रेस प्रत्याशी की पत्नी को ‘रखैल’ बोल दिया। इस तरह कांग्रेस का ‘डैमेज कंट्रोल’ अपने आप हो गया। अब सहानुभूति के पात्र कमलनाथ बनते दिख रहे हैं।

नहीं लग सका ‘हिंदू-मुस्लिम’ का तड़का….

  • चुनाव में भाजपा मैदान में हो और उसमें हिंदू-मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान, राम मंदिर जैसे मसलों को तड़का न लगे, ऐसा कभी होता नहीं। पर 28 विधानसभा सीटों के उप चुनाव इस मसले पर अपवाद साबित होते दिख रहे हैं। ये किसी आम चुनाव से कम महत्वपूर्ण नहीं हैं, फिर भी प्रचार अभियान में गद्दार और एक दूसरे के खिलाफ अपशब्द ही चर्चा में हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ अपने कार्यकाल के कामों का जिक्र करते हैं लेकिन ये मुद्दा नहीं बन पा रहे। हालांकि हिंदुत्व की कट्टर पैरोकार सरकार की एक मंत्री ऊषा ठाकुर ने उप चुनाव में हिंदू-मुस्लिम का तड़का लगाकर प्रचार का रुख मोड़ने की कोशिश की, लेकिन योजना परवान नहीं चढ़ सकी।

कांग्रेस ने मंशा भांप कर इसे नजरअंदाज कर दिया। इंदौर में पत्रकारों से बातचीत में ऊषा ठाकुर ने कहा कि मदरसों से सिर्फ कट्टरवादी निकलते हैं। सारे आतंकवादी मदरसों में ही पले-बढ़े हैं। यहां मध्यान्ह भोजन ही नहीं बल्कि मदरसों को ही बंद कर देना चाहिए। ठाकुर ने मौलवियों, इमामों को दिए जाने वाले वेतन को भी बंद करने की बात कही। साफ है मंशा हिंदू-मुस्लिम करने की थी लेकिन कांग्रेस ने चतुराई से इस पर कोई प्रतिक्रिया न देकर मुद्दे को तूल पकड़ने से रोक दिया।

क्या यह संवैधानिक संकट की स्थिति नहीं….

  • प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों के उप चुनाव में दो प्रमुख संवैधानिक संस्थाएं आमने-सामने हैं। कारण चुनावी रैलियों में कोरोना गाइडलाइन का पालन न होना है। हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने जनता की चिंता की। उसके निर्देश पर नरेंद्र सिंह तोमर, कमलनाथ सहित तमाम नेताओं पर एफआईआर दर्ज हुई। जब रैलियों में गाइडलाइन का पालन होता न दिखा तो हाईकोर्ट को टिप्पणी करना पड़ी, ‘जनता को मौत के मुंह में जाते नहीं देखा जा सकता।’ हाईकोर्ट ने निर्देश दिए कि अब उसके क्षेत्र के 9 जिलों में कलेक्टर रैलियों की अनुमति नहीं दे सकते। इसके लिए नई गाइडलाइन तय कर दी।

भाजपा को हाईकोर्ट का निर्देश पसंद नहीं आया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का एलान किया। भाजपा से पहले निर्वाचन आयोग ही हाईकोर्ट के निर्देश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। अर्थात जो भाजपा करना चाहती थी, वह चुनाव आयोग ने कर दिया। प्रसिद्ध अधिवक्ता विवेक तन्खा ने आयोग के रुख पर हैरानी जताई और उसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए। विडंबना यह है कि हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद गाइडलाइन का उल्लंघन करते चुनावी रैलियां, सभाएं जारी हैं। क्या ये संवैधानिक संकट के हालात नहीं हैं?

कमलनाथ को मिला अजय सिंह का साथ….

  • प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों के लिए जब से प्रचार अभियान शुरू हुआ तब से ही कहा जा रहा है कि भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ पार्टी का हर नेता मैदान में है। जबकि कांग्रेस की ओर से अकेले कमलनाथ मोर्चे पर इनका मुकाबला कर रहे हैं। सच भी है, प्रचार में डा. गोविंद सिंह, सज्जन सिंह वर्मा, अरुण यादव, जीतू पटवारी, जयवर्धन सिंह, कमलेश्वर पटेल, रामनिवास रावत आदि सक्रिय तो हैं, लेकिन इनके कंधों पर क्षेत्र विशेष की जवाबदारी है। इसलिए ये प्रदेश स्तर पर कमलनाथ का साथ देते दिखाई नहीं पड़ते।

दिग्विजय सिंह की चर्चा है लेकिन वे अब तक मैदान में नहीं आए। ऐसे में कमलनाथ को एक नेता का साथ मिला है। ये हैं पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह। कमलनाथ के बाद अजय सिंह एक मात्र ऐसे नेता हैं जो प्रदेश के लगभग हर अंचल व क्षेत्र में प्रचार के लिए पहुंच रहे हैं, सभाएं ले रहे हैं। अजय सिंह का नेटवर्क भी पूरे प्रदेश में है। राजनीतिक हलकों में कमलनाथ-अजय सिंह की जोड़ी के चर्चे होने लगे हैं। कयास यहां तक लगने लगे हैं कि कांग्रेस को अजय सिंह के रूप में नया प्रदेश अध्यक्ष मिलने वाला है।