कला प्रदर्शनी : ‘रंग अमीर’ यानी रंगों का उत्सव

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इंदौर : सृजन सृष्टि की आकांक्षा का नाम है। इस आकांक्षा ने आकाश में तारे रचे तो धरती पर हरियाली। फिर मानव मन ने भित्तियों पर अजंता और पत्थरों पर कोणार्क, खजुराहो रचे। मानव मन रचना यात्रा यहीं नहीं थमी उसने अपने समय और अपने दौर की जटिलताओं, कुंठाओं, संघर्ष, विसंगतियों, खुशियों और उत्सवों को भी रंगा और रचा। और ऐसा रचा कि जो रंगों, रेखाओं और प्रतीकों में दृश्यमान हो उठा। यदि ये कहा जाए कि ये रंग आंखों के उत्सव बन गए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

रंगों के इस उत्सव का आनंद प्रीतम लाल दुआ सभागृह की कला वीथिका में लिया जा सकता है। यहां महान गायक उस्ताद अमीर खां साहब की याद में आयोजित तीन दिवसीय संगीत समारोह “राग अमीर” के अंतर्गत “रंग अमीर” नाम से एक कला प्रदर्शनी लगाई गई है, इसमें जो भी कलाकर्म प्रदर्शित किया गया है वह अलग ही चाक्षुष स्वाद जगाता है।उल्लेखनीय है कि उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ संगीत एवं कला अकादमी द्वारा संगीत समारोह राग अमीर के साथ ललित कला विधा को जोड़ते हुए रंग अमीर कला प्रदर्शनी का भी आयोजन किया जा रहा है। शुरू में इसका दायरा सीमित था। केवल इंदौर व उसके आसपास के कलाकारों का कलाकर्म ही इस प्रदर्शनी का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन इस बार से इस प्रदर्शनी का फलक बढ़ाया गया है। इस बार ये प्रदर्शनी राष्ट्रीय स्तर पर लगाई गई है। इसके लिए ललित कला के माध्यमों से जुड़े कलाकारों की राष्ट्रीय स्तर पर न केवल प्रविष्टियाँ आमंत्रित की गई बल्कि लोकतांत्रिक तरीके से उनका चयन किया गया।

चयनित प्रविष्टियाँ में लगभग 90 कलाकृतियां प्रदर्शनी में लगाई गई है। ये कलाकृतियां देश के चुनिंदा और नामचीन चितेरों और मूर्तिकारों की हैं, जो देखते ही बनती हैं। प्रदर्शनी में इंदौर सहित मध्यप्रदेश के प्रमुख शहरों के कलाकारों की भागीदारी तो है ही, सुदूर असम से लेकर महाराष्ट्र, झारखंड, आंध्रप्रदेश पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड तक के कलाकारों की कृतियां इस प्रदर्शनी में देखे जा सकते हैं।

उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक श्री जयंत माधव भिसे ने दीप प्रज्वलित कर इस प्रदर्शनी का उदघाटन किया। इस अवसर पर अकादमी के उप निदेशक श्री राहुल रस्तोगी, इन्दौर की वरिष्ठ चित्रकार शुभा वैद्य सहित कला जगत से जुड़े संभ्रांत लोग व विद्यार्थी उपस्थित थे।

अपने आप में अनूठी इस प्रदर्शनी में हरेक कलाकर्म अपने आप में बेजोड़ है। प्रदर्शनी में समकालीन चित्रकला के साथ पारंपरिक, लोक व आदिवासी चित्रकला को भी समाहित किया गया है, जो एक अलग ही चाक्षुष स्वाद जगाता है। समकालीन कलाकृतियां अपने दौर की अपने आसपास की बातें करती हुई दिखती हैं। वास्तव में ये कलाकृतियां महज चित्र या शिल्प नहीं हैं बल्कि हमारे दौर की विद्रूपताओं, जटिलताओं, संघर्ष, हमारी चेतना का जीवंत दस्तावेज हैं। इनमें चित्रकला और मूर्तिकला के नए माध्यमों, नई तकनीकों और प्रयोगों के भी दर्शन होंगे।