राज-काज

Shivani Rathore
Updated on:

अफसर दंपत्ति की इस पहल से लेगा कोई ‘ सबक ‘….

  • कोरोना महामारी के मौजूदा दौर में जब मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक से लेकर संक्रमित हर अफसर, नेता और वीआईपी चिरायु, बंसल एवं मेदांता की ओर दौड़ रहे हैं तब प्रदेश के एक अफसर दंपत्ति ने कोरोना पॉजीटिव आने के बाद हमीदिया अस्पताल में भर्ती होकर अनुकरणीय मिसाल प्रस्तुत की है। यह दंपत्ति है जनसंपर्क, पर्यटन विभाग के प्रमुख सचिव शिवशेखर शुक्ला एवं उनकी आईएफएस अफसर धर्मपत्नी अर्चना शुक्ला। दोनों आला अफसरों ने हमीदिया अस्पताल में भर्ती होकर सरकारी डाक्टरों एवं स्टॉफ पर भरोसा ही नहीं किया, यह मैसेज देने की कोशिश भी की कि सरकारी व्यवस्था वैसी लचर नहीं है, जैसा प्रचार किया जा रहा है। अहं सवाल यह है कि क्या शुक्ला दंपत्ति की इस पहल से राजनेता कोई सबक लेंगे। यदि मंत्री, विधायक, राजनेता, अफसर तय कर लें कि उन्हें सरकारी अस्पतालों में ही अपना इलाज कराना है तो सरकारी व्यवस्थाएं अपने आप चुस्त-दुरुस्त हो जाएंगी। मुख्यमंत्री रहते कमलनाथ ऐसी एक पहल कर चुके हैं, जब एक आपरेशन के लिए वे हमीदिया पहुंच गए थे। क्या हर रोज कोरोना व्यवस्थाओं की समीक्षा करने वाले मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल सदस्यों तथा आला अफसरों को ऐसा उदाहरण नहीं प्रस्तुत करना चाहिए।
  • पिता के ‘गुड़’ को दीपक ने किया ‘गोबर’….
  • भाजपा में कैलाश जोशी ऐसा नेता थे, जिन्हें उनके सद्कर्मों, साफ-सुथरी राजनीति के कारण संत की संज्ञा दी गई। उनके अच्छे कर्मों का नतीजा था कि उनके बेटे दीपक जोशी दो-दो बार विधानसभा का चुनाव जीते, मंत्री बने। हाल में भाजपा सरकार बनने के बाद दीपक ने जैसी राजनीति की, उससे पिता का कमाया पूरा ‘गुड़’ अचानक ‘गोबर’ हो गया। दीपक को भाजपा ने तीसरी बार भी चुनाव लड़ने का मौका दिया था लेकिन वे हार गए। वे भलीभांति जानते हैं कि कांग्रेस के जिन बागियों की बदौलत भाजपा आज सत्ता में है, उन्हें उप चुनाव में टिकट देना पार्टी की मजबूरी है। ऐसे में पहले तो दीपक का बागी तेवर दिखाना उनके ही संत पिता की कार्यशैली के अनुकूल नहीं है। दूसरा, यदि उन्होंने बागी तेवर अपना ही लिए थे तो समर्थकों की भीड़ के साथ मुख्यमंत्री निवास जाकर माफी मांगने का क्या औचित्य है। इस तरह आप माफी मांगने गए थे, इस पर कौन भरोसा करेगा। दीपक ने ऐसा कर न केवल अपने पिता की कमाई पर पानी फेरा, खुद की पूंजी भी गंवा बैठे। अब वे निगम-मंडलों के जरिए भले मंत्री का दर्जा हासिल कर लें, पर गंवाई पूंजी की वापसी मुश्किल है।
  • अकेले कमलनाथ के हाथ ‘नाव’ की ‘पतवार’….
  • प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों के उप चुनाव भाजपा-कांग्रेस के लिए जीवन-मरण वाले हैं। इनके नतीजे तय करने वाले हैं, सत्ता में कौन रहेगा, भाजपा या कांग्रेस। भाजपा सत्ता बरकरार रखने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, प्रभात झा सहित समूची भाजपा मैदान में है। ये ताबड़तोड़ दौरे तथा बैठकें कर रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस में ‘नाव’ को पार लगाने वाली ‘पतवार’ अकेले कमलनाथ के हाथ है। कांग्रेस में दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, अजय सिंह, अरुण यादव, कांतिलाल भूरिया सहित तमाम बड़े नेता हैं लेकिन मैदान में कोई नहीं। कमलनाथ के साथ दिग्विजय तक नजर नहीं आ रहे। लिहाजा, तरह तरह की अटकलें हैं। एक राय है कि कांग्रेस आलाकमान ने कमलनाथ को फ्री हैंड दे रखा है। वे किसी अन्य नेता की सुन नहीं रहे, इसलिए सब हाथ पर हाथ रखे बैठे हैं। मीडिया प्रभारी के नाते जीतू पटवारी एवं कमलनाथ के खास सज्जन सिंह वर्मा ही बोलते, दौड़ते दिख रहे हैं। सवाल यह है कि क्या अकेले कमलनाथ की ‘पतवार’ भाजपा के दिग्गजों के मुकाबले कांग्रेस की ‘नाव’ को किनारे लगा पाएगी।

  • भाजपा ने फोड़ा, बरैया का ‘वीडियो बम’….
  • विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ‘माई के लाल’ वाला बयान समूची भाजपा पर भारी पड़ गया था। चंबल-ग्वालियर अंचल में ऐसी आंधी चली कि भाजपा को एक-एक सीट के लाले पड़े थे और कांग्रेस ने एकतरफा जीत दर्ज की थी। पंद्रह साल बाद प्रदेश की सत्ता में आने की एक वजह शिवराज के इस बयान को माना जाता है। चोट खाई भाजपा ने लगभग वैसा ही दांव कांग्रेस के खिलाफ चल दिया। भांडेर से कांग्रेस प्रत्याशी फूल सिंह बरैया का तब का भाषण देता वीडियो वायरल किया गया है, जब वे बहुजन संघर्ष दल नाम की अपनी पार्टी चला रहे थे। वीडियो में वे सवर्णों के खिलाफ जहर उगलते दिखाई पड़ रहे हैं। दलितों, मुसलमानों को एक पिता की संतान बता रहे हैं। भाजपा का यह वीडियो बम, कांग्रेस की किस्मत फोड़ सकता है। कांग्रेस और बरैया इसे फेंक बता रहे हैं लेकिन भाजपा से जुड़े ब्राह्मण व सवर्ण संगठनों ने इसे लपक लिया है। बरैया-कांग्रेस के पुतले जलाए जाने लगे हैं। कांग्रेस ने रणनीति के तहत यदि इस पर काबू न पाया तो यह कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। शिवराज के पुराने कथन के उदाहरण के साथ बरैया के भाषण की चर्चा सुर्खियां बन रही हैं।
  • राजनीति में अलग लकीर खींचते ये दिग्गज….
  • प्रदेश में कुछ नेता ऐसे हैं, जो अपनी अलग लकीर खींचने के लिए जाने जाते हैं। इनमें कांग्रेस के दिग्वजय सिंह, भाजपा के कैलाश विजयवर्गीय, उमा भारती एवं गोपाल भार्गव की गिनती की जा सकती है। साध्वी उमा और गोपाल खास चर्चा में हैं। उमा ने ट्वीट के जरिए हाथरस कांड के मामले में अपनी पार्टी की उप्र सरकार को आइना दिखाया है तो गोपाल ने रात के ढाई बजे अचानक गढ़कोटा अस्पताल का दौरा कर अपनी ही सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की पोल खोल कर रख दी है। उमा ने इस पर जबरदस्त एतराज जताया है कि हाथरस में मीडिया एवं राजनीतिक दलों के नेताओं को पीड़ित परिवार से मिलने नहीं दिया जा रहा। उन्होंने कहा कि वे कोरोना संक्रमण के कारण अस्पताल में हैं, वर्ना वे खुद पीड़ित परिवार के पास होतीं। अलग लकीर खींचने वाली इस तरह की दम उमा कई अवसरों पर दिखा चुकी हैं। इधर कोरोना महामारी से देश जूझ रहा है। प्रदेश में मुख्यमंत्री हर रोज व्यवस्थाओं की समीक्षा कर रहे हैं। ऐसे में गोपाल के कदम ने सरकारी दावों की पोल खोल कर रख दी है। सवाल है कि क्या हर नेता को देश-समाज के हित में ऐसा नहीं करना चाहिए।