और कितना जार जार होते देखोगे इंसानियत को

Akanksha
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indore unic hospital

निशिकांत मंडलोई

शर्म आती है मगर आज ये कहना होगा,,,,

जी हां ये लाइनें आज बरबस ही याद आ गई। 1968 में बनी फिल्म पड़ोसन के लिए गीतकार राजेन्द्र कृष्ण रचित गीत को लता मंगेशकर ने अपना सुर प्रदान किया। इसमें नायिका सायरो बानो और नायक सुनीलदत्त पर यह गीत फिल्माया गया है। सोमवार यानी 21 सितंबर को अन्नपूर्णा थाना क्षेत्र के एक प्रमुख अस्पताल में निमोनिया से पीड़ित एक बुजुर्ग की मौत के बाद उपजी परिस्थिति के मामले में बरबस ही गीत की शुरुआती लाइन ,,, शर्म आती है मगर आज ये कहना होगा,,,को याद कर कोरोना संक्रमण के लॉक डाउन काल व अनलॉक काल में सरकार व स्थानीय प्रशासन की बर्बरता याद आ गई।

हुआ यूं कि इंदौर की जैन कालोनी निवासी बुजुर्ग नवीन जैन निमोनिया से पीड़ित होकर अन्नपूर्णा क्षेत्र के इस अस्पताल में उपचाररत थे। परिजनों के अनुसार पीड़ित रविवार की रात तक ठीक थे लेकिन देर रात परिजनों को उनके निधन की खबर मिली। सोमवार को जब परिजन शव लेने अस्पताल पहुंचे तो शव देखकर भड़क गए। परिजनों के अनुसार शव के कई अंग चूहे द्वारा कुतरे हुए पाए।

मामले की गंभीरता और हंगामे की स्थिति को देखते हुए इंदौर कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी मनीष सिंह ने इंदौर के यूनिक हास्पिटल की घटना पर मजिस्ट्रियल इंक्वायरी का आदेश दिया है तथा मामले की जांच के लिए अजय देव शर्मा को अधिकृत किया है।

इसके दो दिन पूर्व इंदौर के ही महाराजा यशवंतराव अस्पताल की मर्चुरी में एक शव कंकाल में परिवर्तित पाया गया, एक अन्य बच्चे का शव भी कई कहानियां कहता नजर आया। इसके पूर्व भी कोरोना पीड़ितों के इलाज और पार्थिव शरीर को लेकर कई मामले शर्मसार करते सामने आए। इन सब मामलों को देखकर तो ऐसा लगता है कि इंसानियत अब इंसान से निकलती जा रही है। खासकर चिकित्सकों के मामले में। प्रशासन भी पता नहीं क्यों शिकायत पर हाजिर जवाबी में ,, दिखवाते हैं , अगर लापरवाही सामने आती है तो दोषी पर कार्रवाई की जाएगी , जैसे तोता रटन्त वाक्यों को अपने कर्तव्य मान बैठा है।

इस पीक को तो रोको

कोरोना का जब पीक काल आएगा तब आएगा लेकिन इंसानियत के गिरते पीक को कब रोका जाएगा। अनलॉक के बाद इंदौर में हालात वाकई में लॉक डाउन काल से भी बदतर हो गए हैं। मरीजो के आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं और प्रशासन जांच की तेज गति की उपलब्धि पर अपनी ही पीठ थपथपाता रहता है। शहर के अमूमन सभी सरकारी व निजी अस्पतालों में चिकित्सा के नाम पर जो हरक़तें हो रही हैं इसके लिए कौन जवाबदार। सामान्य दिनों की तरह अस्पतालों व अन्य निजी चिकित्सकों द्वारा अन्य बीमारियों का इलाज तो अब हो ही नहीं रहा है। बस जहां देखो वहां कोरोना का हव्वा ही नजर आता है। ऐसा नहीं होना चाहिए।चिकित्सको के इसी अमानवीय रवैये को देख कर कई सामान्य बीमारी वाले तो डॉक्टर के पास जाने से ही कतरा रहे हैं।

ये अलग नी मान रहे भइया

माना कि प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं इसलिए शासन तो कहेगा स्थिति बेहतर है लेकिन प्रशासन क्यों हालात को गम्भीर नहीं समझ रहा। केवल यह कह देना की अब आम नागरिक ही अपनी जिंदगी के लिए जिम्मेदार रहे, से किसी जवाबदारी से मुँह मोड़ने जैसा ही है।

नागरिकों ने पहले तो लंबे लॉक डाउन में अपने को सम्हाला और अनलॉक को लेकर खुशी भी जाहिर की। लेकिन अनलॉक के प्रति शहर के नागरिक इतने बेपरवाह हो गए कि वे बिगड़ती आर्थिक स्थिति की दुहाई देते देते कोरोना संक्रमण और उसके खतरे व जरूरी बचाव के उपाय को भी नजरअंदाज करते रहे।
एक अधिकारी दूसरे अधिकारी ऐसे आमने सामने आने लगे कि जैसे कोई पुरानी रंजिश हो आखिर ये क्या बताना चाहते हैं। अब जब हालात बेकाबू होने लगे तो अब स्वैछिक लॉक डाउन पर सहमत हो रहे हैं।

ऐसी दीवानगी देखी नहीं,,,

अब तो भगवान को उनके हाल पर छोड़ कर बाकी सब छुट्टा कर दिया। इतने दिनों से अपने को महफूज महसूस कर रहे चिड़ियाघर के वन्य प्राणी भी सकते में आ गए कि क्या इंदौर की जनता ने कभी वन्य जीव नही देखे जो पहले दिन टूट पड़े बच्चों को लेकर आ गए जान जोखिम में डालने। दिन भर पानी पतासे, समोसा कचोरी खाने के साथ होटलिंग व पिकनिक स्पॉट पर जाने से भी बाज नहीं आ रहे। अरे भाई थोड़े दिन अगर यह सब नहीं किया तो कौन सी आफत आ जाएगी सलामत रहोगे तो यह सब तो जीवन भर साथ लगा रहेगा। पर कोई समझने को तैयार नहीं है।

अब सेनेटाइज क्यों नहीं

उधर प्रशासन भी गैरजिम्मेदाराना रवैया अपनाता प्रतीत हो रहा है। जब लॉक डाउन था और लोगो की सड़कों पर आवाजाही भी बंद थी तो शहर में कोने कोने सेनेटाइजर मुहिम चलाई। यहां तक कि सब्जी तक सेनेटाइज होकर बिकी। अनलॉक के बाद से ही प्रशासन ने अपनी इस जवाबदारी से मुँह मोड़ लिया। सेनेटाइज करने अनेक उपकरण कबाड़ होते जा रहे है। क्या आज के हालात में शहर में सेनेटाइज करने आवश्यकता नहीं है।

ध्यान दो भाई

पहले चौपट होते व्यापार का रोना रोने वाले दुकानदार अब क्यों स्वेच्छिक लॉक डाउन की बात करने लगे। जब अपने पर आती है तो तुरंत समझ आती है। अरे भाई संयम और नियम भी कोई चीज है। उधर हमारे नेता रैलियों के माध्यम से मटर गस्ती करने से बाज नहीं आ रहे। जनता भी बेवकूफ ही कही जाएगी कि आखिर वह क्यों थोड़ी सी लालच में अपने तथा अपने परिवार का जीवन दाव पर लगाने शामिल हो रही है। कोई भी जीते , उसके बाद वह पूछने तक नहीं आएगा आपको। (यह तो सर्वविदित है कोई नई बात या किसी पर आरोप लगाने जैसी बात भी नहीं है)। तो फिर यह बचकाना हरकत क्यों।