नेमावर हत्याकांड के बहाने आदिवासी वर्ग को साधे रखने की कवायद

Suruchi
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दिनेश निगम ‘त्यागी’

कांग्रेस ने आदिवासी वर्ग पर अपनी पकड़ बनाए रखने की कसरत तेज कर दी है। जरिया बन रहा है नेमावर हत्याकांड। इसे मुद्दा बनाकर कांग्रेस प्रदेश की भाजपा सरकार पर हमलावर है। कांग्रेस की दिलचस्पी का अंदाजा इसी से लगता है कि स्वस्थ होने के बाद कमलनाथ पार्टी के अन्य नेताओं के साथ सबसे पहले नेमावर पहुंचे और पीड़ित आदिवासी परिवारों से मुलाकात की। उन्होंने पीड़ितों को 5-5 लाख रुपए मदद देने की घोषणा भी कांग्रेस की ओर से की। आदिवासी संगठन जयस भी इसे लेकर सरकार को घेर रहा है। कमलनाथ ने कांग्रेस के सात आदिवासी विधायकों की एक समिति बनाई है।

इन विधायकों ने पुलिस महानिदेशक से मिलकर नेमावर हत्याकांड की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है। इधर कमलनाथ शुक्रवार को नए राज्यपाल मंगू भाई पटेल से मुलाकात करने पहुंचे। यहां भी उन्होंने नेमावर कांड के साथ अजा-जजा वर्ग पर बढ़ते अपराधों का मुद्दा उठाया। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अजा-जजा वर्ग की 85 विधानसीटों में से 51 में जीत दर्ज कर सरकार बनाने में सफल रही थी। कांग्रेस की कोशिश है कि यह मतदाता उसके साथ जुड़ा रहे। इसलिए वह नेमावर कांड को लेकर प्रदेश की भाजपा सरकार को घेरे रखना चाहती है। शिष्टाचार मुलाकात में ऐसे मुद्दे उठाने की परंपरा नहीं राज्यपाल से मुलाकात में कमलनाथ ने अजा-जजा वर्ग के साथ हो रही घटनाओं का मुद्दा प्रमुखता से उठाया।

उन्होंने कहा कि इस वर्ग के लोग प्रदेश में सुरक्षित नहीं हैं। नेमावर जैसे हत्याकांड और इन पर इतनी घटनाएं देश के इतिहास में कभी नहीं हुई । कमलनाथ ने कहा कि मुझे आदिवासी इलाकों में काम करने का अनुभव है। मैंने राज्यपाल को बताया कि प्रदेश में इतनी बड़ी संख्या में अजा-जजा वर्ग के लोग हैं, जितने देश में कहीं नहीं हैं।अब वे सुरक्षित नहीं है। कमलनाथ की कोशिश मुद्दे को गरमाए रखने की है, वरना राज्यपाल से पहली शिष्टाचार मुलाकात में ऐसे मुद्दे उठाने की परंपरा नहीं रही। राष्ट्रीय स्तर पर गूंजेगा नेमावर हत्याकांड कांग्रेस के तेवरों से साफ है कि नेमावर हत्याकांड सिर्फ प्रदेश का मुद्दा नहीं होगा बल्कि यह राष्ट्रीय स्तर पर गूंजेगा। यही वजह है कि कमलनाथ ने कांग्रेस नेताओं के साथ ने नेमावर जाकर पीड़ितों से मुलाकात ही नहीं की अपितु कांग्रेस की ओर से 25 लाख रुपए की बड़ी सहायता देने की भी घोषणा की। सरकार में न रहते हुए संगठन की ओर से इतनी आर्र्थिक मदद कांग्रेस की मंशा को जाहिर करती है।

योजना के तहत ही कांग्रेस ने अब पार्टी के आदिवासी विधायकों को आगे किया है। जब तक सीबीआई जांच की मांग पूरी नहीं होती, कांग्रेस के साथ ये विधायक सरकार पर दबाव बनाए रखेंगे। कांग्रेस की कोशिश इस कांड के जरिए देश भर के आदिवासियों को मैसेज देने की है।
बाईस फीसदी को पाले में रखने की लड़ाई प्रदेश में अनुसूचित जनजाति वर्ग की आबादी लगभग 22 फीसदी है। इसी आबादी की वजह से साल 2018 में कांग्रेस सत्ता में आई थी। 2018 के चुनावों में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों में से कांग्रेस को 35 सीटें मिली थीं।

जबकि साल 2013 के चुनावों में कांग्रेस को सिर्फ 15 सीटें मिली थी। साफ है कि 15 साल से सत्ता में आने के लिए बेताब कांग्रेस को इस वर्ग का अच्छा खासा समर्थन 2018 में मिला था। अब नेमावर हत्याकांड के मामले को हवा देकर कांग्रेस अपना फर्ज निभा रही है। इस लड़ाई को कांग्रेस की 2023 के चुनाव की तैयारी के तौर पर भी देखा जा रहा है। भाजपा को रस नहीं आ रही सक्रियता, जवाबी हमला नेमावर हत्याकांड को लेकर कांग्रेस का इस तरह सक्रिय होना भाजपा को रास नहीं आ रहा। इसलिए जवाबी हमला भी जारी है। प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा है कि जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी तब तो कमलनाथ ने आदिवासियों के लिए कुछ किया नहीं, अब घड़ियाली आंसू बहाए जा रहे हैं जबकि सरकार आदिवासियों के साथ दृढ़ता से खड़ी है।

अपराधियों पर कार्रवाई की जा रही है। प्रदेश भाजपा के मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पारासर ने कहा है कि नेमावर हत्याकांड को अंजाम देने वाले कांग्रेस से जुड़े रहे हैं। इस परिवार के मुखिया को कांग्रेस ने 15 साल तक महत्वपूर्ण जवाबदारी देकर रखी थी। दूसरी हत्या के आरोपी को कांग्रेस ने पार्षद का टिकट दिया था। पारासर ने कमलनाथ सरकार के कार्यकाल की कुछ घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्हें इन घटनाओं का जिक्र भी राज्यपाल के सामने करना चाहिए था।