आडंबर- रहित और सरलता के एक युग का हुआ अंत

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प्रो मून्दड़ा का सफर एक साधारण परिवार से शुरू हुआ और फिर शिक्षा जगत में अवतरण, जिसमे वैष्णव कॉलेज के प्रोफेसर से एक शुरुआत के बाद, वैष्णव कॉलेज के प्राचार्य और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के वाणिज्य संकाय के डीन पर जाकर समाप्त हुआ। उल्लेखनीय है कि वैष्णव कॉलेज के सफर के दौरान मून्दड़ा गुरु और मोदी गुरु की जोड़ी ने अपनी जिंदादिली से विद्यार्थियों के दिल पर राज किया।

मून्दड़ा गुरु ने शुरू से ही पारिवारिक, सामाजिक और शैक्षिक जिम्मेदारियों का निर्वाह बखूबी किया। जब गुरु 18 वर्ष के थे, तभी उनके पिताजी की असमय मृत्यु हो गई और फिर उन्होंने तीन बहनों की एवं एक भाई की देख रेख की, शादी व्याह की जिम्मेदारी का निर्वाह कुशलता पूर्ण किया।

ना काहू से दोस्ती ना काहू से बेर के सिद्धांत पर चलने वाले मून्दड़ा गुरु ने जीवन मे अथक परिश्रम किया और जीवन को सादगीपूर्ण जीया। वे हमेशा से विद्यार्थियों को सरलता , सहजता और मितव्ययिता से रहने को कहते थे। वे हमेशा दिखावे से बचने की शिक्षा देते थे। उनकी पढ़ाने में तो महारत थी ही साथ ही साथ वे विद्यार्थियों को व्यवहारिक शिक्षा भी समय समय पर देते थे । अपने ऐसे ही सद्गुण उन्होंने अपनी तीनो पुत्रियो को भी विरासत में दिए।

गुरू ही व्यक्ति को इन्सान का रूप देता है। गुरू ही ज्ञान का पर्याय है। एक सच्चा गुरू ही अपने शिष्यों को इस संसार से परिचित करवाता है और जीवन की ऊँचनीच में संयम और अनुशासन का पाठ पढ़ाता है। मून्दड़ागुरु ने अपने शिष्यों को ये पाठ बखूबी पढ़ाया।आज उनके पढ़ाए विद्यार्थीयो ने बहुत ऊंचे मुकाम और उच्च पद पर आसीन है।

अपने समस्त जीवनकाल में गुरु ने माहेश्वरी समाज इंदौर की विभिन्न संस्थाओं में कार्य किया और समाज को मार्गदर्शित किया। गुरु धार्मिक प्रवर्ति के, सरल व्यतक्तित्व के धनी थे। अंत मे इन दो पंक्तियों के साथ गुरु को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हु।
गुरु की पारस दृष्टि से, लोह बदलता रूप।
स्वर्ण कांति-सी बुद्धि हो, ऐसी शक्ति अनूप||

मून्दड़ा गुरु के श्री चरणों मे उनके शिष्यों द्वारा समर्पित…