व्‍हाइट, येलो, ब्‍लैक और क्रीम में से केवल ये संक्रमण है जानलेवा

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देश में अभी भी कोरोना से ही पीछा नहीं छूटा था इस बीच एक और संक्रमण तेज़ी से फैलता जा रहा है, इतना ही नहीं इस संक्रमण के नए ने प्रकार भी सामने आ रहे है। ऐसे में कई राज्यों में ब्लैक फंगस के इतने ज्यादा मरीज मिलने से लोगों के मन में इस बीमारी को लेकर डर भी बढ़ रहा है, उस पर से भी सोशल मिडिया द्वारा फैलाई जा रही अफवाहें लोगों को और भी डरा रही है, और फंगस के इन्ही प्रकार को लेकर एक्सपर्ट ने एक बड़ी जानकारी दी है।

बता दें कि मध्‍य प्रदेश में ब्लैक, व्हाइट और येलो के बाद अब जबलपुर में क्रीम फंगस का एक मामला भी सामने आया है, इस कारण लोगों में इस संक्रमण को लेकर दर काफी बढ़ गया है, ऐसे में लोगों के डर को लेकर हेल्‍थ एक्‍सपर्ट ने के बड़ी जानकारी सांझा की है, एक्सपर्ट् के मुताबिक – “सामने आ रहे फंगस के प्रकारों से भयभीत होने की कोई जरूरत नहीं है, ये फंगस की अलग-अलग प्रजातियां हैं, हालांकि सिर्फ एक फंगस है जो काफी खतरनाक है।”

फंगस संक्रमण के डर को लेकर सरोजनि नायडू मेडिकल कॉलेज आगरा में माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट की हेड प्रोफेसर और लैब नोडल ऑफिसर डॉ. आरती अग्रवाल ने एक न्यूज़ एजेंसी से बात करते हुए बताया है कि – ‘देशभर में फंगस को रंगों के हिसाब से पहचान रहे हैं या डॉक्‍टर उसी हिसाब से बता रहे हैं, हालांकि मेडिकल में इनके लिए ऐसे कोई रंग निर्धारित नहीं हैं, सभी फंगस अलग-अलग प्रजातियां हैं और अलग-अलग प्रभाव दिखाती हैं।’

आगे इस बातचीत के दौरान उन्होंने फंगस संक्रमण को लेकर बहुत सी बातें बताई है, लेकिन इस बीच डॉ. आरती ने सबसे ज्यादा खतरनाक संक्रमण सिर्फ म्‍यूकरमाइकोसिस को बताया है जिसे ब्‍लैक फंगस कहा जाता है, आगे उन्होंने कहा है कि ‘यह इसलिए है कि इसमें फंगस आंखों को खत्‍म करती हुई ब्रेन और ब्‍लड वैसल्‍स तक चली जाती है और शरीर को भारी नुकसान पहुंचाती है साथ ही इस संक्रमण को लेकर और भी मष्टवपूर्ण जानकारी न्यूज़ के साथ सांझा की है।

इस कारण होती है मौत-
इस संक्रमण से मौत का दर लोगों में बना हुआ है जिसे लेकर डॉ, आरती ने बताया है कि ‘ब्‍लैक फंगस का इलाज भी इसकी मृत्‍यु दर बढ़ने का एक बड़ा कारण है, सभी फंगसों की दवाएं उपलब्‍ध हैं, इनसे घबराने की कोई जरूरत नहीं है लेकिन म्‍यूकरमाइकोसिस के लिए इन्‍जेक्टिबल एम्‍फो बी लाइपोजोमल चाहिए जिसकी कि कमी है, यही वजह है कि ऑपरेशन करने के बाद भी अगर मरीज को दवा नहीं मिलती तो उसे बचा पाना मुश्किल हो जाता है।’