सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध पक्ष का अंतिम दिन होता है। यह पितरों की विदाई का दिन होता है। इसे पितृ विसर्जन अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।
इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मुत्यु की तिथि याद ना हो। एक तरह से सभी भूले बिसरों को इस याद कर उनका तर्पण किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार जो वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम पर उचित विधि से दिया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है। सर्व पितृ अमावस्या के दिन भी भोजन बनाकर इसे कौवे, गाय और कुत्ते के लिए निकाला जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पितर देव ब्राह्राण और पशु पक्षियों के रूप में अपने परिवार वालों दिया गया तर्पण स्वीकार कर उन्हें खूब आशीर्वाद देते हैं। इस दिन अपने पूर्वजों के निमित्त के योग्य विद्वान ब्राह्मण को आमंत्रित कर भोजन कराना चाहिए। इसके अलावा गरीबों को भी अन्न का दान कर सकते हैं। पितरों के निमित्त श्राद्ध 11:36 बजे से 12:24 बजे में ही करना चाहिए।
अमावस्या वाले दिन पितरों के नाम से मिष्ठान एवं भोजन बनाकर पीपल के वृक्ष के नीचे रखने और पितरों के नाम से दीपक जलाने का भी विधान है। इस दिन अपने पितरों के नाम से पीपल के वृक्ष का रोपण भी किया जाता है।
सूर्यास्त के बाद छत पर चौमुखा दीपक भी रखा जाता है दीपक जलाने वाले का मुख दक्षिण दिशा की तरफ रहता है।
इस दिन सूर्यास्त के बाद ईशान कोण में गाय के घी का दीपक लगाने से सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है, सर्वपितृ अमावस्या के दिन अपने पुत्रों के नाम पर जरूरतमंदों ब्राह्मणों को यथासंभव दान दक्षिणा दी जानी चाहिए।