नरेंद्र भाले
राजा और रंक में केवल इतना ही फर्क है जितना केकेआर और किंग्स इलेवन में। ऐसा लग रहा है कि कुछ भी हो जाए हम तो अंक तालिका में नीचे से ही अव्वल आएंगे। ऐसे मिजाज वालों को ही किंग्स कहते हैं।
ऑरेंज कैप की दौड़ के प्रबल दावेदार मयंक अग्रवाल (56) तथा के एल राहुल (74) ने पहले विकेट की साझेदारी में मजबूत 115 रन जोड़ दिए। राहुल का मात्र 2 रन पर रसैल ने कैच छोड़ा और बंदे ने इसे शिद्दत से भुना लिया। बाद में यह दोनों क्या गए जीत के पतन की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई। मयंक को प्रसिद्ध कृष्णा ने तथा निकोलस पूरन (16) को सुनील नारायण ने चलता कर संकट पैदा कर दिया।
इतना ही नहीं कृष्णा ने प्रभ तथा राहुल के विकेट निकालकर हरियाली में रनों का सूखा पैदा कर दिया। सारी जिम्मेदारी मैक्सवेल प्रथा मनदीप पर आ गई। यहां से लक्ष्य मुश्किल नहीं था तो आसान भी नहीं। अंतिम ओवर सुनील लेकर आए और नारायण नारायण कर गए।
इस ओवर में मैक्सवेल ने 7 रन लिए, फिर मनदीप का विकेट लेकर सुनील ने दबाव को शिखर तक पहुंचा दिया। अंतिम गेंद पर मैच टाई करने के लिए छक्का चाहिए था और मैक्सवेल ने गेंद आसमान में उछाल दी, सभी के दिल हलक में आ गए। यहां खुदा मेहरबान नहीं हुआ और गेंद बाउंड्री लाइन से एक इंच पूर्व टप्पा खाकर सीमा रेखा के पार चौके के लिए चली गई। केकेआर की मात्र 2 रन से विजय किंग्स को रंक बना गई।
इसके पूर्व केकेआर की हालत शुरुआत से ही खराब थी बल्लेबाज गेंद से तालमेल बैठाने में सफल नहीं हो रहे थे। राहुल त्रिपाठी , नितीश राणा तथा माँर्गन (24) जल्दी लौट गए। यहां से आगे की कहानी युवा शुभमन गिल तथा कप्तान कार्तिक के बीच सिमट गई। दुर्भाग्य से खुद के ही कॉल पर शुभमन (57) रन आउट हो गए। दूसरी तरफ कार्तिक जमकर खेलें तथा 29 गेंदों में 58 रनों की जांबाज पारी खेल गए। उन्होंने 5 चौके तथा दो छक्के उड़ा कर स्कोरबोर्ड को सम्मानजनक चेहरा प्रदान किया। अंतिम क्षणों में वह भी रन आउट हो गए लेकिन 164 का स्कोर सुकून दे रहा था, जो मुश्किल नहीं तो कतई आसान भी नहीं था। इस खटराग का मतलब यह कतई नहीं है की प्रसिद्ध कृष्णा तथा सुनील नारायण को इस महा कंजूस जीत का श्रेय नहीं जाता। कृष्णा ने विकेट पर लंगर डालकर बैठे मयंक तथा राहुल को न केवल चलता किया बल्कि 19वें ओवर में मात्र 6 रन देकर 2 विकेट भी लिए। सुनील ने भी निकोलस पूरन तथा मनदीप के विकेट तो लिए ही अंतिम ओवर में मैक्सवेल जैसे धाकड़ को सफलतापूर्वक शांत रखा। अच्छा खेल रहे पूरन यदि सुनील को हल्के में नहीं लेते तो शायद कहानी कुछ और होती तथा राजा राजा ही रहता।