अर्जुन राठौर
2 साल पहले कोरोना महामारी ने अजय राठौरजी को हमसे छीन लिया अजय राठौर के बारे में एक ही बात कही जा सकती है कि वे अजातशत्रु थे। राजनीति में अपनी सक्रियता और विधायक का चुनाव लड़ने के बावजूद उनका कभी कोई दुश्मन नहीं बना इंदौर ही नहीं पूरे मध्यप्रदेश में वे बेहद लोकप्रिय थे अपने मिलनसार और सौम्य व्यक्तित्व के कारण उनसे मिलने के बाद ऐसा महसूस होता था कि मानो एक सच्चे इंसान से हमारी मुलाकात हुई है ।
बातचीत के दौरान वे अपना मत स्पष्ट कह देते थे ,इस बात की कतई परवाह नहीं करते थे कि सामने वाले पर इसका क्या असर होगा लेकिन कभी किसी को बुरा भी नहीं कहते थे राजनीति को लेकर उनका सोच स्पष्ट था वे राजनीति को जन सेवा का माध्यम मानते थे यही वजह है कि उन्होंने कभी भी ऐसे लोगों को प्रोत्साहन नहीं दिया जो राजनीति में आकर धंधे बाजी करना चाहते थे और सबसे बड़ी बात तो यह है कि कांग्रेस पार्टी से लेकर भारतीय जनता पार्टी और अन्य तमाम दलों के नेता उनकी बहुत इज्जत करते थे। मुझे दैनिक भास्कर से लेकर नवभारत और संस्कार चैनल तक में लगभग 30 वर्षों तक कार्य करने का मौका मिला लेकिन इस दौरान किसी ने भी मुझसे अजय राठोर के बारे में गलत नहीं कहा सभी ने उनके व्यक्तित्व की और व्यवहार की प्रशंसा की।
वे सचमुच अजातशत्रु बन गए थे उनके व्यक्तित्व की एक सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे राजनीति में जितने साफ-सुथरे थे अपने व्यवहार में भी उतने ही सुलझे हुए थे उनसे मेरी अंतिम मुलाकात हुई थी एक वैवाहिक कार्यक्रम में जो नीमा नगर के पास से गार्डन में आयोजित किया गया था इसमें उन्होंने मुझे बताया कि वे किसी भी शादी ब्याह में खाना नहीं खाते हैं मैंने उनसे बहुत आग्रह किया कि कुछ तो मेरे साथ ले लो लेकिन उन्होंने हर टेबल पर मेरा साथ दिया लेकिन खुद ने कुछ भी नहीं खाया।
के रीगल चौराहे पर स्थित गोविंद खादीवाला जी के पेट्रोल पंप पर उनकी नियमित बैठक थी और पूरे इंदौर शहर को इस बात की जानकारी रहती थी कि अजय राठौर से मिलना है तो शाम के समय पेट्रोल पंप पहुंच जाएं । वहां पर वे सभी से बड़े स्नेह के साथ मिलते। राजनीति के बदलते स्वरूप को लेकर खुलकर चर्चा होती इस पूरी चर्चा में अजय राठौर कभी भी किसी को व्यक्तिगत रूप से दोष नहीं देते।
पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय माधवरावजी सिंधिया से उनकी नजदीकी जगजाहिर थी माधवराव सिंधिया उन्हें बहुत पसंद करते थे सिंधिया जी के जाने के बाद अजय राठौर धीरे-धीरे राजनीति से दूर हटते चले गए उन्होंने कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया अगर वे चाहते तो समझौता करके राजनीति में किसी भी बड़े पद पर पहुंच सकते थे। इस अर्थ में अजय राठौर वास्तव में बहुत ही बिरले इंसान थे और ऐसे इंसान का हमारे बीच असमय ही चले जाना एक बहुत बड़ी क्षति है जिसकी पूर्ति कभी भी नहीं हो पाएगी। आज उनकी द्वितीय पुण्यतिथि पर उनके परिवार के लोगों ने उन्हें याद किया है और उनके मित्रों ने भी उन्हें दिल से याद किया। सचमुच अजय राठोर जैसे व्यक्तित्व को भुला पाना इतना आसान नहीं है।