जय नागड़ा
“बात 13 अप्रेल 1999 की है जब मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने खण्डवा जिले के ग्राम पुरनी में एक जनसभा में इंदिरासागर बांध के मुआवजों को लेकर बड़ी घोषणा की कि यहाँ डूब क्षेत्र के किसानो को पडोसी हरदा जिले के कमांड एरिया की दर पर मुआवज़ा दिया जायेगा। ” तब तत्कालीन भाजपा सांसद नंदकुमार सिंह चौहान ने इसका मखौल उड़ाते हुए कहा कि ” क्यों राजा साहब लोगो से मज़ाक करते हो ??
यदि आपने यह सच में कर दिखाया तो मै सार्वजनिक तौर पर आपके पैर छूकर ,क्षेत्र की जनता की तरफ़ से धन्यवाद ज्ञापित करूँगा… श्री चौहान को कतई भरोसा नहीं था कि कंगाली की कगार पर बैठी दिग्विजय सरकार इतना मुआवजा कभी देगी… लेकिन दिग्विजय सिंह ने अपनी घोषणा को पूरा कर दिखाया तब कुछ समय बाद ही खण्डवा के एक कार्यक्रम में नंदकुमार सिंह चौहान और दिग्विजयसिंह जी का आमना-सामना हुआ तब नन्दू भैया ने स्वयं माईक से अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण कराया और सार्वजानिक तौर पर दिग्विजय सिंह जी के पैर छू लिए… राजनैतिक मंचो पर यह बहुत दुर्लभ और अविस्मरणीय दृश्य था।
दरअसल यह सहजता ,सौम्यता और शिष्टता ही थी नंदकुमार सिंह चौहान की कि उनके घुर विरोधी भी उन पर कभी व्यक्तिगत हमले नहीं करते। भाजपा के वरिष्ठ नेता नंदकुमार सिंह चौहान मध्यप्रदेश की राजनीति का सबसे सौम्य और शालीन चेहरा ही नहीं थे बल्कि अजातशत्रु थे। उनके विरोधी भी उनके आचरण और व्यवहार के प्रशसंक रहे। आरोप -प्रत्यारोप की राजनीति के इस दौर में भी उन्होंने महज़ चुनाव जीतने के लिए मर्यादायें नहीं उलाँघी , अपने विरोधियो को भी पूरा सम्मान दिया। सहजता और सरलता उनमे ऐसी कि हर किसी को अपना बना लेते ,वे भाजपा के उन चुनिंदा उदार चेहरों में से थे जिन्हे मुस्लिम मतदाताओं का भी उतना ही प्यार मिला जितना कट्टरवादी हिन्दुओ का।
मध्यप्रदेश के अंतिम छोर के महाराष्ट्र की सीमा से लगे बुरहानपुर के छोटे से गांव शाहपुर की नगरपंचायत से शुरू होकर देश के राजधानी दिल्ली में संसद के गलियारों तक का सफ़र नंदू भैया के लिए उतना ही सहज था जितने वे स्वयं रहे। दो बार शाहपुर नगर पंचायत अध्यक्ष चुनने के बाद वे 1985 से 1996 तक लगातार तीन बार भाजपा से विधायक रहे ,यह वह दौर था जब प्रदेश में भाजपा के विधायकों की संख्या गिनती की हुआ करती थी। इसके बाद 1996 से वे अपने विधानसभा क्षेत्र से बाहर निकलकर खण्डवा संसदीय क्षेत्र की राजनीति में आये तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
7 लोकसभा चुनावों में वे 6 बार जीतकर संसद तक पहुंचे जिसमे उन्होंने कांग्रेस के कई दिग्गजों को पछाड़ा। 68 वर्षीय श्री चौहान ने मात्र 25 वर्ष की उम्र में शाहपुर नगर पंचायत का अध्यक्ष पद संभाला। इसके बाद उन्होंने समाजसेवा के माध्यम से आम जनता में ऐसी गहरी पैठ बनाई कि स्थानीय लोग जात- पात , पार्टी आदि से ऊपर उठकर नन्दू भैया के साथ हो लिये। शाहपुर पहले से कांग्रेस का गढ़ रहा लेकिन जब-जब भी यहाँ भाजपा से नंदकुमार सिंह चौहान होते लोग उनके साथ खड़े होते लेकिन भाजपा से यहाँ कोई और प्रत्याशी चुनाव में होते तो लोग कांग्रेस के साथ चले जाते। इस स्थिति के चलते नन्दू भैया को उनकी ही पार्टी के नेता घेरने लगे कि उन्होंने शाहपुर में सिर्फ स्वयं को मजबूत किया है पार्टी को नहीं। इसी तोहमत के चलते लगातार तीन बार विधायक बनने के बाद भी जब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया।
अब नन्दू के सामने सबसे बड़ी चुनौती ही इस तोहमत से उबरना था। उनके लिए सबसे बड़ा चुनावी मुकाबला ही शाहपुर के विधानसभा चुनाव में था जब उनका मुकाबला कांग्रेस के दिग्गज नेता ठाकुर शिवकुमार सिंह से था जो स्वयं उनके राजनैतिक गुरु भी थे। यह इतना पेचीदा चुनाव था जिसमे बड़े राजनैतिक विश्लेषक भी पसोपेश में थे कि नतीजे क्या होंगे ? मैंने जब उस चुनाव की रिपोर्टिंग की तब पाया कि वहां चुनाव में न कोई कर्कशता है और न कहीं आरोप-प्रत्यारोप।
जब मैंने मतदाताओ के मन की थाह लेनी चाही तो महसूस किया कि वे शिव भैया का बहुत “सम्मान” करते है और नन्दू भैया को “स्नेह” , इस तरह से वह चुनाव “सम्मान” और “स्नेह” के बीच हुआ…जाहिर है स्नेह को जितना था ,चूँकि इस रिश्ते में दूरियां कम होती है। बस वही एक चुनाव था जिसके बाद भाजपा को नन्दू भैया में एक बड़े नेता की सम्भावनायें दिखी और वह उनपर लगातार दांव लगाती रही। लगातार सात बार लोक सभा चुनावो में वे सिर्फ एक बार 2009 में कांग्रेस के अरुण यादव से मात खाये लेकिन अगले ही चुनाव में उन्होंने फिर अपनी जगह कायम कर ली। सांसद ,भाजपा जिला अध्यक्ष से लेकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने खंड़वा और बुरहानपुर जिले में पंचायतो से लेकर सभी विधानसभाओं ,नगर पंचायतो से लेकर नगर निगमों तक हर क्षेत्र में भाजपा की पताका फहराकर अपनी ही पार्टी के विरोधियों को भी माकूल जवाब दे दिया।