अहिल्या नगरी इंदौर आरएसएस का विराट अवतार देखेगी, इस बार 400 से होगा पथ संचलन

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नितिनमोहन शर्मा

स्वर्णिम जयंती के ठीक पहले अहिल्या नगरी इंदौर आरएसएस का विराट अवतार देखेगी। संघ की शक्ति का ये प्रकटीकरण पथसंचलन के जरिये होगा। इस बार ये पथ संचलन हर बरस से हटकर होंगे। एक दो नही, 400 के लगभग पथ संचलन इस बार शहर की सड़कों पर कदमताल करेंगे। हर शाखा का अपना शक्ति प्रदर्शन होगा। यानी हर शाखा का स्वयम का पथ संचलन। ये कदमताल फिर भले ही वो 20 स्वयंसेवकों के साथ हो या फिर 200 के लेकिन होगी शाखा स्तर पर ही। आरएसएस ने इंदौर को 31 नगरों में विभाजित किया है।

प्रत्येक नगर में औसत 10 प्रभात शाखाएं है। इस हिसाब से 310 पथ संचलन तो प्रभात शाखाओं के ही निकलेंगे। इसके अलावा बाल-शिशु, तरुण-युवा और कॉलेज विद्यार्थियों के पथ संचलन अलग से निकलेंगे। ये नगर स्तर पर निकलेंगे। 31 नगर के हिसाब से ये तीन श्रेणी के पथसँचलनो की संख्या 93 के करीब रहेगी। आरएसएस 1925 में अस्तित्व में आया। 2025 में संघ को 100 बरस पूर्ण हो जाएंगे। स्वर्णिम जयंती के पूर्व आरएसएस के इस विराट अवतार के प्रकटीकरण की संघ हलकों ओर शाखा स्तर पर ज़ोरदार तैयारी चल रही है।

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हम उत्तर मुंह तोड़ दे..

हम उत्तर मुंह तोड़ दे
हम उत्तर मुंह तोड़ दे…
बलिदानों के पथ पर वीरों
हम अपने पग मोड़ दे..

मातृभूमि की वंदना में गूंजते इन स्वरों के साथ आरएसएस की कदमताल शहर की सड़कों पर होगी। दिन होगा विजयादशमी का ओर त्योहार दशहरे का। रावण पर राम की विजय का पर्व। सनातन की शक्ति का प्रतीक पर्व ही आरएसएस ने अपने विराट अवतार के प्राकट्य के लिए चुना। यू भी आरएसएस के पथ संचलन दशहरा पर ही निकलते है लेकिन इस बार आरएसएस एक दो नही, 400 स्थानों से अलग अलग पथ संचलन निकाल रहा है।

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शहर का ऐसा कोई हिस्सा नही रहेगा, जहा संघ की कदमताल नही होगी। सुबह से शाम तक पथ संचलनो का दौर चलेगा। पहले शाखा स्तर से पथ संचलन निकलेंगे जो अपनी अपनी शाखा के क्षेत्र में निकलेंगे। आरएसएस की संगठन रचना के अनुरूप 31 नगरों में संघ की ये हलचल होगी। इस बार के पथ संचलनो में बाल युवा, तरुण ओर स्टूडेंट्स स्वयंसेवक शामिल नही होंगे। इनके अलग से पथ संचलन निकलेंगे। ये नगर के अनुसार निकलेंगे। शाखाओं के हिसाब से नही। 31 नगर में तीन श्रेणी में ऐसे 93 पथ संचलन निकलेंगे।

महामारी बनी वरदान

आरएसएस ने कोरोना काल मे भी अपनी गतिविधियों को शिथिल नही किया था। उस दौर में भी शाखाएं लगी ओर पथ संचलन निकले। चूंकि भारत महामारी का सामना कर रहा था। लिहाजा संघ में भी “सोशल डिस्टेन्स” का पालन किया ओर भीड़ भरे आयोजन से स्वयम को दूर क़िया। तब एक साथ सामुहिक पथ संचलन निकालने की बजाय तय किया गया कि शाखा स्तर पर ये काम किया जाए। इसका परिणाम के रहा कि पूरा फोकस शाखा पर केंद्रित किया। नतीजा ये रहा कि हर शाखा का पथ संचलन उम्मीद से दुगनी संख्या के साथ मुकम्मल हुआ। हर शाखा पर संख्या बढ़ गई। महामारी आरएसएस की शाखा के लिए वरदान बन गई। उसी प्रयोग को स्वर्णिम जयंती वर्ष के पूर्व आरएसएस ने इस साल लागू कर लिया।