इंदौर। भारत की ही नहीं, विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत के संरक्षण दिवस के रूप में हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा पर संस्कृत दिवस मनाया जाता है. भारत सरकार ने इसे 1969 में मनाने की शुरुआत की, ताकि लोगों में हमारी प्राचीन, समृद्ध और सक्षम भाषा के प्रति संरक्षण का भाव जागे। इसके अध्ययन के प्रति झुकाव बढ़ें। इसी उपलक्ष्य में पागनिसपागा स्थित बाल निकेतन संघ विद्यालय परिसर में संस्कृत दिवस पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में विद्यार्थियों द्वारा संस्कृत में श्लोक, गुरू स्त्रोत, पर्यावरण पर जन्मदिवस गीत, वेद पाठ ज्योर्तिलिंग, नर्मदाष्टक, वंदे मातरम्, नाटक, नृत्य नाटिका, राष्ट्रीय चिन्ह पर विद्यार्थियों द्वारा सुंदर प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम के मुख्य अथिति के रूप में सेवानिवृत्त राजभाषा अधिकारी एवं वरिष्ठ साहित्यकार हरेराम वाजपेयी, कवि प्रदीप नवीन, संतोष मोहंती, संस्था सचिव डॉ नीलिमा अदमने, राजन फडणीस एवं विद्यालय प्राचार्य संदीप धाकड़ मौजूद रहे।
इस अवसर पर बाल निकेतन संघ की सचिव डॉ. नीलिमा अदमने ने संस्कृत में अपने उद्बोधन की शुरआत की ‘काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च, अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं’ श्लोक के माध्यम से उन्होंने विधार्थियों को एक अच्छे जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि विधायर्थी जीवन बेहद अहम् है, यह जीवन का शिल्पकाल है। संस्कृत दिवस के महत्त्व को बताते हुए उन्होंने कहा ” श्रावण पूर्णिमा को ही संस्कृत दिवस इसलिए मनाया जाता है क्योंकि प्राचीन भारत में यह दिवस नवीन शिक्षा सत्र के प्रारंभ का दिन होता था। संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं का मूल है, हमारी संस्कृति की जड़े भी वहीँ से निकलती है। संस्कृत सबसे बड़े शब्दकोष वाली भाषा है। हम गौरवान्वित महसूस करते हैं कि हम ऐसी माटी से आते हैं जहाँ से यह देवभाषा निकली।”
संस्कृत दिवस की शुभकामनाएं देते हुए एवं संस्कृत का महत्त्व समझाते हुए श्री वाजपेयी ने कहा ” संस्कृत सीखे बिना हम अपने उस साहित्य को नहीं जान सकते, जो ऋषि मुनि और तपस्वी धरोहर के रूप में छोड़ गए हैं। इस भाषा को बोलने, सीखने से उच्चारण शुद्ध और प्रभावी होता है। हमें अपनी भाषा और अपनी संस्कृति पर अधिक जोर देना चाहिए, इसके अथाह समन्दर में जितनी बार गोते लगाएंगे, उतनी ही बार मोती हाथ लगेंगे। बाल निकेतन संघ ‘वर्तमान समय की शिक्षा व संस्कृति की अमूल्य धरोहर’ है, अहिल्या नगरी के लिए गर्व की बात है कि बाल निकेतन जैसी संस्था शहर में है।”