चार मास के लगन लिखाकर दूल्हा बन आया सावन मास, बूंदों का सेहरा बना, बादल बने बाराती

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नितिनमोहन शर्मा

अंबर पर बादल बाराती बनकर डोलने लगे है. नव वधू सी सज धज के कुदरत तैयार हो गई है.वसुंधरा ने भी हरियाली की चुनर ओढ़ ली है. चहु और मोरन के शोर गूंजने लगे है. कोयल की कुहुक के स्वर गुंजायमान होने लगे है. पपीहा भी पीहू पीहू गा रहा है. पंछियों ने अपने कलरव गान की तान छेड़ दी है. चातक-खग-मोर के सामुहिक स्वर सब दिशाओं से उठने लगे है. दामिनी दमकत लगी है. पत्ता पत्ता इठलाते हुए बूंदों की मनुहार में लग गया है. लता-पताकाएं झूम रही है. कुंज-निकुंज हरितिमा से आच्छादित हो चले है. वन-उपवन भी नहा धोकर सज संवर गए है. नदिया निर्मल नीर से प्रवाहमान हो चली है. ताल-तलैया ओर सरोवर में हिलोरें शुरू हो गई है. हर तरफ बस हरा ही हरा. देख री सखी देख, हरियालो सावन आयो है।

दूल्हा बन आयो है री सावन। चौमासे के लगन लिखवाकर आया है सावन। बूंदों का सेहरा पहनकर आये सजीले सावन के लिए वीर वधु से धरती सज उठी है। झूम झूम कर रही है लताये नव पल्लव से सजे धजे बृक्ष शीतल बयार के साथ नृत्य करने लगे है। देख न सखी देख वो मृत्यंजय भगवान आशुतोष ने भी अपनी जटाएं खोल दी है. बाघम्बरधारी ने जटाओं को ऐसा झटका की समूची धरा तरबतर हो चली है। प्रकृति के अनुपम श्रंगार का अनुपम मास सावन आ गया.

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शिवालयो में घन्टानाद शुरू हो गया है. अपने आराध्य की अगवानी में नंदीगणों का उत्साह कुलांचे मारने लगा है। राजा महाँकाल का आंगन भक्तों की अगवानी को आतुर हो चला है। राजा भी प्रजा से मिलने को उत्कण्ठ हो चले है। हरि विष्णु का शयनकाल शुरू हो गया है। अब समूची कायनात की कमान भूतनाथ सरकार के हाथ मे आ गई है। पूरे चौमासे अब हर हर बम बम का शंखनाद गुंजायमान होगा। अवन्तिका पूरी उज्जयनी में राजा पालकी में सवार हो प्रजा के बीच जाएंगे तो माई नर्मदा सी पुण्य सलिला के तट भी भोले की अगाध भक्ति के साक्षी बनेंगे।

कंकर कंकर शंकर वाली माँ रेवा के आंचल में शिव शंकर नाव में सवार हो नोकायान करेंगे। ओंकारनाथ की नगरी में तो भगवान ओंकारेश्वर रंग गुलाल की भर मुट्ठी ले भक्तों के बीच उस पार से इस पार आएंगे। खरगोन में छबीला सजेगा ओर डोल निकलेगा तो धार में धारनाथ का जलवा कायम होगा। कोटेश्वर के गंगानाथ का भी आमंत्रण आ गया है तो मांडू की हसीन वादियों से नीलकंठेश्वर महादेव का भी बुलावा आ गया है। महिष्मति (महेश्वर) के नयनाभिराम घाटों से कांवड़ियों ने जल भर कांवड़ उठा ली है ओर वे चल पड़े है सुंदर वादियों के बीच से गुजरते हुए अपने आराध्य से मिलने उज्जैन।

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क्षिप्रा का निर्मल नीर रामघाट की सीढ़ियों से बार टकरा रहा है. छटपटाहट कर रहा है कि कब राजा महाँकाल आये और कब उनका में जलाभिषेक करू। यही हाल यहां के 84 महादेव का है। और अहिल्यानगरी का तो पूछो ही मत। भगवान भूतेश्वर महादेव ने गाजे बाजे के साथ श्मशान में डेरा डाल दिया है। रुद्राभिषेक के स्वर अलसुबह से गूंजने भी लगे है। नंदी देवताओं के साथ वो रनगाड़ा भी कस लिया गया है जो सावन के आखरी सोमवार पर भूतनाथ सरकार की बारात में शामिल होगा। बगल में वीर अलीजा सरकार के आंगन में संतानेश्वर महादेव की जलाधारी भी जगमगा गई है।

पंचकुइया आश्रम में तो साक्षात द्वादश ज्योतिर्लिंग विराजमान है। वनखण्डी में नमक चमक के पाठ शुरू हो गए है। किला मैदान के गुटकेश्वर महादेव की पालकी भी रंग रोगित हो गई है जिसमे विराजकर गुटकेश्वर महादेव नगर भृमण पर निकलेंगे।  होलकरी आन बान शान के साथ भगवान जबरेश्वर महादेव पर भी सेहरा धरा गया है। शंकरबाग में सरस्वती नदी के तट से सटकर कांटाफोड़ महादेव भी नित्य नूतन श्रंगार से लुभाने को आतुर है।

देवगुराड़िया की वादियों में विराज रहे महादेव के जलाभिषेक के लिए गोमुख से शीतल जल झर झर झरने लगा है। माई नर्मदा ओर भगवती क्षिप्रा के संगम से सटे केवडेश्वर महादेव की अनुपम छटा देखते ही बन रही है। पार्थिव शिवलिंग कतारबद्ध होकर परदेशीपुरा के गेन्देश्वर महादेव मन्दिर में पूजित होंगे। ठाकुर संग ठकुराणी भी झूलेंगी देख सखी मृत्यंजय भगवान आशुतोष ही नही योगेश्वर श्रीकृष्ण और स्वामीनी जी राधा रानी का भी तो ये प्रिय मास है। ये अनुपम मास श्यामा श्याम की अनूठी लीलाओं का साक्षी भी है।

सबसे अदभुत है इस महीने होने वाली झूलन लीला। प्रिया प्रियतम दोनो संग संग हिंडोरे में विराजेंगे। ठकुराणी के साथ ठाकुरजी की ये झूलन लीला पूरे सावन मास चलेगी। प्रतिदिन सायंकाल में इस लीला के दर्शन का साक्षी बनेगी गोवर्धननाथजी की हवेली। मल्हारगंज स्थित इस हवेली ( मन्दिर ) से लगे मदनमोहन जी का मन्दिर ही नही, मोर-मुकुटजी के मन्दिर भी झूलन लीला के उत्सव के साक्षी बनेंगे। व्यंकटेश भगवान के छत्रीबाग सहित गुमाश्तानगर और एरोड्रम रॉड स्थित देवालयो में भी हिंडोरे पर श्यामा श्याम झूलेंगे।