पाकिस्तान नेपाल के बाद थाईलैंड तीसरा विदेशी धरती पर भी सड़क मार्ग से जाएं कोलकत्ता से थाईलैंड वाय रोड

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नीरज राठौर। आपको यकीन नहीं होगा कि 70% यह रोड बन भी चुका है। 1360 किलोमीटर लंबा यह हाइवे भारत-म्यंमार-थाईलैंड को जोड़ेगा।कोलकत्ता से सिलगुड़ी-कूचबिहार होते हुए बंगाल के श्रीरामपुर से यह रोड आसाम में प्रवेश करेगा वहां से दीमापुर ओर नागालैंड होते हुए मणिपुर की राजधानी इम्फाल पहुंचेगा।फिर मणिपुर-म्यंमार बॉर्डर मोरेह से यह म्यंमार को जोड़ेगा।म्यंमार के शहरों बागो-यांगून से होते हुए यह थाईलैंड पहुंचेगा।सोचिए आप अपनी गाड़ी य बाइकर अपनी बाइक से तीन देश घूम लेंगे बिना हवाई सफर किए।ज्यादा से ज्यादा 1360 किलोमीटर के 20 से 25 घँटे लगेंगे पर लांग ड्राइव के शौकीनों के लिए तो यह सफर रोमांच से भरपूर होगा।इस रोड को बनाने का असली मकसद नार्थ ईस्ट के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूती देने के साथ भारतीय माल को सड़क मार्ग से वाकी एशियाई देशों तक पहुंचाना है ताकि चीन को टक्कर दी जा सके क्योंकि चायनीज़ माल से एशिया के वाकी देशों की मार्किट भरी पड़ी है।तो चलते हैं न थोड़े इंतज़ार के बाद।

विस्तृत जानकारी

Kolkata-Bangkok highway- पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) ने साल 2002 में इस हाइवे का प्रस्‍ताव दिया था. भारत और थाइलैंड में इस हाइवे का काम लगभग पूरा हो चुका है. म्‍यांमार में काम अभी बाकी है. हाइवे के बन जाने से भारत से थाइलैंड कार लेकर भी जाया जा सकेगा। इस त्रिपक्षीय सड़क परियोजना का काम 2027 तक पूरा कर लिया जाएगा. हाइवे परियोजना भारत की महत्वाकांक्षी ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ का हिस्सा है. इससे भारत के म्यांमार और थाईलैंड के साथ संबंधों को मजबूत बनाने में भी मदद मिलेगी.

Kolkata-Bangkok highway- आने वाले कुछ वर्षों में भारत से थाइलैंड जाने के लिए आपको फ्लाइट पकड़ने की आवश्‍कता नहीं होगी. आप भारत से थाइलैंड कार से भी जा सकेंगे. यह संभव होगा भारत, म्‍यांमार और थाइलैंड द्वारा मिलकर बनाए जा रहे कोलकाता-बैंकॉक हाइवे (Kolkata-Bangkok highway) से. 1360 किलोमीटर लंबा भारत-म्यांमार-थाईलैंड राजमार्ग का निर्माण 2027 में पूरा होने की उम्‍मीद है. भारत और थाइलैंड में इस हाइवे का काम लगभग पूरा हो चुका है. म्‍यांमार में इसका काम बाकी है. हाल ही में कोलकाता में बिम्सटेक देशों के सम्मेलन में म्यांमार और थाईलैंड के मंत्रियों ने दावा किया था कि इस त्रिपक्षीय सड़क परियोजना का काम 2027 तक पूरा कर लिया जाएगा. यह अंतरराष्‍ट्रीय रोड परियोजना भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्‍वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के दिमाग की उपज है.

साल 2002 में वाजपेयी ने थाइलैंड और म्‍यांमार को इस परियोजना का प्रस्‍ताव दिया था. वाजपेयी ने भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ (आसियान) के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए इस परियोजना का प्रस्ताव रखा था. वाजपेयी का कहना था कि इस राजमार्ग को थाइलैंड से आगे कंबोडिया से होकर वियतनाम और फिर लाओस तक बढ़ाया जा सकता है. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार जाने के बाद यह महत्‍वाकांक्षी परियोजना केवल कागजों पर ही रह गई. 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद इस पर फिर से काम शुरू हुआ है.

1360 किलोमीटर लंबाई
कोलकाता-बैंकॉक हाइवे की कुल लंबाई 1360 किलोमीटर है. इसका सबसे ज्‍यादा हिस्‍सा भारत में पड़ता है. थाइलैंड में इसका सबसे कम हिस्‍सा है. थाइलैंड और भारत में इस राजमार्ग का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है. म्‍यांमार में यह प्रोजेक्‍ट अभी अटका है. इसका कारण वहां की बिगड़ी कानून व्‍यवस्‍था और वित्‍तीय संकट है. भारत और म्यांमार के बीच यह हाइवे दो खंडों में बन रहा है. इनमें 120.74 किलोमीटर कलेवा-याग्यी और 149.70 किलोमीटर तामू-क्यिगोन-कलेवा (TKK) खंड शामिल है. तामू-क्यिगोन-कलेवा खंड पर अप्रोच रोड के साथ 69 पुलों का निर्माण भी शामिल है. नवंबर 2017 में टीकेके खंड और मई 2018 में कलेवा-याग्‍यी खंड काम पूरा हो गया था. अब इन दोनों खंडों पर हाइवे को फोर लेन करने का काम शुरू किया गया है.

यह होगा रूट
यह त्रिदेशीय हाइव कोलकाता से शुरू होकर उत्तर में सिलीगुड़ी जाता है. आगे कूचबिहार होते हुए बंगाल से श्रीरामपुर सीमा के माध्यम से असम में प्रवेश करेगा. दीमापुर से नगालैंड में प्रवेश करेगा. राजमार्ग मणिपुर के इम्फाल के पास मोरेह नामक जगह म्यांमार में प्रवेश करेगा. म्‍यांमार के मांडले, नैप्यीडॉ, बागो, यंगून और म्यावाडी शहरों से होते हुए मॅई सॉट के माध्यम से थाईलैंड में प्रवेश करेगा.

भारत के लिए अहम परियोजना
भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय हाइवे परियोजना भारत की महत्वाकांक्षी ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ का हिस्सा है. इस परियोजना के पूरा होने के बाद भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा. म्यांमार, थाईलैंड, हांगकांग और सिंगापुर सहित कई एशियाई देशों तक भारत की पहुंच सुगम हो जाएगी. इस परियोजना का सामरिक महत्‍व भी है. इससे भारत के म्यांमार और थाईलैंड के साथ संबंधों को मजबूत बनाने में भी मदद मिलेगी.