दिनेश गुप्ता
पिछले एक सप्ताह में कांग्रेस के दो विधायकों के पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में चले जाने से पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के नेतृत्व पर सवाल खड़े होने लगे हैं। कमल नाथ मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी हैं। विधायक दल के नेता का पद भी उन्होंने अपने पास ही रखा है। कतिपय कांग्रेस नेताओं की शिकायत है कि सत्ता चले जाने के बाद भी कमल नाथ के व्यवहार में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है।
सिंधिया के साथ पार्टी छोड़ गए थे 22 विधायक
कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांगे्रस सरकार का पतन पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ 22 विधायकों के पार्टी छोड़े जाने के कारण हो गया था। लॉकडाउन के तीन माह में पार्टी की गतिविधियां पूरी तरह से ठप पड़ी रही हैं। कई दिनों तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी का कार्यालय भी नहीं खुला था। राज्य में कांग्रेस का संगठन भी बेहद कमजोर स्थिति में है। विधानसभा के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की कमजोरियों का लाभ कांग्रेस पार्टी को मिला। भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा नुकसान ग्वालियर-चंबल अंचल और निमाड़-मालवा में हुआ था। ग्वालियर संभाग में ज्योतिरादित्य सिंधिया के चेहरे के कारण ही 34 में 26 सीटें कांग्रेस के खाते में गईं थीं। विधानसभा चुनाव में सिंधिया के चेहरे का लाभ कांग्रेस को अन्य सीटों पर भी मिला था। भारतीय जनता पार्टी का नारा माफ करो महाराज,अपना नेता शिवराज, चुनाव में सिंधिया फैक्टर के कारण ही गढ़ा गया था।
उप चुनाव के कारण सामने आने से बच रहे हैं नेता
ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर जाने के बाद से कांग्रेस सदमें की स्थिति से अब तक बाहर निकलती हुई दिखाई नहीं दे रही है।कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओ में निराशा साफ दिखाई दे रही है। पार्टी का नेतृत्व पूरी तरह से कमल नाथ के हाथ में आ गया है।कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का भी कोई दखल राज्य की राजनीति में दिखाई नहीं दे रहा है। जीतू पटवारी,मीनाक्षी नटराजन,कमलेश्वर पटेल तथा उमंग सिंघार जैसे नेताओं की जो टीम राहुल गांधी ने तैयार की थी,वह कमल नाथ के नेतृत्व में उभरकर सामने नहीं आ पा रही है। सज्जन वर्मा जैसे पुराने समर्थक ही कमलनाथ के भरोसेमंद दिखाई दे रहे हैं। सज्जन वर्मा पार्टी में प्रभावी नेता के तौर पर नहीं जाने जाते हैं। कमल नाथ, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का कोई उपयोग करते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं। ऐसे नेताओं की तैनाती उप चुनाव के लिए की जा रही है,जिनके समर्थक नेताओं की संख्या दो अंकों में भी नहीं होगी। पार्टी में कमल नाथ को छोड़कर ऐसा कोई नेता नहीं है,जो चुनाव में खर्चे का इंतजाम कर सके। संभवत: यही वजह है कि कांग्रेस के नेता नेतृत्व के लिए आगे आने से बच रहे हैं। यद्यपि पार्टी में ऐसे कई नेता हैं,जो यह मानते हैं कि मौजूदा दौर खुद को नेता के रूप में स्थापित करने का नहीं है। पार्टी की मजबूती का है। पूर्व वन मंत्री उमंग सिंघार का ट्वीट शायद इसी ओर इशारा करता है। सिंघार ने अपने ट्वीट में लिखा- आज का वक्त खुद को नेता बनाने का नहीं पार्टी,सँगठन को मजबूत करने का है।
दिग्विजय सिंह से भी दूरी बना रहे हैं कमल नाथ
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह को अलग-थलग करना शायद कमल नाथ की अगली रणनीति का हिस्सा है। पार्टी के सभी महत्वपूर्ण पदों पर कमल नाथ का कब्जा है यद्यपि उनके समर्थकों की तादाद बेहद कम है। कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं के बीच कमल नाथ से ज्यादा लोकप्रिय और जमीनी चेहरा दिग्विजय सिंह का है। दिग्विजय सिंह की पार्टी के भीतर भूमिका कई तरह के सवाल खड़े करने वाली है। बताया जाता है कि दिग्विजय सिंह अपने समर्थक डॉ.गोविंद सिंह को विधायक दल का नेता बनाने के पक्ष में थे। लेकिन,कमल नाथ इस पद को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए हैं। कमल नाथ का झुकाव बाला बच्चन की ओर दिखाई दे रहा है लेकिन कमल नाथ पद उन्हें भी देने के लिए तैयार नहीं हैं।