कल हम सभी के घरों में और प्रतिष्ठानों में विघ्नहर्ता गणपति बप्पा विराजेंगे !
उनके आगमन का उत्साह सब के मन में है !
खूब तैयारी हो रही है !
बप्पा जो आ रहे हैं !!!!
आईये ससम्मान बप्पा को लाएं !
औऱ मैं प्रार्थना करती हूँ कि बप्पा आप सबके कष्ट हरें और सभी को अनंत आशीर्वाद प्रदान करें !
परंतु
अबकी बार एक नई शुरुआत करते हैं ,
हम वर्षों से बिना सोचे समझे बप्पा की आरती गा रहे हैं
अबकी बार क्या कुछ शब्दों का बदलाव कर सकते हैं ?
भावना वही रहेगी पर शब्द कुछ और होंगे !
अभी तक हम गाते आये हैं
”
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया ”
क्या ये पंक्ति के शब्द बदले जा सकते हैं ?
हम क्यों किसी स्त्री को अपमानित कर रहे हैं ?
और क्यों सिर्फ़ पुत्र प्राप्ति की ही कामना कर रहे हैं !
आइए
अब से एक नई शुरुआत करते हैं
कहेंगे ,
निसंतान को संतान देत , निर्धन को माया !!!!!
भाव तो वही रहा न !!!
भला तो हर स्त्री का
होना चाहिए
और संतान बेटा हो या बेटी अब दोनों बराबर हैं !!!
ये एक छोटे से बदलाव समाज में परिवर्तन लाया जा सकता है !
बीज ही ऐसा डालिए जिससे एक स्वस्थ परंपरा की शुरुआत हो !!!!
किसी की भावना को ठेस भी नहीं पहुंचेगी और समाज में एक नया संदेश भी जाएगा !!!!
क्या कहते हैं ?
हो सकता है ना ?
बहुत कठिन तो नहीं ?
समाज मे बदलाव हम सब मिलकर ही लाएंगे !!!
आईये कल की पहली आरती से ही इसकी शुरुआत करते हैं