कांग्रेस आलाकमान और उनके चमचे पता नहीं कौन-से स्वप्नलोक में जीते हैं. ठोकर खाकर समझदार तो राह पकड़ते हैं, लेकिन गांधी परिवार को सब कुछ लुटाने के बाद भी होश नहीं आया. अगर अपनी राज्य सरकारों को बचा नहीं सकते तो चुनाव लडऩे का फायदा ही क्या है? 10 साल के लिए कांग्रेस सभी तरह के चुनावों से छुट्टी पाए, वैसे भी केन्द्र में उसकी सरकार बनना नहीं है. 2024 का आम चुनाव तो मोदी-शाह राम मंदिर पर ही जीत जाएंगे. वहीं राज्यों में भी सीधे जीतकर या जोड़ तोड़ से सरकार बनाते रहेंगे. जनता ने काँग्रेस को जीता भी दिया तो मप्र की तरह गांधी परिवार सोया रहेगा और सत्ता गवां देगा.. राजस्थान में कई दिनों से तख्तापलट की कवायद चल रही है. जबकि एक प्याली चाय से कांग्रेस नेतृत्व ये मसला कब का सुलझा सकता था. लेकिन 32 दिन लगा दिए सचिन पायलट से राहुल-प्रियंका ने मुलाकात करने में. उसके बाद गहलोत सरकार के बचने की स्थिति नजर आ रही है..वही गांधी परिवार की तरह ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी बचकाने निकले. उन्होंने सचिन को मनाने की बजाय उल्टा उन्हें निकम्मा-नकारा बता बात और बिगाड़ ली. अभी भी अगर उनमें थोड़ी समझ बची हो तो सचिन के घर चाय पीने चले जाएं वरना आज नहीं तो कल उन्हें भी कमलनाथ की तरह सड़क पर आना पड़ेगा क्योंकि मौत ने घर देख लिया है.. मप्र में भी एक महीने से ज्यादा सत्ता परिवर्तन का ड्रामा चला, लेकिन कांग्रेस आलाकमान बेसुध रहा. होना तो यह था कि बैंगलुरु के जिस रिसोर्ट में 22 बागी कांग्रेसी ठहराए गए थे वहां जाकर राहुल-प्रियंका को सीधी बात करना थी और उसके पहले सिंधिया के साथ चाय पी ली होती तो भी एक राज्य नही गवाना पड़ता लेकिन दिल्ली दरबार कुम्भकर्णी नींद सोया रहा. सत्ता बचानी नहीं आती तो बेहतर है कोई चुनाव न लड़ते हुए अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर संगठन के मामले सुलझाए. ये भी सच है कि देश को मजबूत विपक्ष की जरूरत है, ताकि कोरोना , आर्थिक बदहाली से लेकर अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे जनता के उठाए जा सकें. लेकिन इस शून्य को भरने में भी कांग्रेस की कोई रुचि नजर नहीं आती. खरीदे प्रिंट -इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अलावा सोशल मीडिया पर भी भाजपा का कब्जा है. इसलिए एकतरफ़ा जयकारे लगते रहेंगे!