साइकिल किसी का दिल नहीं तोड़ती …

Akanksha
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कौशल किशोर चतुर्वेदी

देश बदला, दुनिया बदली, लोग बदले, विचारधाराएँ बदलीं और सरकारें बदलीं।जब जिसको मौक़ा मिला एक दूसरे का दिल तोड़ने में तनिक भी विचार नहीं किया।देश का दिल मध्य प्रदेश को कहते हैं। मध्य प्रदेश भी इस सब से अछूता नहीं है। हाल ही में सबसे ज़्यादा चर्चा अगर हो रही है तो पेट्रोल डीज़ल के दामों में बढ़ोतरी की। ग़ज़ब की बात यह है कि मध्य प्रदेश में देश का सबसे महँगा डीज़ल और पेट्रोल भराने के लिए उपभोक्ता मजबूर है।निम्न- मध्यम आय वर्ग की ग़रीब जनता जब अपनी मोटरसाइकिल स्कूटर या दोपहिया वाहन की टंकी का ढक्कन पेट्रोल भराने के लिए खोलती हैं तो मानो उसका दिल ही टूट जाता है। प्रदेश का किसान जब खेत की जुताई या अन्य कृषि कार्यों के लिए डीज़ल भराता है तो उसकी आँखें ही भर आती हैं। सरकारें आती जाती रहती हैं पर किसान ग़रीब मज़दूर निम्न आय वर्ग मध्यम आय वर्ग की जनता की क़िस्मत पेट्रोल डीज़ल के भाव की आग से ख़ुद को जला हुआ महसूस करती रही है।अगर किसी ने राहत दी है किसी ने दिल नहीं तोड़ा है किसी ने चेहरे पर मुस्कराहट लाई है तो वो है साइकिल। आज़ादी से लेकर अब तक साइकिलों ने आम ग़रीब जनता का भी साथ दिया है तो राजनेताओं नौकरशाह और व्यवसाइयों पूंजीपतियों सभी के शौक भी पूरे किये हैं।कोई सेहत बनाने के लिए साइक्लिंग का शौक़ फरमाता है तो कोई दिखावे के लिए ही साइकिल चलाता है या फिर विरोध जताने के लिए साइकिल का समय समय पर उपयोग किया जाता है। साइकिल कभी किसी का दिल नहीं तोड़ती। सेहत बनाने वालों का मन भर जाता है वह लौटकर नहीं देखते। दिखावा करने वालों का मन भर जाता है और फिर वो सुध नहीं लेते। विरोध जताने के लिए साइकिल का इस्तेमाल करने वाले तो साइकिल को मानो लाइफ़ टाइम पुरस्कार से नवाजते हैं।साइकिल बुरा नहीं मानती और किसी का दिल भी नहीं तोड़ती। अमीरों का नहीं तो गरीबों का भी नहीं क्योंकि गरीबों को भी साइकिल चलाने के लिए पेट्रोल डीज़ल की परवाह नहीं करनी पड़ती।कभी ज़रूरत पढ़ने पर पंचर बनवा लो या समय पर हवा भरवाते रहो जिसे ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति भी वहन कर सकता है प्यारी साइकिल की सवारी।

साइकिल का दु:ख

साइकिल किसी को याद रखे या भूल जाए लेकिन नेताओं की सवारी को अपने ज़हन से कभी भुला नहीं पाती। सभी दिग्गज नेताओं ने कभी न कभी विरोध प्रकट करने के लिए साइकिल की सवारी की होगी और विरोध के बाद साइकिल को उसके हाल पर छोड़ दिया होगा।फिर साइकिल की तरफ़ मुड़कर देखा भी नहीं होगा। मुख्यमंत्री मंत्री पक्ष विपक्ष के नेता सभी पर यह बात बराबरी से लागू होती है।साइकिल को गर आत्मकथा लिखने का मौक़ा मिले तो वह फूट फूट कर रो पड़ेगी जब इन पलों को लिखने का अवसर आएगा। हालाँकि कहीं न कहीं संतुष्टि भी नज़र आएंगी कि कुछ पलों के लिए ही सही नेताओं ने उन्हें याद रखा। काश़ ऐसा होता की रोल मॉडल बनकर नेता हर दिन साइकिल से दफ़्तर जाते होते तो निश्चित ही हर ख़ास और आम का साईकिल प्रेम सड़कों पर बिखरा बिखरा नज़र आता।पेट्रोल डीज़ल की मार कसाई की तरह आम आदमी की बोटी बोटी करती नज़र न आती।

छलनी-छलनी दिल

देश के दिल मध्य प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता का दिल तो हमेशा ही छलनी छलनी रहता है। विपक्ष में रहते हुए दल दिल की आवाज़ पर इस क़दर मुखर होते हैं मानो वह जनता के कलेजे के टुकड़े और बाक़ी सब दुश्मन नंबर वन। विपक्ष में रहते मानो आँसू ही बहते हैं पेट्रोल डीज़ल के दामों में बढ़ोत्तरी पर जब सरकार दूसरे दल की हो। पर जब ख़ुद सरकार में होते हैं तो विपक्ष की आवाज़ मानो कान तक ही नहीं पहुँच पाती है।मध्य प्रदेश की चर्चा ख़ास तौर पर इसलिए क्योंकि यहाँ पेट्रोल डीज़ल पर वैट टैक्स सबसे ज़्यादा है, अतिरिक्त कर भी भारी भरकम है और पेट्रोल-डीज़ल के दाम आसमान को छू रहे हैं।देश में सबसे अव्वल है मध्यप्रदेश।डीज़ल के दाम बढ़ते हैं तो महँगाई चारों तरफ़ से हमला कर देती है। दिल में दर्द अभी कुछ ज़्यादा है क्योंकि कोरोना ने काम भी छीना है और जान के भी लाले पड़े हुए हैं।

आम आदमी के पेट भरने का ठिकाना नहीं है फिर भी काम के लिए स्कूटर मोटरसाइकिल की टंकी का ढक्कन तो खोलना ही पड़ता है।अब बेचारा ग़रीब आदमी करे तो क्या करे शहर की दूरियाँ इतनी बढ़ गई हैं कि काम के लिए साइकिल भी चलाए तो कितनी।यही कहा जा सकता है कि क़िस्मत का मारा ग़रीब बेचारा। सिर पर आयी तो कोरोना काल में घर पहुँचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर भी साइकिल चलानी पड़ी।एक अच्छी ख़बर यह आयी है कि लॉकडाउन के बाद भी साईकिल की माँग बढ़ी है क्योंकि साइकिल किसी का दिल नहीं तोड़ती इससे सभी वाक़िफ़ हैं।