महाभारतकालीन प्राचीन पांडवेश्वर मंदिर क्षेत्र से ही नहीं देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था केंद्र है।

 लोक मान्यता में कालपी नगर को बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार कहा जाता है, यहां का इतिहास महाभारत कालीन से लेकर मराठा काल से जुड़ा हुआ है।

कालपी में ऐसा शिव मंदिर है जहां कौरवों और पांडवों ने शिवलिंग की आराधना की थी, ये मंदिर लगभग पांच हजार साल पुराना है।

ऐसी मान्यता है कि कौरव ने आकर इस शिवलिंग की पूजा की थी, इसके बाद उन्हें अश्वत्थामा नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी।

कालपी नगर को बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार कहा जाता है, यहां का इतिहास महाभारत कालीन से लेकर मराठा काल से जुड़ा हुआ है।

इसलिए यहां के पुजारी बताते हैं कि इस पातालेश्वर मंदिर में पांडव भी अज्ञातवास के दौरान यहां पर आए थे और उन्होंने शिवलिंग की पूजा की थी।

इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग लगभग 8 फीट नीचे गर्भ गृह में विराजमान है।

शिवलिंग की जन्म पाताल लोक से हुआ है, इसलिए इसका नाम पातालेश्वर मंदिर पड़ा।