10 हजार तो ठीक से बन नहीं सका, अब 50 हजार बनाने की तैयारी में..

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केंद्र सरकार का वर्ष 2020 मे प्रारम्भ 10000 एफ़पीओ (कृषक उत्पादक संघठन) गठन कार्यक्रम नेक इरादे और प्रगतिशील दृष्टिकोण से लाई गई योजना थी , और यह योजना देश मे वाकई मे कृषि क्रान्ति ला सकती थी। यह योजना अब समाप्ती पर है और एक अच्छी योजना कैसे खराब क्रियान्वयन के कारण बर्बाद हो सकता है, का सबसे अच्छा उदाहरण केंद्र सरकार की 10000 एफ़पीओ योजना है।

आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि यद्यपि केंद्रीय एजेंसियां वर्ष 2010 से ही एफपीओ के गठन की गतिविधि में लगी हुई हैं, लेकिन पिछले 14 वर्षों में वे एक भी सफल एफपीओ का गठन नहीं कर पाई हैं। एसएफ़एसी (Small Farmers Agribusiness Consortium) नाबार्ड, और अन्य सरकारी संस्थाओं ने आज तक 15000 से अधिक एफ़पीओ का गठन कर लिया होगा, लेकिन इन संस्थाओं के पास एक एफ़पीओ नहीं है, जिसकी और वो इशारा करके कह सके की “ एफ़पीओ ऐसा होता है ”।

हाल ही मे केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने एफ़पीओ की राष्ट्रिय नीति (National FPO Policy) बनाने के लिए एक एक्स्पर्ट्स ग्रुप का गठन किया, जिन्होने राष्ट्रिय एफ़पीओ नीति दस्तावेज़ का एक ड्राफ्ट आम जनता से सुझाव के लिए खुला रखा था। इस ग्रुप की ज़िम्मेदारी है की राष्ट्रिय एफ़पीओ नीति का दस्तावेज़ तैयार करें, एवं देश मे 50000 एफ़पीओ गठन के लिए एक नई योजना बनाए।

भोपाल मे बसे एक पूर्व बैंकर एवं एफ़पीओ विशेषज्ञ शाजी जॉन जो पिछले एक दशक से एफ़पीओ सैक्टर मे कार्य कर रहे है ने सरकार द्वारा 2010 से चलाये गए एफ़पीओ गठन कार्यक्रमों का विश्लेषण किया है। उनके अनुसार नाबार्ड और एसएफ़एसी द्वारा 2020 से पूर्व मे बनाए गए एफ़पीओ का सफलता दर 5% से कम है। आंकड़ो को समझाते हुए उन्होने बताया की 2020 से पूर्व मध्य प्रदेश मे नाबार्ड और एसएफ़एसी ने मिलकर 250 एफ़पीओ बनाए, जिसमे से सिर्फ 11 एफ़पीओ ही है, जिनके बारे मे कहा जा सकता है वो अभी भी चल रहे है। शेष या तो एमसीए द्वारा स्ट्राइक ऑफ किए गए है, या फिर बंद और निष्क्रिय है जो जल्द स्ट्राइक ऑफ हो जाएंगे।

2020 के बाद मे आई 10000 एफ़पीओ योजना की स्थिति तो इससे भी बदतर है, इन दस हजार मे से 500 एफ़पीओ भी पाँच वर्ष तक जिंदा रहे तो आश्चर्य होगा। शाजी जॉन ने आगे बताया की अभी तक उन्होने एसएफ़एसी और नाबार्ड को लगभग 1200 आरटीआई भेजे है, और उससे प्राप्त जवाब का विश्लेषण करने पर यह समझ मे आता है की नाबार्ड और एसएफ़एसी के अधिकारियों को यह पता ही नहीं है की 10000 एफ़पीओ योजना मे उनको करना क्या है।

योजना मार्गदर्शिका (Scheme Guidelines) मे इन संस्थाओं को दिये जाए जिम्मेदारियों मे इन संस्थाओं ने 5% भी पूरा नहीं किया, क्योंकि इन संथाओं के अधिकारियों को आज तक यह पता ही नहीं चल पाया की उनको करना क्या है, और कैसे करना है। आरटीआई के जवाब से यह पता चला रहा है कि 10000 एफ़पीओ योजना का प्रबंधन तंत्र एवं निगरानी तंत्र पूरी तरह ध्वस्त हो गया है, और अधिकतर एफ़पीओ सिर्फ कागज पर ही चल रहे है।

10000 एफ़पीओ योजना को बर्बाद होने के बाद इन्ही संस्थाओं को अब 50000 एफ़पीओ गठन योजना की कमान सौंपी जाएगी, जिसकी तैयारी ज़ोर शोर से चल रही है। वही पुरानी घिसी पिटी और फेल हुई योजना को अब अँग्रेजी के कुछ नए नाम और शब्द जोड़ कर राष्ट्रिय एफ़पीओ नीति का जामा पहनाकर उतारे जाने की तैयारी है। कार्यक्रम वही रहेगा, बस नया नाम दे दिया जाएगा। उदाहरण के लिए 10000 एफ़पीओ योजना मे जिसे N-PMAFSC कहा गया था, उसका नाम अब CCPC (Central Committee on Policy and Coordination) हो जाएगा। एसएफ़एसी जो 10000 एफ़पीओ योजना मे NIA (Nodal Implementing Agency) अब CNA (Central Nodal Agency) हो जाएगा। 10000 एफ़पीओ योजना का NPMA (National Project Management Agency) अब CPA (Central Professional Agency) हो जाएगा।

राज्यों मे पहले जो SLCC (State Level Consultative Committee) अब SCPC (State Committee on Policy and Coordination) के नाम से काम करेंगे। जिला स्तर पर DMC (District Monitoring Committee) अब FMC (FPO Monitoring Committee) के नाम से काम करेगी। सिर्फ नाम मे ही बदलाव किया है, बाकी काम तो वही करना है जो 10000 एफ़पीओ गठन के लिए किया जाना था।

शाजी जॉन का कहना है की योजना का नाम बदलने से कुछ नहीं होगा, जब तक की एफ़पीओ योजना के नीति निर्माता अपनी सोच नहीं बदले। ये नीति निर्माता वर्ष 2024 मे भी वर्ष 2010 का सोच लेकर चल रहे है, भले ही बातें वो 2030 का कर रहे होंगे। इनके मन मे गाँव के किसान की छवि वही है जो आज से 30 वर्ष पहले का था।

इनके छवि अनुसार गाँव का किसान अभी भी एक गरीब भिखारी है, जो पढ़ना, लिखना और मोबाइल चलाना नहीं जानता, और इनके बुलाने पर इनसे ज्ञान लेने और इनके पूड़ी सब्जी का नाश्ता करने के लिए कहीं भी चला आयेगा। इस बुद्धिजीवी वर्ग का सोच अभी भी यही है की गाँव मे किसान की सबसे बड़ी जरूरत सस्ता खाद और सस्ते बीज की है, और एफ़पीओ बनाकर किसान को 1-2 रुपए सस्ता बीज और खाद बेंच देंगे तो किसानो मे और ग्रामीण क्षेत्र मे समृद्धि आ जाएगी।

सोच यह होना चाहिए की किसान परिवार के युवा पीढ़ी को कैसे एफ़पीओ से जोड़ कर, ग्रामीण युवाओं को अपने क्षेत्र मे ही उचित रोजगार देकर, इस युवा जोश और ऊर्जा को कैसे दिशा दिया जाये। शाजी जॉन ने कहा की उन्होने एक्स्पर्ट्स ग्रुप को राष्ट्रिय एफ़पीओ नीति से संबन्धित 16 सुझाव भेजे है लेकिन उन्हे नहीं लगता की उनका एक भी सुझाव इन नीति निर्माताओं को समझ मे आयेगा। “बूढ़ी घोड़ी, लाल लगाम” हिन्दी का एक लोकप्रिय कहावत है, जो प्रस्तावित राष्ट्रिय एफ़पीओ नीति को चरितार्थ करती है