मलाईदार बनाम सपरेटा

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ऋषि पांडेय

मलाई, दूध परिवार की एक ऐसी सदस्य है जिसकी मौजूदगी का खास महत्व है। इसकी उत्पत्ति दूध में उबाल आने से मानी गयी है। दूध को उबालने से मलाई, मलाई को उबालने से मख्खन और मख्खन से घी बनता है। घी दूध परिवार का सबसे वीआइपी सदस्य है। उसके दाम की अकड उसके वीआईपी होने का सबूत है। अफसोस इस आत्मनिर्भरता प्रधान युग में वीआईपी होते हुए भी घी आत्मनिर्भर नहीं है। वह मलाई पर निर्भर है। सो मलाई की महिमा अपरम्पार है। बगैर मलाई का दूध सपरेटा कहलाता है जिसका उपयोग आमतौर पर उम्रदराज बीमार व्यक्तियों द्वारा किया जाता है। मलाई बच्चों को बेहद पसंद होती है। वे इसे ब्रेड या परांठे पर लगाकर बडे चाव से खाते हैं। यह मलाई का सबसे प्रचलित उपयोग है। बडे होने पर तमाम बीमारियों के चलते अमूमन लोग मलाई से परहेज करने लगते हैं। फिर उन्हें मलाई कम मलाईदार चीजे ज्यादा पसंद आने लगती है। मसलन मलाई चाप,मलाई कोफ्ता मैथी मलाई मटर आदि आदि। यह हो गयी भोज्य पदार्थ के तौर पर मलाई की उपयोगिता। आईये अब इसके वेल्थ प्रमोशनल प्रोग्राम पर नजर डाली जाए। हेल्थ और वेल्थ दोनो के लिए मलाई का उपयोग अच्छा माना गया है। इसी मलाई से मख्खन भी बनता है। मख्खन खाने के साथ साथ लगाने के काम भी आता है। समझदार लोग जीवन के उत्तरार्ध में तरावट के लिए पूर्वाद्ध में मलाई,मख्खन का दिल खोलकर सेवन करते हैं। जो लोग इससे परहेज करते हैं बुढापे में दुख पाते हैं। ऐसे लोगो को उनके बच्चें कोसते रहते हैं कि पिताजी यदि मलाई से दूर नहीं भागते तो आज हमे परेशान नहीं होना पडता। अनुभवी लोग बताते हैं कि मख्खन के ज्यादा उपयोग से मलाईदार पोस्टिंग मिलती है। यानी मलाई की चमचमाती, ललचाती
परत फिर घी। पांचों उंगलिया घी में वह भी तरमतर। आमतौर पर मलाई से मख्खन बनने के प्रचलित सिद्धांत के विपरीत सरकारी नौकरी,सियासत जैसे क्षेत्रों में मख्खन से मलाई पाने का अदभुत उपक्रम चलता है। यानी गंगा को हरिद्वार से गंगोत्री की ओर बहाना, बांस की गाडी को बरेली की ओर भगाने जैसा काम। मंत्रियों में भी मलाईदार विभागों को लेकर मारामारी मची रहती है। अब मलाईदार विभाग कौन से होते हैं,यह ज्यादा शोध का विषय नहीं बचा। ज्ञानी बताते हैं कि इनमें परिवहन,खनिज,उर्जा,आबकारी,निर्माण,महिला बाल विकास जैसे विभागों को गिना जाता है। बाकी बचे सपरेटा विभागों पर कोई ध्यान ही नहीं देता। कुछेक जांबांज होते हैं जो सपरेटा में से मलाई की परत निकाल देते हैं। ऐसा कर वे नेतृत्व को यह सोचने को मजबूर कर देते है कि बंद मे पोटेंशियल है। ऐसे पोटेंशियल लोग ही सपरेटा विभागों में आशा की मोमबत्ती जला रहे हैं। इनकी काबिलियत को सौ सौ सलाम….!