हमारे देश में एक बहुत बड़ी समस्या है बढ़ते हुए अपराध और अपराधी, बेहतरऔर अच्छे नागरिकों की कमी होती जा रही है, हमें शिकायत रहती है कि हमारे नीति निर्धारक दोयम दर्जे के है और हम यह मानते हैं कि विदेशों में सब कुछ अच्छा है और हमेशा से हम इन कमियों का उत्तरदायित्व सरकार की रीति नीति को समझते आ रहे है, हम यह मानते है कि जिस देश में हम पैदा हए है, जिस देश ने हमें पाल पोसकर बड़ा किया, और एक हद तक शिक्षित बनाया उसी मातृभूमि की जब सेवा करने का अवसर आता है तब देश को कुछ देने की बजाय हम यह कहकर पल्ला झाड लेते है कि मेरा देश मुझे क्या दे रहा है, अगर इस विषय पर ईमानदारी सहित गम्भीरता से इसकी तह तक जाकर समझा जाए तो वस्तुतः अपराधियों के निर्माण की जिम्मेदारी हमारे अपने ही परिवारों पर आती है और यह एक बाहरी नहीं हमारी अपनी आंतरिक समस्या है, आइए समझते हैं ऐसा क्यों है…
हम यह मानते आये है कि जो चीज गलत होती है वो चलन से बाहर हो जाती है समाज स्वयं उसे नकार देता है । जैसे कि खोटा सिक्का । लेकिन यदि किसी व्यक्ति को अच्छे और बुरे में फर्क बताया ही नहीं गया हो तो वह अनजाने में भी बुराई की अपना लेता है । बच्चों को अच्छा बुरा समझाने की जिम्मेदारी किसकी है ? सबसे पहले माता पिता की फिर परिजनों की फिर शिक्षक की फिर दोस्तों की और फिर समाज की |
यदि किसी बात को समाज नहीं नकारता मतलब या तो बदलाव आ रहा है या विकृति आ रही है, यदि हमें लगता है कि विकृति आ रही है और समाज को बदलना है तो अपने घर से ही शुरू करना होगा । अपने बच्चों को शिक्षा व संस्कार देने ही होंगे ।
हमारी पीढ़ी ने अपनी महती जिम्मेदारी पूरी ना कर यह अक्षम्य अपराध किया है कि अपना कैरियर बनाने व सफलता प्राप्त करने के तनाव से उपजी अति व्यस्तता के चलते बच्चों को ठीक से नैतिक शिक्षा प्रदान नही कर पाए है।
मेरा मानना है कि अपना स्वयं का घर सुधारे बिना समाज सुधार हो ही नही सकता । मैं पुनः जोर देकर कहता हूँ कि समाज में व्याप्त बुराइयों के लिए हम अति व्यस्त माता पिता बड़ी हद तक जिम्मेदार हैं । हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देकर भले नागरिक नहीं बनायेगे तो समाज अपराधियों से भरता जाएगा, नन्हे बच्चे देखकर (आब्जर्व करके) सीखते है वो जो कुछ अपने आस पास होते हए देखते है वो उनके अवचेतन मन में स्थायी जगह बना लेता है जो बड़े होने पर उनके व्यवहार में परिलक्षित होता है । यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे युवा होकर एक बेहतर मनुष्य बनें तो हमें स्वयम को बदलना होगा, हमारे क्रियाकलाप हमारे बच्चे देखते हैं और देखकर सीखते हैं ।
हम भारतीय हर समस्या के लिए सिर्फ सरकार को दोष देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं, क्या हमने कभी यह सोचा कि क्या हम अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं, क्या हम अपने बच्चों को अच्छे इंसान या बेहतरीन नागरिक बना रहे हैं (उस किस्म के गुणवान मानव जिनकी अपेक्षा हम दूसरों से करते है) जवाब है एक बड़ा नहीं बल्कि हम भारतीय अपने बच्चों को संस्कारों की बजाय भौतिक सुविधा और धन अर्जन को प्राथमिकता देने की शिक्षा देते हैं । हम अपनी आने वाली पीढी के मन संस्कार का जज्बा भरने में पूर्णतया नाकाम रहे है, शायद नाकाम सही शब्द नहीं है, हमने तो इस बारे में सोचा ही नहीं और हम अपने बच्चों में अच्छे संस्कार भरने का कोई प्रयास तक नही करते तो नाकाम कैसे हए ।
आप अच्छे व्यवहार, अच्छे आचरण की उम्मीद किनसे कर रहे है वो लोग जो अपेक्षित रूप से संसकारित है ही नही, वो तो वही दे पाएंगे ना जो उन्हें आता है, जो संस्कार हमारे परिवारों ने अपनी संतानों को दिए है वो वैसा ही व्यवहार करेंगे ।
तो मुद्दे की बात यह है कि बेहतर और अच्छे आचरण वाले नागरिकों का निर्माण सबसे पहले होता है वहाँ जहां उसने जन्म लिया है, जहां उसकी परवरिश हो रही है, और इस सब में सबसे महत्वपूर्ण इकाई है परिवार, परिवार में सन्तान का लालन पालन जिस प्रकार हुआ है वैसे ही नागरिक हमें मिलते हैं, बात किसी एक परिवार की नहीं है इसे व्यापक रूप से देखना होगा, क्यों हमें ऐसे नागरिक मिल रहे हैं जिन्हें हम पसन्द नही करते, किसने पैदा किया इन्हें, किसने इन्हें पाला पोसा, किसने इन्हें बेईमान बनाया ? हमने ही ना ….. तो फिर कैसा शिकवा, किससे शिकायत, कौन दोषी ?
आज मेरी बातों में भले ही कड़वापन लगे परन्तु नोट करलें कि भविष्य में “गुड़ पेरेंटिंग” पर बहुत कुछ लिखा जाएगा और इस विषय पर पूरी दुनिया में बहुत सारा काम होगा ।
राजकुमार जैन