कोरोना का मर्ज, अब कौन समझेगा प्रदेश की जनता का दर्द

Rishabh
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शिवराज के भगवान यानि जनता संकट में,  महामारी कोरोना की दूसरी लहर सुनामी बन कहर बरपा रही है। जनता की फिक्र छोड़ ऐसे में सरकारें और सियासी दल पांच प्रदेशों के चुनाव में व्यस्त हैं। देश भर में हर रोज अब संक्रमितों का आंकड़ा 90 हजार के पार जा रहा है। मध्यप्रदेश 28 राज्यों में संक्रमण को लेकर 14 वी पायदान पर है। पीड़ितों से निजी अस्पतालों की लूट कयामत ढा रही है। एक मरीज मतलब इलाज के लिए नेग के तौर पर कम से कम सवा लाख रुपए। शेष मरीज की माली हैसियत और अस्पताल जितना फाइव स्टार होगा तो बिल भी 10 से 15 लाख रुपए तक भी जा सकता है। इन हालातों के बीच मर्ज बढ़ रहा है, मरीजों की रेलमपेल है। वार्ड खचाखच भर रहे हैं। इस बार कोरोना शहरों से निकल कस्बों को जकड़ने के साथ गांवों में पसर रहा है। हालात यह है कि सामुदायिक संक्रमण इतना भयावह हो गया है कि मोहल्लों में नही अब तो घरों घर झुक्कों और गुच्छों की शक्ल में बीमारों की भीड़ अस्पतालों की तरफ आए तो हैरानी नही होगी। संकट के इस दौर में आने वाले दिन बहुत डरावने से लग रहे हैं।

एक साल पहले लॉक डाउन और जनता कर्फ्यू जैसे स्वस्फूर्त कदम अब नाकाफी हो रहे हैं। कमर टूटी अर्थव्यवस्था और आमजनों की खाली जेब ने मुसीबत बढ़ा दी है। खेतों में फसलों की कटाई जोरों पर है। मजदूरों की आवाजाही भी खूब हो रही है। ऐसे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शब्दों और भाव का ध्यान करें तो जिस जनता को भगवान मानते हैं आज वह सदी के सबसे संकट की सुनामी में अकेली और ठगी सी महसूस कर रही है। मामा शिवराज उसकी उम्मीदों का आखिरी छोर है बस।

मध्यप्रदेश में चतुरों के शहर माने जाने वाले इंदौर, भोपाल, ग्वालियर जबलपुर और सागर में संक्रमण उफान पर है। लाख चेताने के बाद भी जानलेवा लापरवाहियां फिर टोटल लॉक डाउन अर्थात कर्फ्यू के हालात पैदा कर रही है। बहुरूपिया हुआ कोरोना रंग,ढंग, चाल-चरित्र और चेहरा बदलने के मामले में भारतीय लोकतंत्र के किरदारों, सियासी दलों को भी ऐसी पटखनी दे रहा है कि धोबी पछाड़ दांव भी कमजोर लगे। नेताओं और दलों को भी कोरोना से जलन हो रही होगी। इसके दूसरे तीसरे रूप ने वेक्सीन को कठिन परीक्षा के दौर में फंसा दिया है। ऐसी आशंका जताई जा रही है कि कोविड 19 का नया वर्जन स्ट्रांग इम्मयूनिटी वालों को भी नही छोड़ेगा। इसलिए विशेषज्ञों और सरकार की नसीहतों को मानने और वेक्सीन लगवाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नही है। हमारे एक पत्रकार साथी धर्मेंद्र पैगवार ने लिखा है कि फैसला आपका और जान भी आपकी है…

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शिवराज मामा अस्पतालों की लूट रोकें
महामारी में सरकारों की जिम्मेदारी है कि वह जनता को उचित इलाज और सुविधा मुहैया कराए। जैसा कि पिछले साल 2020 में कोरोना के इलाज में सरकार ने किया भी था। इलाज का आर्थिक बोझ भी सरकार ने उठाया था लेकिन इस बार ऐसा नही है। बड़े प्राइवेट अस्पताल और नर्सिंगहोम को कोविड19 सेंटर बना दिए थे। बीमारों की जांच भी फ्री थी और कोरोना पीड़ितों को कई बार जबरिया भी भर्ती कर उनका मुफ्त इलाज किया था। इसलिए मरने का आंकड़ा कम था और रिकवरी रेट भी अच्छा था। मगर इस बार आर्थिक तंगी के चलते मुफ्त इलाज बन्द कर दिया है। ऐसे में प्राइवेट अस्पताल और नर्सिंगहोम में पीड़ितों से बेहिसाब पैसे वसूले जा रहे हैं। औसतन एक मरीज से सवा लाख से 10- 12 लाख रुपये तक वसूले जा रहे हैं। रेमिडिसिवर जैसे एक इंजेक्शन के पांच हजार चार सौ रु लिए जा रहे हैं। जबकि उसकी कीमत 900 रु है। प्रति दिन बीस हजार रु लिए जा रहे हैं। गम्भीर मरीज के लिए वेंटिलेटर भी वीआईपी सिफारिश लगाए जा रहे हैं। सरकार अस्पतालों में इलाज की दर तय कर दे तो लुटाई कम हो सकती है। वैसे तो महामारी में इलाज का जिम्मा सरकार का ही होता है। जैसा कि पिछले साल 2020 में किया गया था। साथ ही वेक्सीन लगाने की गति तेज करने के लिए उम्र की सीमा का बंधन हटा देना उचित होगा। समाजसेवी संस्थाओं को वेक्सीन लगाने के शिविर गांव गांव और मोहल्ले मोहल्ले लगाने होंगे। जैसे पोलियों से मुक्ति के लिए घर घर दो बूंद जिंदगी का अभियान चलाया जाता है। जागे तो वरना जिंदगी आपकी और फैसला भी आपका है…

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एम्स के डायरेक्टर गुलेरिया कहते हैं…
खतरनाक होते कोरोना के मामले में आगाह करते हुए दिल्ली एम्स के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया कहते हैं कि अब ज्यादातर मामले युवाओं में आ रहे हैं। अगर युवा वर्ग ने सावधानी नही बरती तो वे सुपर स्प्रेडर बन सकते हैं। बाहर लापरवाही से घूमने वाले युवा कोरोना संक्रमण लेकर घर में आएंगे और उनसे घर बड़े बुजुर्ग जल्दी संक्रमित हो सकते है।

न काहू से बैर/राघवेंद्र सिंह