मंदिर ही समाधान है?

Share on:

शशिकांत गुप्ते

सभी आस्थावान लोगों को प्रणाम।रामजन्म भूमि आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वालों को भी प्रणाम।
इस आंदोलन के दौरान जो स्वाभाविक रूप से हिंसा भड़की थी, क्षमा करना भड़की शब्द यहाँ गलत हो गया,स्वाभाविक रूप से हिंसा हुई थी।इस हिंसा में जो भी शहीद हुए उनको श्रद्धा सुमन अर्पित हैं।
देश,काल और परिस्थिति के अनुसार बदलाव होते रहता है।यह स्वाभाविक प्रक्रिया है।
मराठी भाषा मे एक कहावत प्रचलित है,आधी पोटोबा मग विठोबा। अर्थात पहले पेट पूजा बाद में देव पूजा।यह कहावत अब बदल दी गई है।अब आधी विठोबा मग पोटोबा।मतलब
भगवान की स्थापना,पूजा अर्चना पहले, बाद में समस्याओं पर विचार विमर्श करेंगे।
इस संदर्भ में प्रख्यात व्यंग्यकार स्व.शरद जोशीजी के एक व्यंग्य का स्मरण होता है।शरद जोशीजी ने मध्यप्रदेश पर व्यंग्य लिखा है,इस व्यंग्य में एक जगह वे लिखते हैं कि,मध्यप्रदेश में आच्छादित वन हैं, प्राकृतिक मनोरम दृश्य है, पर्वत हैं,नदिया हैं। “यहां की व्यवस्था पुल इसलिए बनाती है,जिनके नीचे से नदिया निकल सके,यदि पुल ही नहीं होंगे तो नदिया किसके नीचे से निकलेंगी।”?
ठीक इसी तरह भगवान की पूजा अर्चना और आराधना करने के लिए मंदिर होना आवश्यक है।यदि मंदिर नहीं होगा तो आस्थावान लोग पूजा अर्चना कहां करेंगे?यह व्यावहारिक प्रश्न है।
इस पर कुछ नास्तिक किस्म के लोग, कहेंगे कि,देश में सैकड़ों मंदिर हैं।इन नास्तिकों को कैसे समझया जाए।इन सैकडों मंदिरों कुछ ही मंदिर सिद्ध होते हैं।बाकी सारे मन्दिर प्रतीकात्मक होतें हैं।
हमारा देश, धर्म प्रधान देश है।हमारे धर्म में जितनी पवित्रता है,ऐसी शुद्धता किसी अन्य धर्म में कहां है?
हमारी धर्म में अटूट आस्था है। देश में जितने भी धर्म प्रेमी हैं,उनमें नब्बे प्रतिशत लोगों की मनोकामनाएं मन्नत मांगने से पूरी होती है।
इसपर भी कथित प्रगतिशील लोग,यह प्रश्न उठाएंगे क्या भगवान भी कृपा करने के बदले मानधन वसूलता है?
इनलोगों को कौन समझाए भगवान उन्ही की मन्नत पूरी करता है,जो निःस्वार्थ कामना करते हैं।
हमारे यहाँ कोई भी प्राकृतिक विपदा हो,अल्प वृष्टि हो अति वृष्टि हो किसी लोकप्रिय नेता का स्वास्थ्य गम्भीर हो जाए,यहाँ तक की हमारी क्रिकेट टीम मैच खेल रही हो,ऐसी अनेक समस्याओं के समाधान के लिए,हम हवन पुजन का अनुष्ठान करते रहते हैं।
कुछ आलोचक किस्म के लोग ऐसे धार्मिक कर्मो की हँसी भी उड़ाते हैं,उड़ाने दो अपनी बला से।
धार्मिक देश मे मंदिर बनना ही चाहिए।यह हमारी प्राथमिकता भी होनी चाहिए।
देश अब दो तरह से भय मुक्त हो गया है।सुरक्षा के सबंध में, हमने रॉफेल विमान खरीद लिए,यह तो भौतिक दृष्टि से सुरक्षा हुई,दैविक सुरक्षा के लिए मंदिर बनेगा ही।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पहली बार इतने कर्तव्य निष्ठ लोगों ने शासन सम्भाला है।जो जो वादे किए वे सब निभा रहे हैं।
महत्वपूर्ण बात तो यह है कि,
प्राथमिकता को देखते हुए वादे पूरे किए जा रहे हैं।
अब बेरोजगारों,बेबसों,बेकसो और जो भी अन्य किसी तरह की समस्याओं से ग्रस्त लोग हैं,उन्हें मंदिर दर्शन करना चाहिए। भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए।भगवान से मन्नत मांगनी चाहिए।
किसी बहकावे आकर आंदोलन वगैराह नहीं करना चाहिए।यह अच्छे से समझलो की पहले जैसे भ्रष्ट्र लोग सरकार में नहीं है।सामान्यज्ञान से सोचने की बात है,जो लोग धार्मिक होते हैं,वह भला भ्रष्ट्र कैसे हो सकते हैं?
आलोचना करने वालों को समझना चाहिए,अपनी आस्था प्रकट करने के लिए, इन धार्मिक लोगों ने रथ यात्रा निकाली थी,भजन पूजन किए अपने तई जिनते भी प्रयास करना थे,सारे ईमानदारी से किए थे।तादाद में लोग शहीद हुए।
अंतः भगवान प्रसन्न हुए।अब भगवान मंदिर में विराजित होंगे।पंडितों द्वारा मंत्रोच्यार कर भगवान की मूर्ती की प्राण प्रतिष्ठा होगी।
अब कोई रोक टोक नहीं है।लॉक डाउन का मंदिर बनने पर कोई प्रभाव नहीं है।
“जाको राखे साईयां”
कोरोना की क्या मजाल जो अयोध्या में घुस जाए?
2014 से मात्र छह वर्ष की अवधी में आयोध्या की किस्मत चैत गई।
2024 तक चुनाव के पूर्व मंदिर बन जाएगा।यह स्थान सभी श्रद्धालुओं के लिए किसी अन्य तीर्थ स्थान से कम नहीं होगा।
चुनांव के पूर्व यह पवित्र मंदिर आम जन के लिए खुल जाएगा।
जिस तरह देश के मतदाताओं ने पुलवामा में हुए शहीदों के नाम पर 2019 में मतदान किया था।इसी तरह समझदारी दिखाते हुए 2024 में राम मंदिर के नाम पर मतदाता, मतदान करेंगे।
पुनः कथित प्रगतिशील लोग
मूलभूत समस्याओं का राग अलापेंगे?
मूलभूत समस्याओं से ग्रसित लोगों को धैर्य रखना पड़ेगा सबुरी का फल मीठा होता है,ऐसा कलयुग में राम के अवतार के रूप पूजे जाने वाले,सांई बाबा ने कहा है।
वैसे भी गृहमंत्री का अनुमान है कि,2024 तक हमारी अर्थ व्यवस्था मजबूत हो जाएगी।
समझदार लोगों का कहना है कि,आज भी नोकरियों की कमी नहीं है,लोग करना नहीं चाहते हैं।इसमें सरकार का क्या दोष।आलोचना करने वाले जबरन चाय उबालने,पकौड़े तलने,और चौकीदारी करने जैसी बातें कर हँसी उड़ाते हैं।
सभी आस्थावान लोगों की ओर से सभी देश वासियों से निवेदन है कि,विपक्ष के बहकावे में नहीं चाहिए।
बस धैर्य बनाकर रखों।प्रभु श्री रामचन्द्रजी निश्चित सारी समस्याएं दूर करेंगे।
धार्मिक देश में धर्म संविधान से ऊपर होता है।
धर्म की विजय हो,अधर्म का नाश हो।

शशिकांत गुप्ते