सोने के धागे से बनी रामलला की पौशाक, इन दो भाइयों ने की तैयार

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सैकड़ों साल से राम मंदिर निर्माण का सपना देख रहे लोगों का इन्तजार आज खाम होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अयोध्या में राम मंदिर के लिए भूमिपूजन करेंगे। आज पूरी अयोध्या नगरी में जश्न का माहौल है। आपको बता दें जैसे-जैसे भूमि पूजन का समय नजदीक आ रहा है, वैसे ही अयोध्या में लोगों का उत्साह और ज्यादा बढ़ता जा रहा है। वही पीएम मोदी इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह बनने जा रहे हैं। लेकिन क्या आप जानते है रामलला की पोशाक किस दर्जी ने सिली है और कैसे इस पोशाक क बनाया गया है। नहीं जानते होंगे तो चाहिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं रामलला के दर्जी कौन है और कैसे रामलला की पोशाक को सिला गया है।

जानकारी के मुताबिक, अयोध्या के हनुमान गढ़ी मंदिर से कम से कम एक किलोमीटर की दुरी पर एक दर्जी की दुकान है। जिसका नाम है श्री बाबूलाल टेलर्स। आपको बता दे, इस दुकान पर लगे पोस्टर में लिखा है, श्रीरामजन्मभूमि और श्रीरामलला के प्रमुख टेलर। उनके पोस्टर के नीचे लिखा है कि यहां भगवान की पोशाक सिली जाती है। आपको बता दें अयोध्या के यह दर्जी बेहद खास है यह रामलला के पोशाक को चलते हैं। इस दुकान को दो भाइयों द्वारा चलाई जाती है। जिनका नाम है शंकरलाल और भागवत लाल इन्होंने अपने पूरे जीवन में सिर्फ रामलला के वस्त्र ही सिले हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि लगभग 40 सालों से यह दोनों भाई रामलला के वस्त्र सिलते आ रहे हैं। इसकी परंपरा की शुरुआत शंकरलाल और भागवत लाल के दादा ने की थी, जो अब इस दुनिया में नहीं है वही यह दोनों भाई भी अब इस ही पुश्तैनी काम को आगे बढ़ा रहे हैं।

आपको बता दे, राम मंदिर में हो रहे भूमि पूजन के लिए रामलला के दो वस्त्र सिले गए है। रामलला इस दौरान 2 रंग के वस्त्र अलग अलग समय पर पहनेंगे। जिसमें पहले हरे रंग के कपड़े पहनेंगे इसके बाद भगवा रंग के। जानकारी के मुताबिक एक इंटरव्यू में इस पोशाक को सिलने वाले दोनों भाइयों ने कहा है कि 5 अगस्त के लिए हमनें जीवन भर की सारा कौशल और श्रेष्ठता रामलला के वस्त्रों को सिलने में लगा दी है। अब इस दुकान में शहर भर के लोग रामलला के लिए कपड़े सिलवाने आते हैं। रामलला के कपड़ों में कढ़ाई और रत्न जड़े होते हैं। इस दुकान का नाम शंकरलाल और भागवतलाल के पिता बाबूलाल के नाम पर है। आप जानकर हैरान होंगे कि ये परिवार अब सिर्फ देवी-देवताओं के कपड़े ही सिलता है।

उन्होंने बताय कि मेरे पिता ने 1985 में रामलला के कपड़े सिलने शुरू किए, तब से ये सिलसिला जारी है, वो सिलाई मशीन लेकर रामजन्मभूमि ही चले जाते थे उनके साथ कभी मैं होता था, कभी मेरे बड़े भाई। बाबरी विध्वंस तक ये प्रक्रिया चलती रही, इसके बाद हमें अपनी दुकान यहां लानी पड़ी। अब हम कपड़े यहां बनाते हैं और मुख्य पुजारी को सौंप देते हैं। वहीं रामलाल के वस्त्रों के बारे में बताते हुए कहा कि उनके वस्त्र मखमल से बनाए गए हैं, क्योंकि ये कपड़े भगवान राम के बालस्वरूप के लिए हैं। हरा रंग दिन के लिहाज से है, जबकि भगवा रंग मौके की खासियत से जुड़ा है। हरे पोशाक में सोने के धागे से नवग्रह सिले हुए हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा को ध्यान में रखते हुए ग्रहों का खास ध्यान रखा गया है।

आपको बता दे, इन दोनों भाइयों ने रविवार को आचार्य सतेंद्र दास को रामलला के कपड़े सौंपे थे। वहीं रामलला के कपड़ों के अलावा दोनों भाइयों ने लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान और भगवान शालिग्राम के कपड़े भी सिले हैं। दरअसल, रामलला के मंदिर निर्माण के इस खास मौके पर दोनों भाई भावुक हैं। राम मंदिर को लेकर इनकी आस्था ऐसी है कि ये अपने कपड़े भी खुद नहीं सिलते हैं। इनका कहना है कि मंदिर बन जाने के बाद रामलला के लिए अब वो बड़े कपड़े सिल पाएंगे।