आज सुबह ही सोच रहा था , इतना भव्य और आलीशान मकान बनाने की जरूरत क्या है

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सुरेंद्र बंसल

बेशुमार खर्च करके जिस मकान को हम बनवाते है क्या हम उसमें वाकई सुकून से रहते हैं…. हमें अच्छी जमीन लेकर उस पर अपनी जितनी आवश्यकता उतना ही घर बनाना चाहिए, आजकल सीमित परिवार होते हैं ऐसे में हमें अपनी आवश्यकताओं को भी सीमित ही रखना चाहिए. अच्छा हो यदि कच्ची जमीन पर कच्चे खपरैल से घर हों…. इसका जो आनंद होगा वह अलग ही होगा…. किसी आलीशान कॉलोनी में यदि पुरातन तरीके से बना सुंदर घर हो तो सच में जीवन कितना सुन्दर हो…
यह सोचा ही था कि यह खबर पढ़ने को मिल गई , जो झारखंड से अाई है, कभी कुछ सोचो और वह होता हुए दिखता है, देखिए..
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इस गांव की शान हैं आलीशान कच्‍चे मकान, भव्‍यता व सुंदरता की सब करते हैं तारीफ

चतरा, [जुलकर नैन/सुग्रीव दांगी]। सामान्‍य तौर पर विकास के नाम पर जहां शहरों में पुरानी इमारतें नष्‍ट की जा रही हैं, वहीं चतरा जिले के पत्‍थलगड़ा गांव की शान आज भी आलीशान कच्‍चे मकान हैं। यहां आधे दर्जन से अधिक आलीशान कच्‍चे मकान हैं। यह देखने से काफी भव्‍य लगते हैं। इन घरों के माल‍िक साधन संपन्‍न होने के बावजूद इन पुराने घरों की सुंदरता को बरकरार रखे हुए हैं। वे पक्‍के मकान का निर्माण नहीं कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्‍योंकि वह मकान न सिर्फ आज के मकान से मजबूत हैं, बल्कि खुले-खुले और हवादार भी हैं। लोग इन घरों की तारीफ करते हैं।

आधुनिकता के इस दौर में ऊंची-ऊंची इमारतें शहरों की शोभा बढ़ा रही हैं। लेकिन गांवों की शान आज भी आलीशान कच्चे मकान ही हैं। ऐसा नहीं कि गांवों में पक्के मकान नहीं हैं। पक्के मकान भी हैं और आधुनिक सुविधाएं भी। लेकिन उसके बावजूद कच्चे मकानों जैसा सुख और शांति मक्के मकानों में नहीं है। कच्चे मकान बुजुर्गों की विरासत है और उनके वंशज उसे संजोकर रखने की कोशिश कर रहे हैं। इसका उदाहरण जिले के पत्थलगड्डा प्रखंड का चौथा गांव है।

गांव की आबादी करीब एक हजार की होगी। ग्रामीणों का मुख्य पेशा कृषि है। मिट्टी व खपरैल के बने मकान गांव के आकर्षण का केंद्र हैं। एक-एक मकान 12-12 डिसमिल जमीन पर बना हुआ है। मिट्टी व खपरैल के बने मकान काफी खूबसूरत व आकर्षक दिखते थे। एक समय था, जब गांव का कुछेक ही घर पक्के थे। परंतु आज स्थिति विपरीत है। प्राय: घर पक्के के हो गए हैं। लेकिन उसके बाद भी मिट्टी के बने भव्य मकान लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। पूरे गांव में इस प्रकार के आठ मकान हैं।

इनमें शिवलाल महतो, शिवनाथ महतो, छठु महतो, श्यामलाल महतो, टेको महतो, केदार सिंह, उमराव महतो व फौजीदरी यादव आदि का नाम शामिल है। ग्रामीण अरुण राम दांगी ने बताया कि कच्चे मकानों का निर्माण वर्ष 1913-14 में उनके पूर्वजों ने किया था। मिट्टी व खपडे़ का बना हुआ है।

आज भी मजबूत व आरामदायक है। पक्का वातानुकूलित मकान भी इसकी तुलना नहीं कर सकता है। उपेंद्र दांगी कहते हैं कि पूर्वजों के बनाए हुए मकान को विरासत समझ कर संभाल कर रखे हुए हैं। जीवलाल महतो के पुत्र बुधन महतो व खिरोधर महतो कहते हैं कि इस प्रकार का मकान अब बिरले ही देखने को मिलता है। कच्चे मकान में रहने का आनंद कुछ अलग है। भीषण गर्मी हो या ठंड बहुत असर नहीं पड़ता है।

100 साल पहले हुआ निर्माण

इन कच्चे मकानों का निर्माण सौ साल पहले हुआ है। दीवार सिर्फ और सिर्फ मिट्टी के हैं। दीवार की मोटाई 25 से तीन इंच तक की है। छत बांस और बल्ली ऊपर खपरैल देकर बनाया गया है। आंगन के हिस्से में ढाई की गई है। प्राय: सभी घर हवादार हैं। खिरोधर महतो कहते हैं कि दो से तीन साल पर एक बार खपड़ा फेराते (टुटे हुए खपड़ा को बदलना) हैं। उसके बाद दो से तीन साल के लिए इत्मिनान हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि इन कच्‍चे मकानाें का निर्माण 1913-14 में उनके पूवर्जों ने कराया था।

क्या कहते हैं मुखिया

सचमुच गांव की शान है। पूर्वजों की निशानी है। उनके वंशज बचाकर रखे हुए हैं। ऐसा नहीं है, उनके पास मकान बनाने के लिए पैसा नहीं है। दूसरी बात यह भी सच है कि कच्चे मकान जैसी सुख और शांति वातानुकूलित मकानों में नहीं मिलेगी।