गोस्वामी तुलसीदास एवं रामचरितमानस

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एन के त्रिपाठी

संत शिरोमणि महाकवि गोस्वामी तुलसीदास का जन्म श्रावण शुक्ल सप्तमी को हुआ था।उनके जयंती सप्ताह के शुभ अवसर पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए उनके कालजयी महान ग्रंथ रामचरितमानस का स्मरण करना समीचीन होगा। रामचरितमानस का कोटि कोटि भारतीय अगाध श्रद्धा के साथ पठन करते हैं। परन्तु धार्मिक एवं आध्यात्मिक भाव से हटकर इसे एक महान साहित्यिक ग्रंथ के रूप में भी देखा जा सकता है।

मैं साहित्य का कोई महान ज्ञाता नहीं हूँ। मातृबोली अवधी होने तथा संस्कृत का टूटा फूटा ज्ञान होने के कारण मुझे रामचरितमानस के प्रत्येक शब्द तथा पंक्ति का अर्थ अवश्य समझ में आ जाता है और आनन्दानुभूति भी होती है।

तुलसीदास निःसंदेह असाधारण एवं विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। मानस को पढ़ने से ही स्पष्ट है कि उनका लगभग समस्त संस्कृत के धार्मिक एवं साहित्यिक ग्रन्थों का गम्भीर अध्ययन था। हिन्दी में उनसे पहले कोई स्तरीय काव्य परंपरा नहीं थी। संस्कृत ग्रन्थों के आधार पर उनकी रचना मूलत: एक साहसिक अविष्कार थी।यद्यपि उनकी कथाओं की विषय वस्तु नानापुराणनिगमागम के अनुसार ही विभिन्न धार्मिक कथाओं विशेष रूप से वाल्मीकि रामायण से ली गई थी परन्तु वह अनुवाद मात्र नहीं है। उसमें विराट मौलिकता है। सीता स्वयंवर , भरत मिलाप, भारद्वाज ,अत्रि , देवताओं तथा शंकर आदि द्वारा राम की स्तुति, बालक राम का कौशल्या को विराट रूप दर्शन , मंथरा सम्वाद आदि तुलसीदास की कल्पनाशीलता के उदाहरण हैं।राम कहानी के अनेक अंश उन्होंने हटा भी दिये हैं। मेरे मत से रामचरितमानस काव्य की दृष्टि से वाल्मीकि रामायण से कहीं अच्छा ग्रन्थ है।

रामचरितमानस की कथा के सभी प्रसंगों को निरन्तर भक्ति के धागे में बाँधा गया है । कहीं लम्बी चौड़ी कहानी कुछ पंक्तियों में कह दी गई है तो कहीं छोटी सी घटना को अत्यंत विस्तार से कहा गया है। संतों की विशेषता तथा राम की भक्ति आदि का बड़ा विस्तृत वर्णन है। बाल कॉंड तथा अयोध्या कॉंड मिल कर लगभग रामचरितमानस का ६०% भाग है। मुख्य रोचक तथा तेज गति की कथा के कॉंड अरण्य, किष्किंधा, सुन्दर एवं लंका कॉंड बहुत छोटे हैं। वाल्मीकि रामायण से पूरी तरह अलग तुलसीदास का उत्तर कॉंड पूरा ही दार्शनिक है।

रामचरितमानस एक अत्यंत संगीतमय काव्य है। इसका कारण यह है कि इसे बिना किसी मात्रा की त्रुटि के सुन्दर छन्दों में रचा गया है।दोहा , सोरठा और चौपाइयों का ऐसा उपयोग किसी कवि ने नहीं किया है। मार्मिक क्षणों में हरिगीतिका, तोमर, तोटक आदि छन्दों का सुन्दर गायन है। इसमें सातों कॉंडों के प्रारंभ में कुल ४७ संस्कृत के श्लोक है। इनका ध्यान से वाचन किया जाय तो पता चलेगा कि ये अनेक प्रकार के अलग अलग छन्दों में निबद्ध है जिनका नाम बताना मेरी क्षमता के बाहर है शब्दों का चयन भी ऐसा है कि उनकी ध्वनि पंक्तियों को संगीत देती है तथा यह ध्वनि प्रसंग के रस की अनुगामिनी भी होती है।

तुलसीदास जी का ज्ञान भंडार अपार था। उनका शब्दकोश व्यापक है तथा रामचरितमानस के अन्त तक नये-नये शब्द मिलते है।पर्यायवाची शब्दों की झड़ी भी देखते बनती है।फूलों और पेड़ों के नाम, पक्षियों एवं जन्तुओं के नाम, गंगा एवं सरयू नदी की गंगासागर तक सहायक नदियों का भूगोल, भवन एवं महलों के भागों का वर्णन तथा घुड़सवारी एवं युद्ध कौशल आदि का ज्ञान इस रचना को प्रामाणिक बना देता है। शब्दों का आविष्कार भी किया गया है जैसे गोमती नदी के लिये धेनुमती का प्रयोग।उपमाओं का प्रभाव तथा विस्तार बहुत मौलिक एवं अनूठा है। सभी स्रोतों से लिये गये तथ्यों को ‘बेद बखाना’ कहना तुलसीदास की शिष्टता है।

तुलसीदास ने इस ग्रन्थ में स्वयं को दीन और मूढ़ बताने के अतिरिक्त अपने बारे में कुछ भी नहीं लिखा है जो उनकी महानता है। मैंने यहाँ पर रामचरितमानस के बाह्य रूप पर ही कुछ कहा है। इस महान ग्रन्थ की विषय वस्तु, रसानुभूति एवं सन्देश से मर्मज्ञ पाठक भलीभाँति परिचित हैं।एक बार पुनः इस महान संत कवि को प्रणाम करता हूँ।