कांग्रेस में ‘युवा बनाम युवा’ का युग

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प्रकाश भटनागर

गलतफहमी का इलाज तो हकीम लुकमान भी नहीं तलाश पाए होंगे। आज का अत्याधुनिक मेडिकल साइंस भी इस बीमारी जैसी स्थिति के आगे असफल ही है। इसलिए यदि सांसद नकुल नाथ के मुगालते का कोई निदान न मिल पाए तो इसके चलते निराश नहीं होना चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के साहबजादे नकुल अभूतपूर्व आत्मरति के शिकार हो गए हैं। ट्वीट कर कह रहे हैं कि आगामी उपचुनाव में युवाओं का नेतृत्व वह करेंगे। बाकी, कांग्रेस में जितने भी युवा आस-पास दिखे, नकुल ने उन सभी को उनके अपने-अपने इलाकों सिमटा देने जैसी बात कही है। नेतृत्व का ऐसा हास्यास्पद श्रम विभाजन चमत्कारिक प्रक्रिया ही कहा जा सकता है। जिसकी रोचक प्रतिक्रिया आना भी तय है। हां, हो सकता है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के दबदबे के चलते प्रतिक्रिया कुछ दबे स्वर में हो। लेकिन इसके आसार भी कम हैं। कांग्रेस का ऐसा चरित्र ही नहीं रहा है। यह वह कांग्रेस है, जिसमें अभिव्यक्ति की गुट-जनित स्वतंत्रता का मनमानी की हद तक बोलबाला है। इसलिए हो सकता है कि नकुल को पलटवार के तौर पर जीतू पटवारी, जयवर्द्धन सिंह, सचिन यादव, ओमकार मरकाम या हनी बघेल की तरफ से पलटवार का स्वाद चखना पड़ जाए। गनीमत है कि चिरंजीव नाथ इस ट्वीट में उमंग सिंघार जैसे चलित मानव बम की ‘ड्यूटी लगाने’ जैसी गलती करने से बच गए, वरना तो अब तक मीडिया शिवराज के कोरोना को भूल उमंग द्वारा अपने तरीके से किए जाने वाले नकुल के सिंगार के कवरेज पर पिल पड़ा होता।

नकुल फिलहाल मध्यप्रदेश से कांग्रेस के इकलौते सांसद हैं। वो भी इसलिए संभव हो सका क्योंकि छिंदवाड़ा विधानसभा का उपचुनाव कमलनाथ साथ में लड़ रहे थे। बहुत संभव है कि प्रदेश में अकेले अपने हिस्से आए पंजे को थामकर वह सिंहासन बत्तीसी वाले गुरूर से भर उठे हों। इसे उन्होंने खुद के प्रयासों से मिली जीत मान लिया हो। जबकि उनकी जीत मिश्रित असर वाली है। कमलनाथ का छिंदवाड़ा में जादू इसमें अहम रहा। बची-खुची कसर बीजेपी की गलती से पूरी हो गयी। भाजपा ने राज्य की शेष 28 सीटों पर कांग्रेस को जिस तरह धूल चटाई, ठीक वैसा ही इस बार छिंदवाड़ा में भी हो सकता था, लेकिन यह दल एक चूक कर गया। उसने इस क्षेत्र में नाथ की शक्ति को जरूरत से ज्यादा तवज्जो दे दी। यह मान लिया कि छिंदवाड़ा तो नकुल के हिस्से ही आना है। वो तो चुनाव के नतीजे आने के बाद भाजपा को अपनी भूल का अहसास हुआ, जब उसने पाया कि पिता की तुलना में नकुल को बहुत ही कमजोर जीत मिली है। यदि बीजेपी ने जरा और ताकत लगाई होती तो नकुल का भी हारना तय था। ऐसे हालात में इस विजय को यदि नकुल अपने राजनीतिक कद में वृद्धि का महत्वपूर्ण कारक मान रहे हैं तो फिर उनकी सद्बुद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना ही की जा सकती है।

शायद मुगालते की यह बीमारी संक्रामक है। पिता कमलनाथ भी मुख्यमंत्री बनते ही गलतफहमी के वायरस की चपेट में आ गए थे। उन्होंने कांग्रेस की जीत में महत्वपूर्ण ज्योतिरादित्य सिंधिया फैक्टर को भुला दिया। ‘अहम ब्रह्मास्मि’ के गुरूर से भर गए। बल्कि वो तो गुरूर से सुरूर वाले मुद्रा में अपने ही विधायकों से ‘चलो-चलो, आगे बढ़ो’ वाला आचरण करने लगे थे। अब साहबजादे भी पिता के ही नक़्शे-कदम पर चल पड़े हैं। उन्होंने तो अप्रत्यक्ष रूप से यह सन्देश दे दिया है कि राज्य कांग्रेस में युवा चेहरों के नाम पर अब उनसे बेहतर और कोई नहीं बचा है। सवाल यही की पार्टी का नेतृत्व कमलनाथ कर रहे हैं और युवाओं का नकुलनाथ तो बाकी के नेता क्या करेंगे।

कांग्रेस में युवा नेतृत्व को लेकर जो आवाज उठ रही है, वह नई नहीं है। इससे पहले भोपाल में जुलाई के पहले सप्ताह में दिग्विजय सिंह के बेटे और पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह के जन्मदिन पर भावी मुख्यमंत्री के पोस्टर लगाए गए थे। यह पोस्टर यूथ कांग्रेस द्वारा लगाए गए थे। इस पर लिखा था- मध्य प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री जयवर्धन सिंह को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं, प्रदेश की शक्ति, कांग्रेस की शक्ति, युवा शक्ति। पोस्टर से मचे बवाल के बाद इसे हटा लिया गया था। अब जुलाई के दूसरे पखवाड़े में नकुल नाथ का बयान सामने आने के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई। अब आने वाले समय में कांग्रेस में प्रदेश के नेतृत्व को लेकर दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों में जोर-आजमाइश देखने को मिल सकती है। युवा बनाम युवा का यह मुकाबला निश्चित ही रोचक होगा।