मशाल

Share on:

धैर्यशील येवले

कलम को चिराग बना कर
अज्ञान का तमस फ़ना कर

सोया है सदियों से वो
जगा उसे शोला बना कर

अहिंसक है या नपुंसक
पूछ उससे मर्द बना कर

कुछ मूषक है कुछ विदुषक
ला सामने शेर बना कर

जिसने इसे सुलाये रखा
पेश कर गुनहगार बना कर

रोक ले जाने वालों को
वो जा रहे बात बना कर

मुझे ज़मीर जिंदा चाहिए
लाना मत मुर्दा बना कर

नूर पर डाल रखा पर्दा
जला उसे आग बना कर

दिया है धोका लोगो को
भेड़िये को भेड़ बना कर

हर तरफ उजाला कर दिया
कलम को मशाल बना कर