लॉकडाउन भारत से क्यों खत्म किया जाना चाहिए?

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संजय मेहता

अब तक इतनी मेहनत कर लेने के बाद भी भारत की कुल आबादी के सिर्फ 1.8 प्रतिशत लोगों को इस ट्रेंडिंग बीमारी से संक्रमित बताया जा सका है. आप सोचिए. लगभग 98 प्रतिशत आबादी इस चंगुल में नहीं फँसी है. लेकिन इतनी बड़ी आबादी को घरों में बंद कर रोजगार, व्यापार, शिक्षा सब ठप कर दिया गया है.

शुरुआत से नजर डालते हैं. तारीख 24 मार्च 2020 को नेशनल लॉकडाउन की घोषणा की गयी थी. शुरुआत में इसे 21 दिनों का बताया गया था. लेकिन हर बार इसे अग्रसारित किया गया. गृह मंत्रालय के आदेश संख्या 40-3/2020-DM-I (A) दिनांक – 24.03.2020 के तहत लॉकडाउन को सम्पूर्ण देश के भौगोलिक क्षेत्र में लागू किया गया.

इसके बाद गृह मंत्रालय द्वारा दिनांक 15.04.2020, 01.05.2020, 17.05.2020, 30.05.2020, 29.06.2020, 29.07.2020, 29.08.2020, 30.09.2020, 27.10.2020, 25.11.2020, 28.12.2020, 27.01.2021, 26.02.2021, 23.03.2021 को इस बाबत आदेश जारी किए गए.

अचानक लगाए इस लॉकडाउन से अफरातफरी की स्थिति उत्पन्न हो गयी. हज़ारों लोगों की जान चली गयी. करोड़ो लोग बेरोजगार हो गए. बावजूद इसके आज भी यह लॉकडाउन जारी है. गृह मंत्रालय द्वारा दिनांक-24.03.2020 को जारी किया आदेश संख्या 40-3/2020-DM-I (A) को आज तक निरस्त नहीं किया गया है.

केंद्र सरकार ने COVID -19 को “गंभीर चिकित्सा स्थिति या महामारी की स्थिति” के रूप में “अधिसूचित आपदा” के रूप में शामिल किया है. यह किसी राज्य की आपदा नहीं है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority) द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 6 (2) (i) के तहत जारी किये गए दिशानिर्देशों को केंद्रीय गृह मंत्रालय धारा 10 (2) (i) जारी करता है.

संघीय ढाँचे में इन आदेशों का अनुपालन राज्य सरकारों का संवैधानिक कर्तव्य है. इस कारण वे अपने अनुसार निर्णय लेने में भी समर्थ नहीं हैं. ऐसे में केंद्र सरकार की भूमिका अति महत्वपूर्ण हो जाती है.

तमाम राज्य सरकारें जो भी लॉकडाउन लगा रही है उसकी बुनियाद में केंद्रीय गृह मंत्रालय का आदेश है. गृह मंत्रालय के आदेश के बाद से पूरे देश में आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 लागू है. साथ ही महामारी रोग अधिनियम 1897 भी लागू है. इन्हीं अधिनियमों के आधार पर सीआरपीसी की धारा 144 का प्रयोग किया जा रहा है.

जरा सी भूल – चूक होने पर जनता के ऊपर आईपीसी 188 के तहत कार्रवाई की जा रही है. पूरे देश के भीतर प्रशासनिक एवं पुलिसिया क्रूरता बढ़ी है. इससे आम जन परेशान हैं. लॉकडाउन के कारण पनपी गरीबी, बेरोजगारी के कुछ महत्वपूर्ण आँकड़ो पर आप सबका ध्यान दिलाना चाहता हूँ-

1. भारत में 45 साल के बाद पिछले एक साल में सबसे ज्यादा गरीब बढ़े हैं. विश्व बैंक के आंकडों के आधार पर प्यू रिसर्च सेंटर ने अनुमान लगाया है कि कोरोना के बाद की मंदी के चलते देश में प्रतिदिन दो डॉलर या उससे कम कमाने वाले लोगों की तादाद महज पिछले एक साल में छह करोड़ से बढ़कर 13 करोड़, चालीस हजार यानी दोगुने से भी ज्यादा हो गई है. इसका साफ संकेत है कि भारत 45 साल बाद एक बार फिर ‘सामूहिक तौर पर गरीब देश’ बनने की ओर बढ़ रहा है.

2. 2020 में दुनिया में सबसे ज्यादा गरीबों की तादाद बढ़ाने वाले देश के तौर पर भारत का नाम दर्ज हो रहा है. देश में 2011 के बाद गरीबों की गणना नहीं हुई है. हालांकि संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के हिसाब से 2019 में देश में करीब 36 करोड़, 40 लाख गरीब थे, जो कुल आबादी का 28 फीसद है. लॉकडाउन के कारण बढ़े गरीबों की तादाद इन गरीबों में जुड़ेगी. गांवों में रहने वाले ज्यादातर असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले और गरीब हैं. पिछले एक साल से वे अनियमित काम पा रहे हैं. कठिन हालात में गुजर बसर करने के उनके किस्से अब सामने भी आ रहे हैं. लोगों ने खाने में कटौती करनी शुरु कर दी है.

3. शहरी क्षे़त्रों में रहने वाले लाखों लोग भी गरीबी रेखा से नीचे आ गए हैं. प्यू रिसर्च सेंटर के अनुमान के मुताबिक, मध्यम वर्ग सिकुड़ कर एक तिहाई रह गया है. कुल मिलाकर चाहे पूरी आबादी के बात करें या देश को भौगोलिक खंडों में बांटकर देखें, देश में करोड़ों लोग या तो गरीब हो चुके हैं या गरीब होने की कगार पर हैं.

4. लॉकडाउन ने पिछले साल देश में 23 करोड़ लोगों को गरीबी में धकेल दिया. युवा और महिलाओं पर इसकी मार सबसे ज्यादा पड़ी है. बेंगलुरु स्थित अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की ओर से प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल मार्च से भारत में महीनों चले सख्त लॉकडाउन ने करीब 10 करोड़ लोगों से रोजगार छीन लिया और इनमें से 15 फीसदी को साल खत्म होने तक काम नहीं मिला. महिलाओं पर इसका और भी बुरा असर पड़ा. 47 फीसदी महिला कामगार प्रतिबंधों के खत्म होने पर भी रोजगार हासिल नहीं कर पाईं.

5. वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, लॉकडाउन द्वारा उत्पन्न वित्तीय संकट ने पिछले साल लगभग 3.2 करोड़ भारतीयों को मिडिल क्लास से बाहर कर दिया है. रोजाना 10 से 20 डॉलर तक की कमाई करने वालों को मिडल क्लास में गिना जाता है. Pew Research Center की स्टडी के मुताबिक भारत 40 साल में सबसे बड़ी आर्थिक मंदी में डूब गया है क्योंकि लॉकडाउन ने बड़े पैमाने पर नौकरियां छीनी और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाया है.

6. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने अप्रैल 2020 को एक रिपोर्ट में कहा था की भारत में करीब 90 फीसदी लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. ऐसे में करीब 40 करोड़ कामगारों की रोजगार और कमाई लॉकडाउन के कारण प्रभावित होने की आशंका है. इससे वे गरीबी के कुचक्र में फंसते चले जाएंगे.

7. अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की ओर से अक्तूबर-दिसंबर 2020 की अवधि के बीच किए गए सर्वे से यह जानकारी मिली की देश में असंगठित क्षेत्र के पांच में से एक श्रमिक बेरोजगार है. यानी करीब 20 फीसदी श्रमिकों के पास काम नहीं है. सर्वे के अनुसार, लॉकडाउन से पूर्व (फरवरी) में तीन फीसदी श्रमिक बेरोजगार थे और चार फीसदी श्रम बाजार से बाहर थे. वहीं, लॉकडाउन के दौरान 61 फीसदी मजदूर बेरोजगार और 10 फीसदी श्रम बाजार से बाहर हो गए. अगर लॉकडाउन के बाद की स्थिति देंखे तो 11 फीसदी श्रमिक अभी भी श्रम बाजार से बाहर और आठ फीसदी बेरोजगार हैं.

8.मुंबई का एक थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) देश में बेरोजगारी के आंकड़े इकट्ठे करता है. पीटीआई ने उसकी रिपोर्ट के हवाले से खबर दी है कि अप्रैल 2021 में देश की बेरोजगारी दर करीब 8% के स्तर पर पहुंच गई है. यह 2021 के शुरुआती 4 महीनों की सबसे ऊंची बेरोजगारी दर है. मार्च में देश की बेरोजगारी दर 6.5% थी. सीएमआई के अध्ययन के मुताबिक केवल अप्रैल 2021 में 75 लाख लोगों की नौकरी चली गई है.

9. 4 अप्रैल 2021 को शहरों में बेरोजगारी दर 7.21 फीसदी थी लेकिन 11 अप्रैल 2021 को यह बढ़ कर 9.81 फीसदी और 18 अप्रैल 2021 को बढ़ कर 10.72 फीसदी हो गई है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी यानी CMIE के आंकड़ों के मुताबिक देश के शहरों में बेरोजगारी दर बढ़ना ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की तुलना में असामान्य ट्रेंड है, क्योंकि कोविड ने ग्रामीण इलाकों में रोजगार को ज्यादा नकारात्मक तौर पर प्रभावित किया था.

10. जहां तक ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर बढ़ने का सवाल है तो यह पूरे मार्च 2021 महीने में बढ़ती रही. 7 मार्च को यह 5.86 फीसदी थी लेकिन 14 मार्च को बढ़ कर 6.41 फीसदी हो गई वहीं 21 मार्च को बढ़ कर 8.58 फीसदी पर पहुंच गई.

11. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आंकड़ों के मुताबिक, 16 मई 2021 को खत्म हुए सप्ताह के दौरान बेरोजगारी दर बढ़ कर 14.34 फीसदी हो गई. पिछले एक साल का यह सबसे अधिकतम स्तर है. बेरोजगारी दर 49 हफ्तों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है. पिछले महीने (अप्रैल) की अपेक्षा यह दोगुने स्तर पर है.

12. केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार मई 2021 में राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 7.97 प्रतिशत पहुंच गई है. शहरी क्षेत्रों में 9.78 प्रतिशत. ग्रामीण स्तर पर बेरोजगारी दर 7.13 प्रतिशत है. मार्च 2021 में राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 6.50 प्रतिशत थी. अब ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बेरोजगारी बढ़ रही है.

13. 18 मई 2021 को स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा कि अभी तक सामने आए कोरोना संक्रमण की संख्या कुल आबादी का सिर्फ 1.8 प्रतिशत है.

14. US के Centers for Disease Control and Prevention (CDC) ने अपनी स्टडी में कहा है की किसी सतह से वायरस फैलने का खतरा न के बराबर है. यदि किसी सतह को दस हज़ार बार छूते हैं तो 9 हज़ार 9 सौ 99 बार वायरस फैलने का खतरा नहीं है.

15. लोकल सर्कल्स द्वारा किये गए एक सर्वे में यह बात सामने आई है की देश के 61 प्रतिशत लोग कोरोना, लॉकडाउन के कारण मानसिक तनाव और अवसाद में हैं.

16. 2019 में अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्था ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज’ की ओर से जारी किए गए आँकड़ों के अनुसार भारत में हर साल 2.3 लाख लोग आत्महत्या कर रहे हैं. जिसका अर्थ है हर चार मिनट में हिंदुस्तान में एक व्यक्ति अपनी जान ले रहा है. यह तब की स्थिति है जब कोरोना लॉकडाउन नहीं था. 2020 के मार्च में लगे लॉकडाउन के बाद से यह स्थिति और खराब हुई है.

17. सुसाइड प्रिवेंशन इंडिया फ़ाउंडेशन (एसपीआईएफ़) ने ‘कोविड19 ब्लूज़’ नामक ऑनलाइन सर्वे के तहत भारत में काम कर रहे 159 मानसिक स्वास्थ्य कर्मचारियों और थेरेपी विशेषज्ञों से विस्तृत बातचीत की. सर्वे के नतीजे बताते हुए एक ई-मेल इंटरव्यू में एसपीआईएफ़ के संस्थापक नेल्सन विनोद मोज़ेस ने कहा कि कोरोना के बाद से देश में ख़ुद को चोट पहुँचाने, अपनी मृत्यु की कामना करने और ख़ुद अपनी जान लेने की प्रवृत्ति कई गुना बढ़ी हुई पाई गई है.

18. भारत में आत्महत्या की दर वैसे भी ग्लोबल एवरेज से 60 प्रतिशत से भी ज़्यादा है. ऐसे में हालात तो पहले ही मुश्किल थे लेकिन कोरोना के बाद बीमारी के जिस भय और जिन आर्थिक विषमताओं का सामना लोगों को करना पड़ा है, उसने कई लोगों को हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया है.

19. सर्वे के नतीजों के अनुसार कोरोना के बाद से तक़रीबन 65 प्रतिशत लोगों ने ख़ुद को मारने के बारे में सोचा या ऐसे प्रयास किए. साथ ही तक़रीबन 71 प्रतिशत लोगों में कोरोना के बाद मरने की इच्छा बढ़ी हुई पाई गई है.

20. मानसिक स्वास्थ्य कर्मचारियों ने एसपीआईएफ़ को यह भी बताया कि अवसाद के शिकार पुराने ठीक हो चुके मरीज़ दोबारा अवसाद की गिरफ़्त में जा रहे हैं. साथ ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए मदद मांगने आने वाले मरीज़ों की संख्या में भी 68 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

21. देश भर में स्कूल, कोचिंग, यूनिवर्सिटी बंद हैं. छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. भारत जैसे देश में सबों के लिए ऑनलाइन एजुकेशन संभव नहीं है. ऐसे में हमारे देश का मानव संसाधन एक मुश्किल हालात में है. कोरोना के कारण लगभग एक साल तक स्कूलों के लगातार बंद रहने से बच्चों की सीखने की क्षमता पर गंभीर असर पड़ा है। सर्वे के अनुसार बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं में कुछ नया सीखने की बजाय अपनी पिछली कक्षाओं में जो सीखा था उसे भी भूल रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा अध्यापक-छात्र के सीधा संवाद न होने और ऑनलाइन कक्षाओं के प्रभावी ढंग से काम न करने के कारण हो रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में लगातार काम करने वाले अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की तरफ़ से यह सर्वे करवाया गया है।

22. जनवरी 2021 में हुआ यह सर्वे पाँच राज्यों (छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड) के 44 ज़िलों के 1,137 सरकारी स्कूलों के कक्षा 2 से कक्षा 6 तक के 16,067 छात्रों पर किया गया। सर्वे के अनुसार, 92% बच्चे भाषा के मामले में कम-से-कम एक विशेष बुनियादी कौशल को भूल चुके हैं। कक्षा 2 के 92%, कक्षा 3 के 89%, कक्षा 4 के 90%, कक्षा 5 के 95% और कक्षा 6 के 93% छात्रों में यह कमी देखी गई है। इस सर्वे में भाषाई स्तर पर छात्रों के बोलने, पढ़ने, लिखने और उसे सुन या पढ़ कर याद करने की क्षमता को भी जांचा गया।

23. सर्वे में पाया गया कि 54% छात्रों की मौखिक अभिव्यक्ति प्रभावित हुई है। इसका अर्थ है कि वे अपने कक्षा के पाठ्यक्रम मसलन किसी शब्द, चित्र, कविता, कहानी आदि को देखकर उसकी ठीक ढंग से व्याख्या नहीं कर पा रहे हैं। इसी तरह 42% छात्रों की पढ़ने की क्षमता प्रभावित हुई है। वे न सिर्फ अपनी वर्तमान कक्षा बल्कि अपनी पिछली कक्षाओं के पाठ को भी सही ढंग से पढ़ नहीं पा रहे हैं।

24. कक्षा 2 और कक्षा 3 के छात्रों में यह कमी सबसे अधिक है, जिसके क्रमशः 71% और 67% छात्र अपनी कक्षा के पाठ नहीं पढ़ पा रहे हैं। 40% छात्रों की भाषाई लेखन क्षमता भी स्कूल न खुलने के कारण प्रभावित हुई है। सर्वे के अनुसार कुल 82% बच्चे पिछली कक्षाओं में सीखे गए गणित के कम-से-कम एक सबक को भूल गए हैं। बच्चे नंबर पहचानना, जोड़-घटाव-गुणा-भाग आदि करना तक भूल रहे हैं।

25. एम्स समेत कई रिपोर्ट में यह बात सामने आ चुकी है की मृत शरीर से कोरोना का संक्रमण नहीं फैल सकता. बावजूद इसके मृत शरीर के साथ जिस तरीके का प्रोटोकॉल लागू कर दिया गया है. वह भयावह है.

इन्हीं तथ्यों के आधार पर पीएम को पत्र लिखा. उनसे स्थिति को सामान्य करने के लिए उचित कदम उठाने को कहा. तत्काल प्रभाव से लॉकडाउन को पूर्णतः खत्म करने की बात कही. क्योंकि सम्पूर्ण आबादी के रोजगार, व्यापार, जनजीवन को रोक देने के खतरनाक परिणाम सामने आए हैं. ऐसे में इसे जारी रखना सही प्रतीत नहीं होता है.

साथ ही कोरोना टेस्ट की अनिवार्यता को खत्म करने को कहा. लक्षणों के आधार पर इलाज को प्राथमिकता देने का अनुरोध किया. टेस्ट के बाद प्रोटोकॉल और दिशानिर्देशों के इलाज प्रक्रिया में बेवजह फँस जाने के कारण कई मरीजों की मौत हो जा रही है. इलाज के अन्य पद्धति जैसे होमियोपैथ, आयुर्वेद को भी प्रोत्साहित करने को कहा.

आयुष मंत्रालय की भूमिका को विस्तृत करने को कहा. आज दुकान, व्यापार खोलने पर लोगों को जेल में डाल दिया जा रहा है. साल भर से त्रस्त जनता अपना गुजर-बसर कैसे करेगी? उन्हें कमाने-खाने दिया जाए! मीडिया द्वारा बेवजह पैदा किये जा रहे डर को खत्म किया जाए. क्या यह सब नहीं होना चाहिए?

एक साल से अधिक हो गया. इस लॉकडाउन से लोग त्रस्त हो चुके हैं. इसे बिल्कुल खत्म किया जाना चाहिए. 💐

©️ Sanjay Mehta