ये जन प्रतिनिधि हैं या यम प्रतिनिधि

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 इंदौर : पूरा देश कोरोना के कारण चित्कार कर रहा है। हर घर में गम का माहौल बना हुआ है। कोई अपनों के अस्पताल में भर्ती होने उसके मौत और जिंदगी के संघर्ष को लेकर चिंतित है तो कोई अपनों के खोने से तो किसी को अपने खास के जाने का दुख है। वहीं कई लोग अपनी रोजी-रोटी की चिंता में हलकान हैं। पूरे देश में कोरोना के बढ़ते मामलों के लिए चहूंओर केवल नेताओं को जिम्मेदार माना जा रहा है।

कोरोना के फैलने के दौरान भी चुनावों में भीड़ जुटाई जाना ये सबसे बड़ा कारण सामने आया। खुद मद्रास (चैन्नई) हाई कोर्ट इस पर कड़ी टिप्पणी कर चुकी है। खुद इंदौर में भी मुख्यमंत्री के 56 दुकान में भीड इकट्ठा करने के बाद कोरोना के बढ़े मामलों ने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया था। लेकिन उसके बाद भी नेता कोई सबक लेने को तैयार नहीं है। अपने साथ भीड को लेकर चलने को ही अपनी शान नेता मानते हैं।

और देश महामारी से जुझ रहा है और उससे बचाव का एक ही रास्ता है आपस में एक दूसरे से दूरी। लेकिन नेताओं को दूरी शब्द समझ नहीं आता है। अपने साथ भीड इकट्ठी करे बगैर इनके हाथ-पैर शायद काम नहीं करते हैं। रविवार ही नहीं बीते एक सप्ताह से लगातार नेताओं की भीड शहर में बार-बार इकट्ठा हो रही है। सभी डर रहे हैं और ये भीड इकट्ठा कर खुश हो रहे हैं। खुद को जनता का प्रतिनिधि याने जन प्रतिनिधि मानने वाले ये नेता जनता के कम और यमप्रतिनिधि ज्यादा बने हुए हैं। कोरोना को फैलाने में ये कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहते हैं। जनता की सेवा के नाम पर उनके लिए बीमारी को नई जगह दिखाने में ही जुटे हुए हैं।

शायद इन्हें अपने रूतबे और भ्रष्टाचार से कमाए पैसों का रूआब ज्यादा है। लेकिन ये भूल गए कि कई पैसे वाले और रूतबा रखने वाले भी कोरोना की दूसरी लहर के प्रचंड होने पर अप्रैल माह में अपने बीमार लोगों को अस्पताल में एक पलंग तो दूर एक इंजेक्शन तक नहीं दिला पाए थे। लोगों की जान चली गई लेकिन इन यम प्रतिनिधियों को शरम नहीं आ रही है। आम आदमी को गुलाम समझकर उन पर रूआब झाडऩे वाले अफसर भी इन नेताओं के आगे भीगी बिल्ली ही बने रहते हैं।

सामान्य जनता पर जुर्माना ठोंकने और उन्हें नियमों को तोडऩे पर जेल में डालने वाले ये अफसर नियम तोडऩे वाले नेताओं पर कार्रवाई के बजाए उनके आगे दूम हिलाते घूमते रहते हैं। सबसे बड़ी मुर्ख भी जनता ही है जो इन जैसों को ही अपना आदर्श मान रही है। यदि जनता ही इन्हें गलती पर दुत्कार कर भगाने लग जाए तो ही ये सुधरेंगे। शायद तब ही ये यम प्रतिनिधि जन प्रतिनिधि बनने के बारे में सोचे।
बाकलम- नितेश पाल