चैत्र नवरात्रि: मां दुर्गा के इन शक्तिपीठों के जरूर करें दर्शन, हर मनोकामनाएं होगी पूर्ण

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आज से चैत्र नवरात्रि का त्यौहार शुरू हो चूका है। चैत्र नवरात्रि का त्यौहार पूरे नौ दिनों तक मनाया जाता हैं। इस पर्व को सबसे ज्यादा पावन पर्व माना जाता है। हिन्दू धर्म में इस चैत्र नवरात्रि का काफी महत्व है। चैत्र नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना से की जाती है। इस साल चैत्र नवरात्रि 13 अप्रैल मंगलवार से प्रारंभ हो रहे हैं। ऐसे में नवरात्रि में मां नव दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। भारतवर्ष में नवरात्रि को विशेष रूप से मां दुर्गा की आराधना का सबसे बड़ा पर्व माना गया है, जो 9 दिनों तक चलता है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष 5 नवरात्रि आती हैं, जिनमें जहां चैत्र नवरात्रि और शरद नवरात्रि सबसे प्रमुख होती है, तो वहीं कई राज्यों में इन दोनों के अलावा क्रमशः पौष, आषाढ़ और माघ गुप्त नवरात्रि भी मनाई जाती हैं। आज हम आपको 5 ऐसे मां दुर्गा के मंदिरों के बारे में जहां चैत्र नवरात्रि के मौके पर दर्शन करने से हर मनोकामना पूरी होती है। लेकिन कोरोना महामारी के बढ़ते मामलों के चलते इस बार नवरात्रि पर मंदिरों में सोशल डिस्टेंसिंग का खास ख्याल रखें। तो चलिए जानते है –

शक्तिपीठ

आपको बता दे, पुराणों में ऐसा कहा गया है कि जहां माता के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे हुए है वहां शक्ति पीठ आया है। ये सभी शक्तिपीठ ऊंची चोटियों पर और उपमहाद्वीप पर फैला हुआ है। ये सभी पीठों में शिव रूद्र भैरव के रूपों में पूजे जाते हैं। वहीं इन शक्तिपीठो में से कई पीठों में तंत्र साधना के मुख्य केंद्र हैं। यहां नवरात्रि में भक्तों की भीड़ बड़े उत्साह से शक्ति की उपासना करने के लिए आती है। आज हम आपको इन्ही शक्तिपीठों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां आप नवरात्रि में दर्शन के लिए जा सकते हैं। तो चलिए जानते हैं –

कालीघाट मंदिर कोलकाता –

कोलकाता शहर के कालीघाट में स्थित देवी काली माता का एक बहुत प्रसिद्ध मंदिर है। ये हावड़ा स्टेशन से 7 किलोमीटर की दुरी पर है। आपको बता दे, काली घाट के काली मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है। यहां सती के दाएं पांव की चार अंगुलियां गिरी थीं। जिसके बाद यहां शक्तिपीठ बना और हर साल नवरात्रि में दूर दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं। जैसा कि आप सभी जानते है बंगाल कोलकाता में नवरात्रि का त्यौहार बड़े ही धूम धाम से मानाया जाता है। यहां दुर्गा पंडाल बनाए जाते है और 9 दिन मां की उपासना की जाती हैं।

कोलापुर महालक्ष्मी मंदिर –

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित महालक्ष्मी मंदिर है। इस जगह पर माता सती का ‘त्रिनेत्र’ गिरा था। जिसके बाद यहाँ की शक्ति महिषासुरमर्दनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। आपको बता दे, यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है। क्योंकि यहां पाँच नदियों के संगम-पंचगंगा नदी तट पर स्थित कोल्हापुर प्राचीन मंदिरों की नगरी है।

अम्बाजी का मंदिर गुजरात –

सभी शक्तिपीठों में शामिल अंबाजी मंदिर सबसे प्रमुख स्थल में से एक है। इस जगह माता सती का हृदय गिरा था। इस मंदिर का उल्लेख तंत्र चूड़ामणि में भी किया गया है। इस मंदिर में कोई भी प्रतिमा नहीं रखी हुई है, बल्कि यहां मौजूद श्री चक्र की पूजा की जाती है। ये मंदिर माता अंबाजी को समर्पित है और गुजरात का सबसे प्रमुख मंदिर है।

हरसिद्धि माता मंदिर उज्जैन –

बता दे, हरसिद्धि माता मंदिर उज्जैन का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। यहां शिवपुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति के हवन कुंड में माता के सती हो जाने के बाद भगवान भोलेनाथ सती को उठाकर ब्रह्मांड में ले गए थे। वहां ले जाते समय इस स्थान पर माता के दाहिने हाथ की कोहनी और होंठ गिरे थे और इसी कारण से यह स्थान भी एक शक्तिपीठ बन गया है।

ज्वाला देवी मंदिर –

हिमाचल प्रदेश में ज्वाला देवी मंदिर कांगड़ा से 30 किलो मीटर दूर है। इस शक्तिपीठ को जोता वाली का मंदिर भी कहा जाता है। बता दे, यहां देवी सती की जीभ गिरी थी। यहां पर पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग-अलग जगह से ज्वाला निकल रही है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया हैं।