तो उत्तम स्वामी महामंडलेश्वर क्यों बन सकते ?

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महेश दीक्षित

बांसवाड़ा के उत्तम सेवा धाम के महंत और ख्यात ध्यानयोगी उत्तम स्वामी महाराज भी महामंडलेश्वर हो गए। वे अब पंच अग्नि अखाड़े के महामण्डलेश्वर कहलाएंगे। उन्हें हरिद्वार में हाल ही में आयोजित पट्टाभिषेक समारोह में 13 अखाड़ों के संत-महंतों ने सनातनी परंपरा के अनुसार महामंडलेश्वर की उपाधि से नवाजा। पंच अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर बनने के बाद अब उत्तम स्वामी को महामंडलेश्वर ईश्वरानंद के नाम से जाना जाएगा। इसके पहले पंच अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद थे। हम बता दें कि, आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए शंकराचार्य मठों की स्थापना के साथ 13 अखाड़े बनाए थे।

कौन बन सकता है महामंडलेश्वर

आदि शंकराचार्य द्वारा परंपरा और नियमों के अनुसार महामंडलेश्वर बनने के आयु का कोई बंधन नहीं। बस उसमें वैराग्य और उसे संन्यस्त होना चाहिए। धर्म शास्त्रों का गहन ज्ञान होना चाहिए और वह उसके आचरण और व्यवहार में दिखना भी चाहिए।  इसके बाद कोई भी व्यक्ति या तो बचपन में अथवा जीवन के चौथे चरण में वानप्रस्थ आश्रम में महामंडलेश्वर बन सकता है।

क्या काम हैं महामंडलेश्वर के

महामंडलेश्वर की जिम्मेदारी सनातन वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार करना और सच्चे आत्म अनुभूत, मौलिक ज्ञान से लोगों को परिचित कराना होता है। इसके साथ व्यक्ति नहीं, ईश्वर ही एकमात्र पूजनीय है यह लोगों का बताना होता है।

कब लाइम लाइट में आए उत्तम स्वामी

उत्तम स्वामी का मध्यप्रदेश में उदय संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. अनिल माधव के जमाने में हुआ और लाइम लाइट में तब आए जब पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा मध्यप्रदेश के खनिज और धर्मस्व मंत्री  हुआ करते थे।

विवादों में रहा है महामंडलेश्वर का पद

आदि शंकराचार्य द्वारा निर्मित महामंडलेश्वर का यह पद मूलत: किसी भी जाति-पंथ और समाज से ऊपर उठकर जीवनचर्या धारण करने और जीने वाले सच्चे साधुओं के लिए था। लेकिन उनके देह छोड़ने या उनके परमात्मा से महामिलन के बाद से ही महामंडलेश्वर का यह पवित्र पद विवादों में आ गया। साधुवेश में कई ऐसे लोग महामंडलेश्वर बना दिए गए, जिनके आचरण ने महामंडलेश्वर पद की गरिमा को कलंकित और धूमिल करने का काम किया। जिसकी वजह से महामंडलेश्वरों के प्रति लोगों में श्रद्धा भी कम हुई।

इसका पहला उदाहरण 2015  सामने आया। जब विवादित राधे मां को जूना अखाड़े ने महामंडलेश्वर बनाया। दहेज प्रताड़ना के मामले में उनका नाम आने के बाद महामंडलेश्वर का यह पद विवादों में आ गया। दूसरा उदाहरण-सचिन दत्ता का है। जो गाजियाबाद में कथित तौर पर बीयर बार चलाने और जमीनों की खरीद-फरोख्त का कारोबार करता था। बावजूद इसके सचिन दत्ता को महामंडलेश्वर बनाया गया था। हालांकि बाद में  सचिन दत्ता को महामंडलेश्वर बनाने का फैसला रद्द कर दिया गया।

हजारों स्वयंभू महामंडलेश्वर

आदि शंकराचार्य द्वारा शुरू की गई अखाड़ा परंपरा अनुसार साधु अखाड़ों के भीतर साधु-संतों का अनुशासन चलता है। प्रत्येक अखाड़े में सबसे बड़ा पद आचार्य महामंडलेश्वर का होता है। संतों के 13 अखाड़े हैं और इतने ही आचार्य महामंडलेश्वर होते हैं। लेकिन वर्तमान में देश में स्वयंभू महामंडलेश्वरों की संख्या हजारों में है। 100-200 तथाकथित साधुओं और शिष्यों को जुटाकर कोई भी तथाकथित बाबा खुद को स्वयंभू महामंडलेश्वर घोषित कर देता है। इसको लेकर जब-तब साधु समाज में विवाद और सवाल भी उठते रहे हैं।