क्या फर्जीवाड़ा का केंद्र बन गए हैं मध्यप्रदेश के कृषि विज्ञान केंद्र

Share on:

भोपाल। मध्यप्रदेश के दो कृषि विश्वविद्यालय सहित प्रदेश के कृषि विज्ञान केन्द्रों में हुई नियुक्तियों को लेकर बहुत बड़े फर्जीवाड़े की बात सामने आ रही है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, ICAR के अंतर्गत आने वाले प्रदेश के 29 कृषि केंद्रों में परिषद के नियमों के विरुद्ध नियुक्ति की गई है। इसके साथ ही कृषि विज्ञान केंद्रों में पदस्थापित विषय वस्तु विशेषज्ञों को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर और राजमाता सिंधिया कृषि विश्विद्यालय में सहायक प्राध्यापक के पदों पर नियुक्ति की गई है।इतना ही नहीं, कृषि विज्ञान केंद्रों में विषय वस्तु विशेषज्ञों की नियुक्ति के बाद उनके पूर्व निर्धारित वेतनमान में कृषि अनुसंधान परिषद के तय नियमों का उल्लंघन कर वृद्धि की गई।

दरअसल कृषि विज्ञान केंद्रों में विषय वस्तु विशेषज्ञ, तकनीकी सहायक गैर शैक्षणिक स्टाफ में आते हैं। ICAR के नियमों के अनुसार इनका ग्रेड पे 5400 रुपए निर्धारित है। लेकिन बावजूद इसके भारतीय कृष अनुसंधान परिषद द्वारा निर्धारित नियमों का उल्लंघन करते हुए चयनित विषय वस्तु विशेषज्ञों का ग्रेड पे 6000 रुपए कर दिया गया। इसके साथ ही कृषि विज्ञान केंद्रों में विषय वस्तु विशेषज्ञ के पद पर स्थापित लोगों को जवाहर कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर और बाद में राजमाता सिंधिया कृषि विवि में पदस्थापित कर दिया गया।

जबकि ICAR के नियमों के मुताबिक कृषि विज्ञान केंद्रों में चयनित वैज्ञानिकों की पदस्थापना कृषि विश्वविद्यालय में नहीं की जा सकती। ICAR के 2005 में कृषि विज्ञान केंद्र में रिक्त विभिन्न पदों पर नियुक्ति के विज्ञापन से भी यही समझ में आता है। रिक्त पदों की नियुक्तियों को लेकर भी जबकि ICAR ने 2005 के अपने एक आदेश में स्पष्ट तौर पर उल्लेखित किया था कि विषय वस्तु विशेषज्ञों को 5400 के ग्रेड पे के तहत ही नियुक्ति दी जाएगी और इनकी पदस्थापना कृषि विज्ञान केंद्रों में ही रहेगी।

ICAR ने रोक दिया फंड
लेकिन नियमों के विरुद्ध विषय वस्तु विशेषज्ञों की पद स्थापना जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय और राजमाता सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय में कर दी गई। जब नियक्तियों में धांधली की ख़बर खुद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को लगी तो परिषद ने कृषि विज्ञान केन्द्रों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता पर रोक लगा दी। इससे पहले सितंबर 2019 में कृषि विज्ञान केंद्र में हो रही वित्तीय अनियमितता को रोकने के लिए ICAR ने राजमाता सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के Comptroller को नियम विरुद्ध वेतनमान में वृद्धि को रोकने के लिए पत्र भी लिखा था।

विश्वविद्यालय की रैंकिंग घटी
कृषि विज्ञान केंद्र और कृषि विश्वविद्यालय में हो रहे इस घोटाले से agriankuran welfare association के अध्यक्ष राधे जाट ने मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव को अवगत कराने के लिए पत्र भी लिखा है। राधे जाट ने मुख्य सचिव को लिखे अपने शिकायत पत्र में कहा है कि कृषि विज्ञान केंद्रों और विश्वविद्यालय में हुई नियुक्तियों और उनके वेतनमान में बड़ा पदस्थ घोटाला किया गया है।

राधे जाट ने अपने शिकायत पत्र में कहा है कि इन तमाम अनियमितताओं के कारण कृषि विश्वविद्यालय में उच्च स्तरीय अध्यापन कार्य काफी प्रभावित हुआ है। जिसका परिणाम यह हुआ कि विश्वविद्यालय की रैंकिंग भी घट गई। कभी नौवें स्थान पर रहने वाले जवाहर कृषि विश्वविद्यालय अब 50 वें स्थान पर पहुंच गया।

छात्रों के रोज़गार पर संकट
राधे जाट ने हमसंवेत से बातचीत के दौरान बताया कि कृषि विश्वविद्यालय में पदस्थ कई ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी पदस्थापना कृषि विज्ञान केंद्र के साथ साथ कृषि विश्वविद्यालय में भी है। राधे जाट ने कहा कि अनियमितताओं के कारण कृषि विश्वविद्यालयों का अध्यापन कार्य तो प्रभावित हुआ ही है साथ ही कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों के रोज़गार के संकट पर सवाल खड़ा हो गया। राधे जाट ने कहा कि उनकी नज़र में कई ऐसे छात्र हैं जो रोजगार न मिलने के कारण निजी क्षेत्रों में जा चुके हैं। तो कई ऐसे कृषि छात्र हैं जो नौकरी न मिलने पर अपने गांवों की ओर लौट चुके हैं।

पूर्व कुलपतियों ने अपने चहेते लोगों की नियुक्तियां की
राधे जाट बताते हैं कि कृषि विज्ञान केंद्रों और कृषि विश्वविद्यालय में यह घोटाले पिछ्ले सात आठ वर्षों से निरंतर चला आ रहा है। विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपतियों ने अपने पसंदीदा और करीबी लोगों की भर्ती करने के लिए सारे नियमों का उल्लंघन किया। राधे जाट ने कहा कि घोटाले से मध्यप्रदेश सरकार को वित्तीय नुकसान तो झेलना पड़ा ही लेकिन इसके अकादमिक नुकसान भी दिख रहे हैं। विश्वविद्यालय की रैंकिंग गिरती जा रही है, विश्वविद्यालय से पढ़ने वाले छात्र बेरोजगार हैं। हैरानी भरी बात यह है कि यह घोटाला मध्यप्रदेश सरकार के नाक के नीचे होते रहा लेकिन सरकार मौन बैठी रही।