भाजपा : फीडबैक से चिंतित ‘ प्लान बी ‘ पर अमल की तैयारी

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भाजपा ने कांग्रेस में तोड़फोड़ का सिलसिला बंद नहीं किया है। इसकी दो वजह हैं। एक, भाजपा के पास उप चुनावों को लेकर फीडबैक अच्छा नहीं है। इसलिए वह नतीजों से पहले ही अपनी सरकार पक्की कर लेना चाहती है। दो, कांग्रेस विधायकों को तोड़कर भाजपा मतदाताओं पर मनोवैज्ञानिक असर डालना चाहती है कि नतीजों के बाद उसकी ही सरकार बनने वाली है, ताकि तटस्थ मतदाता भाजपा को वोट कर दे। इसलिए फीडबैक से चिंतित भाजपा ने अपने प्लान बी पर अमल शुरू किया है। इसके तहत भाजपा की नजर कांग्रेस के लगभग आधा दर्जन विधायकों पर है। इनसे बात चल रही है। भाजपा की योजना परवान चढ़ी तो उप चुनाव के नतीजे आने से पहले कांग्रेस को एक और झटका लग जाए तो अचरज नहीं करना चाहिए।
0 क्या है भाजपा का ‘प्लान-बी’….

  • भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने उप चुनावों के साथ ‘प्लान-बी’ पर अमल जारी कर रखा है। दरअसल भाजपा द्वारा एनजीओ द्वारा कराए गए सर्वे, आरएसएस के सर्वे तथा आईबी की रिपोर्ट से फीडबैक ज्यादा अनुकूल नहीं आया है। इसलिए भाजपा नेता अभी से निर्दलीयों, बसपा-सपा के विधायकों का समर्थन पक्का कर लेना चाहते हैं। इसी चरण में डांवाडोल दो निर्दलीय विधायकों केदार डाबर तथा सुरेंद्र सिंह शेरा भैया द्वारा समर्थन की चिट्ठी विधानसभा पहुंचाई गई है। कांग्रेस विधायक राहुल लोधी का इस्तीफा कराया गया है। इसके अलावा कांग्रेस के लगभग आधा दर्जन विधायकों को पाला बदलने के लिए राजी करने के प्रयास जारी हैं।
    0 तीन अंचलों के विधायकों से बाचतीत….
  • कांग्रेस के जिन आधा दर्जन विधायकों से चर्चा चलने की खबर है, इनमें मालवा-निमाड़ के तीन, बुंदेलखंड के दो तथा विंध्य अंचल का एक विधायक शामिल है। खास बात यह है कि इनसे भाजपा का कोई नेता बात नहीं कर रहा है बल्कि इस काम में कांग्रेस से आए बागी पूर्व विधायकों को ही लगाया गया है। भाजपा के नेता सिर्फ सौदा पक्का करने के लिए सबसे अंत में बात करेंगे। पहले कांग्रेस के बागियों पर ही इन्हें तैयार की जवाबदारी है।
    0 विधानसभा में बहुमत के समीकरण….
  • विधानसभा के अंदर बहुमत के समीकरण पर नजर दौड़ाएं तो 229 विधानसभा सीटों (राहुल लोधी की सीट छोड़कर) में बहुमत के लिए 115 विधायकों की जरूरत पड़ेगी। भाजपा के पास अभी 107 विधायक हैं। इस लिहाज से उसे 8 विधायकों की जरूरत है। अर्थात अकेले बहुमत के लिए उसे 28 में से कम से कम 8 सीटें जीतना होंगी। लेकिन यदि सपा, बसपा के साथ उसे चारों निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिल जाता है तो सिर्फ एक सीट की जरूरत होगी। भाजपा बिना एक भी सीट जीते यह व्यवस्था पहले से कर लेना चाहती है ताकि मैसेज जाए कि सत्ता में तो भाजपा ही रहेगी।
    0 अन्य की भूमिका हो सकती है निर्णायक….
  • सपा, बसपा तथा निर्दलीय विधायकों के अब तक के रुख पर नजर डालें तो वे उसके साथ रहे हैं, जिसके पास सत्ता रही है। पहले ये सब कांग्रेस का समर्थन कर रहे थे जबकि कांग्रेस ने सिर्फ एक निर्दलीय प्रदीप जायसवाल को मंत्री बनाया था। अब सभी भाजपा का समर्थन कर रहे हैं जबकि भाजपा ने एक को भी मंत्री नहीं बनाया। यदि उप चुनावों के नतीजे ऐसे आए, जिसमें निर्णायक भूमिका इन अन्य 7 विधायकों की हुई तो ये उसके साथ जाएंगे जो इन्हें मंत्री बनाएगा या ज्यादा लाभ देने का आॅफर करेगा। ऐसे में सरकार को लेकर अभी से किसी निर्णय पर पहुंचना बेमानी होगा।