‘जान’ जाना है जाए, अब ‘जहान’ जरूरी….

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दिनेश निगम ‘त्यागी’

कोरोना महामारी बढ़ने के साथ ‘जान है तो जहान है’ का स्थान ‘जान जाना है जाए, अब जहान जरूरी है’, ने ले लिया है। दरअसल, प्रदेश की सत्ता से कांग्रेस को बेदखल करने के बाद राष्टÑ के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ‘जान है तो जहान है’। अर्थात जब जीवन रहेगा तभी तो दुनिया रहेगी, चलेगी। यह मंत्र देकर उन्होंने कोरोना से निबटने के लिए देश भर में लॉकडाउन की घोषणा की थी। मोदी की एक आवाज पर पूरा देश ठहर गया था। शंख, घंटियां, थालियां और तालियां बजी थीं। तब कोरोना इतना भयावह रूप में भी नहीं था। लॉकडाउन के कारण देश जिस आर्थिक बदहाली की ओर बढ़ा, इसके कारण ‘जान है तो जहान है’ के मायने बदल गए। अब सब अनलॉक है। कोरोना पॉजीटिव जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं। न किसी को उनके इलाज की चिंता है, न जीवन की। अस्पताल में भर्ती होना तो दूर बार-बार फोन करने के बावजूद कोई डाक्टर काउंसलिंग करने तक को उपलब्ध नहीं है। सभी को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। प्रदेश सरकार को चिंता है तो सिर्फ उप चुनावों की। उसे किसी भी हालत में जीत चाहिए।

‘प्रद्युम्न’ को पछाड़ आगे निकली ‘इमरती

ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास सिपहसलारों में गोविंद सिंह राजपूत एवं तुलसी सिलावट के नाम शुमार हैं लेकिन सुर्खियों में हमेशा प्रद्युम्न सिंह तोमर रहे। अब इमरती देवी प्रद्युम्न से आगे निकलती दिख रही हैं। वे प्रद्युम्न की तर्ज पर ही सिंधिया के पैर छूती हैं, पर सुर्खियों में रहने की वजह उनके अटपटे बयान हैं। पहले वे स्वतंत्रता दिवस पर लिखा भाषण न पढ़ पाने के कारण चर्चा में आई थीं, फिर आंगनबाड़ियों में कुपोषण मिटाने अंडा खिलाने के मामले में चर्चित हुर्इं। भाजपा में आने के बाद भी उन्होंने यह घोषणा कर डाली जबकि भाजपा खिलाफ थी। मुख्यमंत्री को कहना पड़ा कि बच्चों को अंडा नहीं, दूध दिया जाएगा। बेचारी इमरती चुप होकर रह गई। अब उनके वायरल वीडियो चर्चा में हैं। एक में कह रही हैं कि मुझे ज्यादा वोटों से जिताओ तो सिंधिया-शिवराज उप मुख्यमंत्री बना देंगे। दूसरे में बोल रही हैं, सरकार जिस कलेक्टर को कहेगी, वह सीट जिता देगा। ऐसे बयानों से इमरती सुर्खियों में है और अपनी व पार्टी की फजीहत भी करा रही हैं। भाजपा को जवाब देते नहीं बन रहा। बहरहाल, आज वे सिंधिया कैम्प की सबसे चर्चित चेहरा हैं।

भाजपा के ‘नहले’ पर ‘दहला’ जड़ती कांग्रेस….

पहले पूर्व मंत्री कन्हैयालाल अग्रवाल, बालेंदु शुक्ल, पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू, पूर्व विधायक अजब सिंह कुशवाह, सतीश सिकरवार और अब पूर्व विधायक पारुल साहू। एक-एक कर भाजपा के इन ताकतवर नेताओं को तोड़कर कांग्रेस ने भाजपा के ‘नहले’ पर ‘दहला’ जड़ने की कोशिश की है। भाजपा कांग्रेस से टूटे विधायकों की दम पर ही सत्ता में है। ये बागी ही भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। कमलनाथ भी ‘लोहे को लोहा ही काटता है’ की तर्ज पर भाजपा को जवाब दे रहे हैं। कोशिश अधिकांश सीटों में कांग्रेस के बागियों के मुकाबले भाजपा के बागी उतारने की है। अब भी चौधरी राकेश सिंह, भंवर सिंह शेखावत एवं दीपक जोशी जैसे नेता कांग्रेस के संपर्क में हैं। नेताओं के टूटने पर भाजपा में बेचैनी है। यह कह कर बचाव किया जा रहा है कि कांग्रेस के पास नेता नहीं बचे इसलिए भाजपा के ऐसे नेता तोड़े जा रहे हैं, जिनका कोई अस्तित्व नहीं बचा। इस तर्क के कोई मायने इसलिए नहीं हैं क्योंकि भाजपा खुद अधिकांश सीटों पर कांग्रेस के बागियों के भरोसे है। साफ है कि ये उप चुनाव, आम चुनाव से भी ज्यादा रोचक रहने वाले हैं।

सिंधिया ने ‘सिंहासन’ हिलाया, नाथ ने ‘महल’….

ग्वालियर के पहले ही दौरे में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने वह कर दिखाया, जिसकी उम्मीद नहीं की गई थी। कांग्रेस से अलग होकर ज्योतिरादित्य सिंधिया पहले दौरे पर गए तो उनके साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ भाजपा और संघ की पूरी ताकत थी जबकि कमलनाथ ने अकेले मोर्चा संभाला। दिग्विजय भी उनके साथ नहीं थे। कोई उनके साथ था तो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव। कमलनाथ का कार्यक्रम देखने वाले एक पत्रकार की टिप्पणी थी कि सिंधिया ने कमलनाथ का ‘सिंहासन’ हिलाया था, नाथ ने ग्वालियर पहुंच कर सिंधिया का महल हिला दिया। पहली बार महल का लिहाज छोड़कर हजारों कांग्रेसी सिंधिया के खिलाफ नारे लगाते मैदान में उतरे। कमलनाथ का दौरा सिंधिया से कमतर नहीं था। साफ हो गया कि चंबल-ग्वालियर अंचल की राजनीति सिर्फ महल के इर्द-गिर्द नहीं है। पहली बार समूचा सिंधिया घराना भाजपा में है। इस लिहाज से महल की छाया से अलग होकर कांग्रेसियों का ताकत दिखाना, अचंभित करने वाला है। उप चुनाव के नतीजे चाहे जो आएं लेकिन अभी तो नाथ ने बाजी मार ली।

साध्वी उमा भारती की सक्रियता के मायने

पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती एक बार फिर चर्चा में है। वजह है उनकी सक्रियता, वह भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ। उमा-शिवराज ने उप चुनाव वाले कुछ क्षेत्रों का साथ दौरा किया है। उमा-शिवराज के संबंध कैसे रहे, यह किसी से छिपा नहीं है। फिर भी उमा द्वारा शिवराज की तारीफ में पुल बांधना, यहां तक कहना कि शिवराज मुझसे भी अच्छी सरकार चला रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों को जचा नहीं। इसलिए इसके मायने तलाशे जा रहे हैं। एक राय है कि उमा को मजबूरी में तीन साल तक सक्रिय राजनीति से दूर रहने की घोषणा करना पड़ी थी क्योंकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनके काम से संतुष्ट नहीं था। उमा इससे उबरने की कोशिश कर रही हैं। दूसरा, वे प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने का मौका तलाश रही थीं, वह मिल गया। एक बार फिर वे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जा सकती हैं। तीसरा, उमा को अब भाजपा में कुछ मिलने वाला नहीं। सिर्फ उप चुनाव में लोधी बाहुल्य इलाकों में उनका उपयोग किया जा रहा है। क्योंकि छोटी सी चूक भाजपा को फिर सत्ता से बाहर कर सकती है। सच जो भी हो, पर उमा एक बार फिर चर्चा के केंद्र में हैं।